नवरात्रि के पर्व में मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ अलग अलग रूपों की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि का हर दिन मां के नौ रूपों में से एक को समर्पित होता है। आपको बता दें कि नौ देवियों को 9 दिनों तक भोग लगाया जाता है। कहते हैं कि इस समय भक्त मां दुर्गा के लिए भोग बनाते हैं जिनसे वह प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। इतना ही नहीं मां शक्ति उन्हें बीमारियों से मुक्त करती हैं और आर्थिक समस्याओं को भी दूर करती हैं। इस दौरान भारत के अलग-अलग कोनों में फैले हुए मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिरों में भारी संख्या में भक्तों का जमावाड़ा लगता है। आइए आपको बताते हैं 5 ऐसे मां दुर्गा के मंदिरों के बारे में जहां नवरात्रि के मौके पर दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है। हालांकि कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के चलते इस बार नवरात्रि पर मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखें।
कामाख्या शक्तिपीठ, गुवाहाटी (असम)
कामाख्या शक्तिपीठ(Kamakhya Shaktipeeth) , गुवाहाटी के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर माता सती का योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं।
नैना देवी मंदिर, नैनीताल
नैनीताल (Nainital) में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दोबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
करणी माता मंदिर, राजस्थान
हमारे देश में अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां बार-बार जाने का मन करता है। एक ऐसा ही मंदिर राजस्थान (Rajasthan) के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है। यह मां करणी देवी का विख्यात मंदिर है। यह भी एक तीर्थ धाम है, लेकिन इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता
कोलकाता का मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Maa Dakshineswar Kali Temple) यहां के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण सन 1847 में शुरू हुआ था। कहते हैं जान बाजार की महारानी रासमणि ने स्वप्न देखा था, जिसके अनुसार मां काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। उसके बाद इस भव्य मंदिर में मां की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई। सन् 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है।
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