अनूपपुर । प्रधानमंत्री से प्रभावित संस्था (Prime Minister-influenced organization) ने लोकल फार वोकल से रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के त्यौहार में भाइयों की कलाई पर इस बार विदेशी नहीं बल्कि शुद्ध देशी राखियों से बहनें भाइयों की कलाइयों को सजाएंगी। यह राखियां पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल (इको फ्रेंडली) भी है। जिले के जैतहरी तहसील क्षेत्र के ग्राम अंजनी में प्रज्ञा मंडल और स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा गोबर एवं पवित्र वस्तुओं द्वारा राखी बनाई गई है। जिले के बाजारों में स्वदेशी राखियां पहुंच गई हैं और लोगों के द्वारा पसंद भी खूब की जा रही हैं।
चीनी राखियों के बंद होने के बाद अब देश में बनी ही राखी बाजार में पहुंच रही हैं। जिससे राखी बनाने वाले मजदूरों को रोजगार मिल रहा है और राखी बनाने वाले लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। जैतहरी तहसील क्षेत्र के ग्राम अंजनी स्थित है प्रज्ञा मंडल गौशाला संस्था की पहल पर यहां की गंगा अजीविका स्व सहायता समूह द्वारा इस वर्ष गोबर की राखियां बनाने का काम शुरू किया गया है। इन राखियों की अच्छी मांग भी बनी हुई है।
प्रज्ञा मंडल के संचालक भारत राठौर ने बताया कि संस्था गायत्री परिवार से संबंधित है और गोशाला का संचालन करती है। गाय की हर वस्तु पवित्र और उपयोगी है। गाय के गोबर से राखियां बनाने का नवाचार शुरू किया गया। गंगा अजीविका स्व सहायता समूह की पांच महिला सदस्यों द्वारा इन राखियों का निर्माण किया जा रहा है।
जुलाई माह से राखी बनाने का कार्य शुरू किया गया है। विभिन्ना डिजाइन में यह राखियां तैयार की गई है। राखी बनाने में गोबर, तुलसी, गंगाजल, मौली धागा और हल्के रंगों का इस्तेमाल किया गया है ताकि राखी आकर्षक नजर आए। राखी निर्माण के दौरान गायत्री मंत्र से इन्हें अभिव्यक्त भी किया गया है।
स्व सहायता समूह के दो सदस्य इंद्रावती राठौर और शालिनी राठौर ने नागपुर गायत्री परिवार से राखी बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया और अब यह महिलाएं स्थानीय स्तर पर स्वदेशी राखियों का निर्माण कर रही हैं। संस्था का पहला वर्ष और पहला प्रयास है। करीब 4 हजार राखियां बनाई गई हैं।
विदित हो कि गोबर से बनी राखियों की बात करें तो बाजार में उपलब्ध अन्य राखियों की तुलना में इनके दाम भी कम है। 10 से 20 रुपए गोबर से बनी राखी का मूल्य रखा गया है। बता दे यह संस्था पर्यावरण को देखते हुए पूरी तरह इको फ्रेंडली राखियां तैयार की है। अनूपपुर जिले सहित आसपास के जिलों के साथ छत्तीसगढ़ के बाजार में राखियां उपलब्ध कराई गई हैं।