उज्जैन (Ujjain)। हिंदू धर्म में नवरात्रि (Navratri ) का खास महत्व है। मां दुर्गा की उपासना के लिए साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है, दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रत्यक्ष (चैत्र और शारदीय) (Chaitra and Sharadiya) नवरात्रि होती है। अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि (Navratri) के 9 दिनों में भक्त माता के नौ रूपों का विधि-विधान से पूजा करते हैं. नवरात्रि के सातवें दिन माता दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि (Mata Kalratri Puja) की पूजा अर्चना की जाती है. माता कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला होता है. मां के बाल लंबे और बिखरे हुए होते हैं. गले में माला है, जो बिजली की तरह चमकती रहती है. माता कालरात्रि के चार हाथ हैं। मां के इन हाथों में खड़क, लोहअस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा है।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि को महायोगिनी महायोगिश्वरी भी कहा जाता है. देवी बुरे कर्मों वाले लोगों का नाश करने और तंत्र-मंत्र से परेशान भक्तों का कल्याण करने वाली हैं. देवी की पूजा से रोग का नाश होता है और शत्रुओं पर विजय मिलती है. ग्रह बाधा और भय दूर करने वाली माता की पूजा इस दिन जरूर करनी चाहिए.
देवी कालरात्रि का भोग
देवी को लाल चीजे पसंद है. गुड़ या गुड़ से बनी चीजों को भोग लगाना चाहिए और मां को लाल चंपा के फूल अर्पित करें.
मन्त्र
देवी कालरात्रि की पूजा का मंत्र ‘दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे.
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते। या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’.
शारदीय नवरात्रि में 9 दिनों की तिथि
15 अक्टूबर 2023 – पहला दिन, घटस्थापना, मां शैलपुत्री की पूजा
16 अक्टूबर 2023 – दूसरा दिन, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
17 अक्टूबर 2023 – तीसरा दिन, मां चन्द्रघंटा की पूजा
18 अक्टूबर 2023 -चौथा दिन, मां कूष्मांडा की पूजा
19 अक्टूबर 2023 – पांचवा दिन, मां स्कंदमाता की पूजा
20 अक्टूबर 2023 – छठा दिन, मां कात्यायनी की पूजा
21 अक्टूबर 2023 – सातवां दिन, मां कालरात्रि की पूजा
22 अक्टूबर 2023 – आठवां दिन, मां सिद्धिदात्री की पूजा
23 अक्टूबर 2023 – नवां दिन, मां महागौरी की पूजा नवरात्रि व्रत पारण
24 अक्टूबर 202- विजयादशमी, दशहरा
हिंदू मान्यताओं के अनुसार माता कालरात्रि के इन मंत्रों का जप करने से भक्तों के सारे भय दूर होते हैं. माता की कृपा पाने के लिए गंगा जल, पंचामृत, पुष्प, गंध, अक्षत से माता की पूजा करनी चाहिए. इस मंत्र के जप से माता कालरात्रि की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है और माता अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती है. इसी कारण से माता कालरात्रि का एक नाम शुभंकरी भी पड़ा है.
ऐसे प्रकट हुआ मां का यह स्वरूप
हिंदू धार्मिक पुराणों में उल्लेख मिलता है कि माता भगवती के कालरात्रि स्वरूप की उत्पत्ति दैत्य चण्ड-मुण्ड के वध के लिए हुई थी. कथा मिलती है कि दैत्य राज शुंभ की आज्ञा पाकर चण्ड-मुण्ड अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर माता को पकड़ने के लिए गिरिराज हिमालय के पर्वत पर जाते हैं. वहां पर वह माता को पकड़ने का दुस्साहस करते हैं. इस पर मां को क्रोध आता है और उनका मुंह काला पड़ जाता है. भौहें टेढ़ी हो जाती है और तभी विकराल मुखी मां काली प्रकट होती हैं. उनके हाथों में तलवार और शरीर पर चर्म की साड़ी और नर मुंडों की माला विभूषित होती है. अपनी भयंकर गर्जना से संपूर्ण दिशाओं को गुंजाते हुए वे बड़े-बड़े दैत्यों का वध करती हुईं दैत्यों की सेना पर टूट पड़तीं है और उन सब का भक्षण करने लगती है.
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