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    औषधीय विज्ञान भी है नवरात्रि का

  • October 10, 2021

    – डॉ. निवेदिता शर्मा

    सर्दी के आगमन के साथ ही भारतीय जीवन के परम्परागत धार्मिक उत्सवों में नवरात्रि का अपना महत्व है। यह साधना के नौ दिन हैं। यह आत्म मंथन के नौ दिन हैं। जीवन में अनन्त ऊर्जा प्राप्त कर आगे सफलता के पथ पर बढ़ने के लिए विशेष उत्साह संचार के भी यह नौ दिन हैं। शक्ति की उपासना का इसमें निर्देश दिया गया है, किंतु यह ज्ञान आज बहुत लोगों तक पहुंचाने की आवश्यकता है कि यह शक्ति की उपासना आखिर किन-किन स्तरों से हैं। यहां देवि भागवत की बात ना करते हुए दुर्गा सप्तशती की ही बात करें तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड के रहस्य इसमें सांकेतिक रूप से दिए गए हैं । हम सभी जानते हैं कि कोशिका शरीर विज्ञान की सबसे छोटी जीवंत इकाई है। इस ग्रंथ में इसकी भी गहराई एवं माता के इस रूप के बारे में भी लिखा गया है। यहां ऊर्जा की स्त्रोत मां ”कौशिकी” के नाम से विख्यात होती हुई दृष्टिगत होती हैं। ऐसे ही विज्ञान के साथ शरीर को शक्ति सम्पन्न रखने के लिए औषधि के रूप में नौ दिनों तक किन औषधियों का मनुष्य को सेवन करना चाहिए और सिर्फ ये नौ दिन ही नहीं, जीवन में सदैव ही मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर से शक्ति सम्पन्न बने रहने के लिए कैसे इन औषधियों का सेवन सतत करते रहना चाहिए, इस को लेकर बात करें तो वस्तुत: दुर्गाकवच में इसके संदर्भ विस्तार से दिए गए हैं ।

    वास्तव में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपों से जुड़ी नौ औषधियों का प्रयोग करते हुए सहज ही अनेक बीमारियों से दूर रहा जा सकता है। मां दुर्गा की ही नौ रूप मानी जाने वाली ये नौ औषधियां भोजन में लेने से ना सिर्फ इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक हैं बल्कि शरीर को कैंसर जैसी कई बीमारियों से लड़ने में भी मदद करती हैं । नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को लेकर यह भी कहा जा सकता है कि यह सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में विद्वानों के सामने आईं । दुर्गा सप्तशती कहती है कि चिकित्सा प्रणाली का यह रहस्य स्वयं ब्रह्म स्वरूप ब्रह्माजी के माध्यम से जगत को मिला। उन्होंने जिन नौ औषधियों का विशेष वर्णन किया है, वह समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं। वस्तुत: दुर्गा कवच अठारह पुराणों में से मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है।

    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
    सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

    जब इन औषधियों के विषय में वैद्य गोपाल मेहता बताते हैं कि आयुर्वेद के ऋषियों ने भी इन दिनों में नौ तरह की औषधियों के सेवन का वर्णन किया है। साधना के ये नौ दिन विशेष तौर से हमें दीर्घायु, ऊर्जावान और बलवान बनाने वाले हों, इसके पीछे का यही उद्देश्य है। इससे तमाम प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी लाभ आपको अपने जीवन में देखने को मिल जाएंगे । वैद्य मेहता कहते हैं कि ये दिव्यगुणयुक्त औषधियां रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी बहुत सहायक हैं। इसके साथ ही यह बदलते मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को ढालने में सक्षम हैं। इन नौ दिनों में विशेषकर इन नौ प्रकार की औषधियों हरड़, ब्राह्मी ,चन्दसूर, कूष्मांडा, अलसी, मोईपा या माचिका, नागदान, तुलसी एवं शतावरी का सेवन करना चाहिए । वे यह भी कहते हैं कि सिर्फ इन नौ दिन ही नहीं आगे भी जब तक सर्दी रहती है, प्राय: इन नौ औषधियों का आवश्यकता के अनुसार चिकित्सकीय परामर्श से सेवन कर सकते हैं । आप ऐसा कर तमाम प्रकार की बीमारियों से दूर रहते हैं।

