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    छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने के मामले में आमने-सामने नेवी और PWD

  • September 01, 2024

    नई दिल्ली. महाराष्ट्र (Maharashtra) के सिंधुदुर्ग (Sindhudurg) स्थित राजकोट किले में 35 फीट ऊंची 17वीं शताब्दी के मराठा योद्धा (Maratha Warriors) छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की प्रतिमा (statue) के 26 अगस्त को अचानक गिरने (falling) से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. इस प्रतिमा का अनावरण पिछले साल 4 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा नौसेना दिवस के अवसर पर किया गया था, जिससे इसकी जिम्मेदारी और रखरखाव को लेकर सवाल उठने लगे हैं.


    इस मुद्दे पर जिम्मेदार एजेंसियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है. एक पैनल इस घटना की जांच कर रहा है, और भारतीय नौसेना तथा लोक निर्माण विभाग (PWD) एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं. PWD के सहायक अभियंता अजीत पाटिल ने इस घटना के संबंध में मालवन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.

    प्रतिमा गिरने को लेकर मचे घमासान
    महाराष्ट्र सरकार और भारतीय नौसेना इस प्रतिमा के गिरने को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. प्रतिमा की स्थिति के बारे में पता चलने के बाद किसी ने भी तुरंत कार्रवाई नहीं की और रखरखाव को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

    प्रतिमा के अनावरण के बाद, राजकोट किले में पांच लाख से अधिक पर्यटक आए, लेकिन अनावरण के बाद रखरखाव की जिम्मेदारी को लेकर अस्पष्टता बनी रही. एफआईआर के अनुसार, PWD नियमित रूप से राजकोट किले के परिसर का निरीक्षण करता है. 20 अगस्त को एक निरीक्षण के दौरान, PWD ने प्रतिमा पर लगे नट और बोल्ट को जंग लगा पाया.

    PWD ने 22 अगस्त को नौसेना को पत्र लिखा, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया, जिसके चार दिन बाद प्रतिमा गिर गई. अगर समय पर कार्रवाई की गई होती तो यह घटना टल सकती थी.

    कुछ दिनों बाद, भारतीय नौसेना को PWD द्वारा प्रतिमा की स्थिति के बारे में सूचित किया गया, लेकिन अनावरण के बाद मरम्मत और रखरखाव कार्य के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया.

    भारतीय नौसेना के सूत्रों का कहना है कि प्रतिमा को विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन किया गया था और इसके निर्माण और स्थापना की निगरानी भारतीय नौसेना ने की थी. 20 अगस्त को राज्य सरकार ने प्रतिमा से संबंधित समस्याओं के बारे में एक पत्र जारी किया था, जिसे राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा देखा जाना था. नौसेना ने कहा कि अनावरण के बाद प्रतिमा के रखरखाव की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की थी.

    FIR में क्या है?
    एफआईआर के अनुसार, जून में जयदीप आप्टे ने प्रतिमा की मरम्मत का काम किया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि भारतीय नौसेना या PWD ने उन्हें मरम्मत के लिए अधिकृत किया था या नहीं. दिलचस्प बात यह है कि अनावरण के बाद प्रतिमा की देखभाल कौन करेगा, इस पर कोई आधिकारिक आदेश नहीं था.

    प्रतिमा को नट और बोल्ट से जोड़ा गया था, जो बारिश और समुद्री नमक के कारण जंग खा गए थे. इस जंग ने न केवल प्रतिमा की संरचनात्मक मजबूती को कमजोर किया, बल्कि उसकी आकृति को भी विकृत कर दिया. एफआईआर ने स्थिति की गंभीरता पर जोर दिया और तत्काल मरम्मत और स्थायी समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि आगे की गिरावट को रोका जा सके.

    विपक्ष का सरकार पर हमला
    इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाते हुए कहा कि जयदीप आप्टे, जो अभी फरार हैं, के महायुति के सहयोगियों (बीजेपी, शिवसेना – एकनाथ शिंदे गुट और एनसीपी – अजित पवार गुट) के साथ संबंध हैं.

    प्रतिमा के गिरने की घटना विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आई है और विपक्ष इस मुद्दे पर महायुति गठबंधन को घेरने की योजना बना रहा है. कुछ महायुति नेताओं के अनुसार, यह घटना छत्रपति शिवाजी महाराज के शाप का परिणाम है और इसका असर चुनावों में महायुति गठबंधन पर पड़ सकता है. अब सबकी नजरें उस पैनल पर हैं जो इस मामले की जांच कर रहा है और प्रतिमा के गिरने के कारणों का पता लगाने में जुटा है. बड़ा सवाल यह है: असली दोषी कौन है?

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