आज यानि 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) प्रारंभ हो चुकी है और नवरात्रि का पहला दिन (Navratri First Day भक्त मां नव दुर्गा (Maa Nav Durga) के प्रथम स्वरुप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जातनी है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय और मैना देवी की पुत्री हैं।मां शैलपुत्री (Mother shailputri) की पूजा करने से व्यक्ति को चंद्र दोष (Lunar fault) से मुक्ति मिल जाती है। यह भी माना जाता है कि नवरात्रि में मां के दर्शन और पूजन से अद्भुत फल मिलता है। जातक को जीवन में सफलता मिलती है। सुख-समृद्धि (Prosperity) की प्राप्ति होती है। इस मौके पर कई लोग घर में कलश स्थापित करते हैं और व्रत रखते हैं। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और कथा।।।
ऐसे करें पूजा
सुबह उठकर स्नान करें और साफ पीले रंग के वस्त्र धारण करें। मां शैलपुत्री को पीला रंग अति प्रिय है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से पहले चौकी पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद उस पर एक कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर नारियल (Coconut)और पान के पत्ते रख कर एक स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:’ मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां को सफेद फूल की माला अर्पित करें। फिर मां को सफेद रंग का भोग जैसे खीर या मिठाई लगाएं। इसके बाद माता कि कथा सुनकर उनकी आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जलाकर हवन करें।
लेकिन इसके बाद सती की जिद को देखकर शिव जी ने उन्हें यज्ञ में जाने की स्वीकृति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो उनकी बहनों ने उनपर कई तरह से कटाक्ष किए। साथ ही भगवान शंकर (Lord Shankar) का भी तिरस्कार किया। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को काफी दुःख पहुंचा। इस अपमान से दुखी होकर सती ने हवन की कूदकर अपने प्राण दे दिए। इसपर भगवान शिव ने यज्ञ भूमि में प्रकट होकर सबकुछ सर्वनाश कर दिया। सती का अगला जन्म देवराज हिमालय के यहां हुआ। हिमालय के घर जन्म होने की वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
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