    ये हैं नौ प्रमुख औषधियां
    1. प्रथम शैलपुत्री यानी हरड़ – यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए सर्दियों में इसका सेवन कई रोगों से बचाने में मदद करता है। हरड़, हिमावती है। इससे पेट संबंधी समस्याएं नहीं होती और ये अल्सर में काफी फायदेमंद है।

    2.द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी- यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। इसके साथ ही इसका नियमित सेवन पाचन क्रिया को भी दुरूस्त रखता है। यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और आयुर्वेद के चिकित्सक गैस एवं मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा के रूप में भी इसका उपयोग करते हैं। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है।

    3. तृतीय चंद्रघंटा यानी चन्दुसूर- इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। मालवांचल में इसे आरिया के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। जब किसी बच्चे का कद नहीं बढ़ता तब इसका सेवन बहुत लाभकारी होता है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। इसका प्रयोग प्रसूतावस्था में बहुत लाभदायक है, यह स्तनों में दूध को बढ़ाने में सहायक है। साथ ही यह काम यानी कि शरीर की ऊर्जा क्षमता को अत्यधिक बढ़ाने में भी सहायक है।

    4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानी पेठा – इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं । यह औषधि शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के साथ रक्तपित्त, रक्त विकार को दूर करती है। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक, पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। दूसरे अर्थों में कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। रोजाना इसका सेवन मानसिक और दिल की बीमारियों से भी बचाता है।

    5.पंचम स्कंदमाता यानी अलसी- यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होता है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। अलसी का सेवन कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम का खतरा घटाता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाली औषधि है। यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करती है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करती है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करती है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, प्रोटीन, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है। अलसी एनीमिया, जोड़ों के दर्द, तनाव, मोटापा घटाने में भी फायदेमंद है। इसके लिए श्लोक आयुर्वेद में है –

    अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।

    अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
    उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।

    6.षष्ठम कात्यायनी यानी मोइया – इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है। इसके अलावा यह औषधि कैंसर का खतरा भी घटाती है।

    7. सप्तम कालरात्रि यानी नागदौन- यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। इसके सेवन से ब्रेन पावर बढ़ती है और तनाव, डिप्रेशन, ट्यूमर, अल्जाइमर जैसी समस्याएं दूर रहती हैं। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। यह मानव शरीर को ऊर्जा देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इसकी 2-3 पत्तियां काली मिर्च के साथ सुबह खाली पेट लेने से पाइल्स में फायदा मिलता है। साथ ही इसके पत्तों से सिंकाई करने पर फोड़े-फुंसी की समस्या भी दूर होती है।

    8. देवी महागौरी – तुलसी – नवदुर्गा का आंठवा रूप महागौरी को औषधि नाम तुलसी के रूप में भी जाना जाता है। सेहत के लिए भी यह रामबाण औषधि है। तुलसी का काढ़ा या चाय रोजाना पीने से खून साफ होता है। साथ ही इससे दिल के रोगों का खतरा भी कम होता है। यही नहीं, इससे कैंसर का खतरा भी कम होता है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है। इसके लिए आयुर्वेद में श्लोक आया है –

    तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।

    अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: ।
    तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।

    मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

    9. नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री- इसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। शतावर में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लामेट्री और घुलनशील फाइबर होता है, जो पेट को दुरूस्त रखने के साथ कई रोगों से बचाने में मददगार है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है, उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। कुल मिलाकर यह स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन औषधि है। यह रक्त विकार को दूर करने में मदद करती है। वहीं रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं पनपतीं।

    इस तरह माता के शक्ति साधना के विशेष नौ दिनों में इन नौ औषधियों का सेवन करना सभी के लिए उसके शरीर के गुणधर्म के हिसाब से बहुत लाभदायक है। शक्ति स्वरूपा मां औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक करने का कार्य करती हैं । अत: मनुष्य को इन औषधियों का प्रयोग इन दिनों शीतकाल में विशेष रूप से अपने शरीर के गुणधर्म अनुसार, वैद्य के उचित मार्गदर्शन पर जिस मात्रा में वे बताएं, उतनी मात्रा में नियमित रूप से अवश्य ही करते रहना चाहिए। वास्तव में यह सभी जानकारी प्राप्त करने के बाद कहना होगा कि स्वस्थ बने रहने और शक्ति सम्पन्न बनने रहने के लिए मां की इन नौ दिनों के अतिरिक्त भी सतत साधना से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता है।

    (लेखिका जैव विविधता एवं सूक्ष्म जीवविज्ञान की अध्येता हैं)

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