नई दिल्ली (New Delhi)। नेशनल हेराल्ड (National Herald ) की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं। पीएमएलए अदालत (PMLA Court) ने ईडी के पक्ष में फैसला सुनाया है। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) (Enforcement Directorate (ED)) द्वारा धन शोधन मामले में नेशनल हेराल्ड अखबार और उससे संबंधित कंपनियों की लगभग 752 करोड़ रुपये की संपत्ति के कुर्की (Attachment of assets worth Rs 752 crore) के आदेश को बरकरार रखा है। बुधवार को प्रधिकरण ने अपने आदेश में कहा कि उनका मानना है कि ईडी द्वारा कुर्क की गई चल संपत्ति और ‘इक्विटी’ शेयर अपराध से अर्जित की गई है। यह धन शोधन के अपराध से संबंधित हैं। इस फैसले के बाद ईडी द्वारा कंपनी की संपत्ति को अपने कब्जे में लेने के लिए हरी झंडी मिल गई है। ईडी अब दिल्ली में आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस, मुंबई, लखनऊ सहित अन्य स्थानों को अपने कब्जे में ले सकती है।
गांधी परिवार से कैसे जुड़ा है नेशनल हेराल्ड?
देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 20 नवंबर 1937 को एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी AJL का गठन किया था। इसका उद्देश्य अलग-अलग भाषाओं में समाचार पत्रों को प्रकाशित करना था। तब AJL के अंतर्गत अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज समाचार पत्र प्रकाशित हुए।
भले ही AJL के गठन में पं. जवाहर लाल नेहरू की भूमिका थी, लेकिन इसपर मालिकाना हक कभी भी उनका नहीं रहा। क्योंकि, इस कंपनी को 5000 स्वतंत्रता सेनानी सपोर्ट कर रहे थे और वही इसके शेयर होल्डर भी थे। 90 के दशक में ये अखबार घाटे में आने लगे। साल 2008 तक AJL पर 90 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज चढ़ गया। तब AJL ने फैसला किया कि अब समाचार पत्रों का प्रकाशन नहीं किया जाएगा। अखबारों का प्रकाशन बंद करने के बाद AJL प्रॉपर्टी बिजनेस में उतरी।
सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाया मामला
2012 में भाजपा के नेता और देश के नामी वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस, पत्रकार सुमन दुबे और टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा के खिलाफ मामला दर्ज कराया। तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया कि YIL ने 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति और लाभ हासिल करने के लिए “गलत” तरीके से निष्क्रिय प्रिंट मीडिया आउटलेट की संपत्ति को “अधिग्रहित” किया।
स्वामी ने यह भी आरोप लगाया कि YIL ने 90.25 करोड़ रुपये की वसूली के अधिकार हासिल करने के लिए सिर्फ 50 लाख रुपये का भुगतान किया था, जो AJL पर कांग्रेस पार्टी का बकाया था। यह राशि पहले अखबार शुरू करने के लिए कर्ज के रूप में दी गई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि AJL को दिया गया कर्ज “अवैध” था, क्योंकि यह पार्टी के फंड से लिया गया था।
ईडी की जांच, कोर्ट से सोनिया-राहुल को जमानत
2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने शुरू की। मामले में सोनिया और राहुल गांधी पर कार्रवाई की तलवार लटकने लगी थी। ऐसे में दोनों कोर्ट पहुंच गए। 19 दिसंबर, 2015 को निचली अदालत ने इस मामले में दोनों को जमानत दे दी थी। 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्यवाही रद्द करने से इनकार करते हुए मामले के सभी पांच आरोपियों (सोनिया, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस और सुमन दुबे) को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी थी।
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