रहिमन घर से जब चलो, रखियो मास्क लगाए।
ना जाने किस वेश में कोरोना मिल जाए आए।
कोरोना की भेरियाट अब उत्ती नईं हेगी जित्ती दो एक साल पेले हुआ करती थी। मुल्क की हर स्टेट में अलगारों पब्लिक कोरोना की चपेट में आ गई थी। कजान कित्तों की फ़ाइलें निपट गईं साब इस वबा से। जो बच बी गए तो अस्पताल के लाखों के बिल से माली तौर पे निपट गए। शुकर है के अब हालात किसी हद तक कन्ट्रोल में हैं। इसकी बड़ी वजह मुल्क में लपक वेक्सिनेशन होना है। डेढ़ बरस से ज़्यादा के वक्फे में 2 अरब से ज़्यादा कोरोना के टीके लग चुके हैं। फील वक्त बूस्टर डोज़ का पिरोगराम चललिया हेगा। शुरु में टीकों को लेके मिल्लत में कुछ खोफ सा था। बाकी अब तो तमाम आबादी बढ़ चढ़ के डोज़ लव रई हेगी। आपको याद होयेगा के एक ज़माने में मतलब अस्सी की दहाई तलक हमारे मुल्क में चेचक भी जानलेवा बीमारी हुआ करती थी। अमेरिका और इंग्लैंड से चेचक के टीके हिंदुस्तान भेजे जाते थे। तब घर घर मे चेचक के टीके लगाने का अभियान चला था और आज चेचकनके नामो निशान नहीं है। भोपाल में नवाब शाहजहां बेगम के दौर (1889 से 1901) में भी रियासत में चेचक के टीके लगाने की बाकायदा मुहिम चलाई गई थी। बेगम को जब पता चला कि चेचक को रोकने में टीकों से बेहतर कुछ नही हो सकता तो उन्होंने भोपाल में चेचक के टीकों का महकमा खोला।
बाकी उस दौर में रियाया में चेचक के टीकों को लेके तरह तरह की बाते और डर का माहौल बन गया था। कुछ कुछ वैसा ही जैसा शुरु में कोरोना के टीकों को लेके लोगों में बना था। मिल्लत के डर को दूर करने के लिए शाहजहां बेगम ने अपने नवासे मोहम्मद नसरुल्ला खां को सबसे पेले चेचक का टीका लगवाया। ताकी लोगों में टिके को लेके फैली भेरियाट ख़तम हो जाये। बेगम ने टीकाकरण मुहिम को कामयाब बनाने के लिए बच्चों को इनामात देने का ऐलान किया। इससे भी लोग अपने बच्चों को चेचक का टीका लगवाने के लिए पहल करने लगे। टीकाकरण की टीमें भोपाल रियासत के सीहोर और रायसेन और अतराफ़ के क़स्बों में जाती और बच्चों को टीका लगाती। किस टीम ने किस इलाके में कितने टीके लगाए इसका इंद्राज मेहकमाये सेहत के कारकून किया करते। इसी दौरान नवाब शाहजहां बेगम ने भोपाल में द प्रिंस ऑफ वेल्स हॉस्पिटल बनवाया। ये आजकल हमीदिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है। वहीं रियासत की ओरतों के इलाज के लिए लेडी लैन्सडाउन अस्पताल भी उन्ने बनवाया था। कोढ़ जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज के लिए उन्होंने सीहोर में बतोर-ए-खास अस्पताल बनवाया था। यहां एक एक्सपर्ट डॉक्टर की पोस्टिंग की गई थी। इन अस्पतालों में डिस्पेंसरी के ज़रिए चेचक के टीके और दवाएं मुहैया कराई जाती थी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved