मुंबई। बॉलीवुड (Bollywood) में सफलता इतनी आसानी से नहीं मिल जाती। खासकर उनके लिए इसकी राह मुश्किल है जिन्हें सुंदरता की कसौटी पर परखा जाता है। लेकिन कुछ जिद्दी लोगों ने बॉलीवुड के इस पैमाने को तोड़कर रास्ता साफ कर दिया। इन्हीं में से एक अभिनेता हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी(Nawazuddin Siddiqui)। किरदार को जीना और उसमें ऐसी जान फूंक देना कि सामने वाला कह उठे कि इससे बेहतर इस रोल को कोई और नहीं निभा सकता, ये खासियत नवाज को बॉलीवुड में हीरो की भीड़ अलग छांट देती है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के शहर मुजफ्फरनगर के कस्बे बुढ़ाना में पैदा हुए। इस कस्बे में नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) को कोई फिल्मी माहौल नहीं मिला। 80 के दशक के आखिरी दौर का ये वक्त था जब टीवी घर मे होना बड़ी शान माना जाता था। कस्बे और छोटे शहर में कलर टीवी नहीं पहुंचा था। जवान होते लोग छुप-छुप के ब्लैक एंड व्हाइट टीवी देखा करते थे। मौहल्ले भर के बच्चे एक ही घर में टीवी देख रहे होते थे क्योंकि अमूनन मुहल्ले में एक या दो टीवी ही हुआ करते थे। नवाज भी टीवी देखते और दूसरे काम छोड़ देर तक टीवी के सामने रहते, यहीं से एक सपना नवाज के मन में पल गया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) ने दिल्ली में साल 1996 में दस्तक दी जहां उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (National School of Drama) से अभिनय की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह किस्मत आजमाने मुंबई चले गए। नवाज को खुद कभी ये उम्मीद नहीं थी कि वे इतने ज्यादा मशहूर हो जाएंगे। नवाज ने एक्टिंग स्कूल में दाखिला तो जैसे तैसे ले लिया था, लेकिन उनके पास रहने को घर नहीं था तो उन्होंने यहां आकर चौकीदार की नौकरी कर ली। नवाज को यह नौकरी मिल तो गई लेकिन शारीरिक रूप से वह काफी कमजोर थे। इसलिए ड्यूटी पर वह अक्सर बैठे ही रहते थे। यही कारण था कि मालिक के देखने के बाद उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वहीं, उनको सिक्योरिटी अमाउंट भी रिफंड नहीं किया गया। नवाज अपने संघर्ष के दिनों में कुछ भी करने गुजरने को तैयार रहते थे। फिल्मों में आने के बाद भी नवाज ने वेटर, चोर और मुखबिर जैसी छोटी- छोटी भूमिकाओं को करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं की। एक्टर ने शूल, मुन्ना भाई MBBS और सरफरोश जैसी फिल्मों में ये छोटे-छोटे किरदार निभाए। नवाज को अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ़्राईडे में काम करने का मौका मिला। उसके बाद फिराक, न्यूयॉर्क और देव डी जैसी फिल्मों में काम मिला। सुजोय घोष की ‘कहानी’ में उनका काम सराहा गया। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ तक आते आते नवाज स्टार बन चुके थे। चाहे बंदूकबाज में बाबू मोशाय का किरदार हो या सेक्रेड गेम्स का गणेश गायतोंडे, सभी किरदारों से नवाज ने फैंस का दिल जीता है। आज जिस नवाज की मिसाल दी जाती है दरअसल वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है। एक वक्त ऐसा था जब उन्हें दो वक्त का खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता था।