नई दिल्ली (New Delhi)। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप (shailputri swaroop) की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां (Significance and Powers) अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं।
मां शैलपुत्री को लाल रंग बहुत प्रिय है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल और मीठा पान भेंट करें।
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।
सभी राशियों के लिए शुभ। मेष और वृश्चिक के लिए विशेष फलदायी।
शैलपुत्री के पूजन से संतान वृद्धि और धन व ऐश्वर्य की शीघ्र प्राप्ति होती है। मां सर्व फलदायी हैं।
भक्त पूजा के समय लाल और गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।
घटस्थापना मुहूर्त 22 मार्च 2023
● सुबह 623 से 732 के बीच (लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त)
● 930 से 11 बजे के बीच स्थिर लग्न (वृष) का शुभ मुहूर्त रहेगा
( प्रात11 बजे तक अवश्य कलश स्थापना कर लें)
नवरात्र की तिथियां
प्रतिपदा 22 मार्च (मां शैलपुत्री)
द्वितीय 23 मार्च (मां ब्रह्मचारिणी)
तृतीया 24 मार्च (मां चन्द्रघण्टा)
चतुर्थी 25 मार्च (मां कुष्मांडा)
पंचमी 26 मार्च (मां स्कंदमाता)
षष्टी 27 मार्च (मां कात्यायनी)
सप्तमी 28 मार्च (मां कालरात्रि)
अष्टमी 29 मार्च (मां महागौरी)
नवमी 30 मार्च (मां सिद्धिदात्री) और श्रीराम नवमी ( श्रीराम जन्मोत्सव)
कलश स्थापना की विशेष बातें
● कलश ईशान कोण या पूरब-उत्तर दिशा में स्थापित करें
● कलश पर स्वास्तिक बनाएं। मौली बांधें
● कलश पर अष्टभुजी देवी स्वरूप 8 आम के पत्ते लगाएं
● रोली, चावल, सुपारी, लौंग, सिक्का अर्पित करते हुए कलश स्थापित करें।
अखंड ज्योति के नियम
● घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जला सकते हैं।
● घी का दीपक दाहिनी तरफ और तेल का दीपक बाएं तरफ होगा।
● दीपक में एक लौंग का जोड़ा अवश्य अर्पित करें।
● अखंड ज्योति कपूर और लौंग से आरती करते हुए जलाएं।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकरी व सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य से पेश की गई है हम इन पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं।
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