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    राष्ट्रवाद बनाम कट्टरवाद

  • June 21, 2022

    – डॉ. विपिन कुमार

    भारत में इन दिनों जो विवाद हो रहा है, वह राष्ट्रवाद बनाम कट्टरवाद का है। विवाद के पक्ष और विपक्ष से ही आप समझ सकते है कि इस हंगामे के पीछे का मकसद क्या है। केन्द्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी इन दिनों नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल जैसे अपने नेताओं के कारण काफी मुसीबतों का सामना कर रही है। दरअसल भाजपा की प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा ने बीते दिनों पैगंबर मोहम्मद को लेकर एक बयान दे दिया था, जिसके बाद इस मुद्दे ने अंतरराष्ट्रीय रूप ले लिया और इस गैरजिम्मेदार रवैये के कारण देशविरोधी तत्वों को बढ़-चढ़कर बोलने का मौका मिल गया।

    इस पूरे घटनाक्रम ने भारत के लिए कई कूटनीतिक मुसीबतों को खड़ा कर दिया है और आज पाकिस्तान, सऊदी अरब, कतर जैसे तमाम कट्टरपंथी विचारधारा वाले देश भारत को धार्मिक संप्रभुता की सीख दे रहे हैं। लेकिन भाजपा सिद्धांतों वाली पार्टी है और पार्टी ने दोनों ही नेताओं को तुरंत प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है। गौरतलब है कि इस्लामिक सहयोग संगठन के तहत 57 देश हैं। हैरानी वाली बात यह है कि इस मामले को लेकर अभी तक सिर्फ 16 देशों ने ही अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है और कुछ देशों ने तो हास्यास्पद रूप से भारत को माफी मांगने की नसीहत दी है।सवाल यह उठता है कि भारत माफी क्यों मांगे। यह स्पष्ट रूप से मुस्लिम विरोधी माहौल बनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई को वैश्विक पटल पर आर्थिक, कूटनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में रोकने का प्रयास है।

    इन देशों को भारतीय विदेश मंत्रालय ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत की छवि मुस्लिम विरोधी बनाने की कोशिश की गई है। बात चाहे गोधरा कांड की हो या राम मंदिर की। उन्हें और भाजपा को विपक्षी पार्टियों ने हमेशा बेवजह निशाने पर लिया। हालांकि विरोधियों की यह नीति उन्हीं पर भारी पड़ी है। भाजपा हमेशा राष्ट्र प्रथम नीति के तहत राजनीति करती है। जबकि कांग्रेस समेत सभी विरोधी पार्टियों ने हमेशा एक क्षेत्र विशेष या वर्ग विशेष के तहत राजनीति की है। लेकिन अब जनता काफी जागरूक हो चुकी है और इसका जवाब उन्हें चुनाव में मिल रहा है। जब नरेन्द्र मोदी ने 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो उन्हें लेकर तथाकथित बुद्धजीवियों ने तमाम तरह के आशंका व्यक्त की थी कि उनके सत्ता में आने से देश टूट जाएगा। वगैरह-वगैरह। लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत।

    आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबकी समुदायों की पहली पसंद हैं। वह हिन्दू हों चाहे मुसलमान। यही वजह है कि विपक्षी पार्टियां ध्रुवीकरण की राजनीति करने लगती हैं पर प्रधानमंत्री ने अपनी जन-धन योजना,उज्ज्वला योजना जैसी अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं से सबको हमेशा मुंहतोड़ जवाब दिया है। आज प्रधानमंत्री का खौफ दिखाकर तमाम विरोधी पार्टियां मुसलमानों का वोट बैंक बनाने में लगी है। लेकिन इससे ने भाजपा को कोई डर है और न ही मुसलमान इस डर को स्वीकारने के लिए तैयार हैं। इसकी वजह यह है कि मुसलमानों ने पहले तमाम दलों की सच्चाई देखी है और वे फिलहाल भाजपा या प्रधानमंत्री मोदी को छोड़कर किसी और पर भी विश्वास कर सकते हैं कहना मुश्किल है। खासकर मुस्लिम महिलाएं तो और किसी पर भरोसा करने को तैयार ही नहीं हैं।

    प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और बुर्का प्रथा जैसी कुरीतियों से मुक्ति दिलाने के लिए उल्लेखनीय प्रयास किये हैं। नतीजन सदियों से चले आ रहे इन बंधनों से आजाद होने के बाद मुस्लिम महिलाओं में नए आत्मविश्वास का संचार हुआ है। आज कोई भी उनके खिलाफ अत्याचार करने से पहले हजार बार सोचता है। यही नहीं मुसलमानों समेत सभी अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा जा रहा है। 5 साल में 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृत्ति देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वक्फ प्रॉपर्टी के विकास पर भी काफी जोर दिया जा रहा है। इन संपत्तियों पर स्कूल, कॉलेज और सामुदायिक भवन आदि खोलने पर केन्द्र सरकार 100 फीसदी फंडिंग देगी। मुसलमानों की आस्था का सम्मान करने के लिए हज कोटा भी बढ़ाकर 2 लाख से अधिक कर दिया गया है। लेकिन विपक्षी पार्टियां इन बदलावों पर कभी बात नहीं करेंगी, क्योंकि उन्होंने वास्तव में मुसलमानों को वोट बैंक से ज्यादा कुछ समझा ही नहीं।

    (लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं।

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