– मदन पालीवाल
राजस्थान के नाथद्वारा में स्थित विश्वास स्वरूपम (स्टैच्यू ऑफ बिलीफ) पर्यटकों को लुभाने लगा है। दो साल पहले नवंबर में उद्घाटन के बाद से अब तक 15 लाख से अधिक पर्यटक यहां पहुंचकर भगवान शिव का आशीर्वाद ले चुके हैं। यहां भगवान शिव की यह 369 फीट ऊंची मूर्ति है। यह केंद्र तेजी से प्रमुख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्थल के रूप में उभर रहा है। नाथद्वारा झीलों की नगरी उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर है। राजसमंद के नाथद्वारा के आसपास का इलाका प्राकृतिक रूप से बेहद समृद्ध है। अरावली पर्वतमाला के पास बनास नदी के किनारे पर बसे इस नाथद्वारा को श्रीनाथजी नाथद्वारा के नाम से ही जाता जाता है। श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से आज नाथद्वारा की पहचान केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी है।
यह जानना भी दिलचस्प होगा कि यह मूर्ति दुनिया में भगवान शिव की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है। यह 32 एकड़ में फैली हुई है और कुल ऊंचाई 112 मीटर (34 मीटर आधार सहित) है। इसे 2.5 लाख क्यूबिक टन कंक्रीट से बनाया गया है। इस मूर्ति का जीवनकाल लगभग 250 वर्ष अनुमानित है। इसे 250 किलोमीटर प्रति घंटे तक की हवाओं को आसानी से झेलने और भूकंपीय क्षेत्र चतुर्थ में भी स्थिर रहने के हिसाब से डिजाइन किया गया है। प्रतिमा में 270 फीट और 280 फीट की ऊंचाई पर दीर्घाएं हैं।
यहां पर्यटक 351 फीट की ऊंचाई पर जाकर जलाभिषेक और भू-स्तर पर चरणवंदना कर सकते हैं। साथ ही स्नो पार्क, वैक्स म्यूजियम व गेम जोन में वे मनोरंजन भी कर सकते हैं।
यहां रोमांच बढ़ाने के लिए 20 फीट की ऊंचाई पर एक नया अनोखा 3डी अनुभव ‘आत्ममंथन’ शुरू किया गया है। इस आकर्षण में 17 अलग-अलग विशेष प्रकार की दीर्घाएं हैं। यह दीर्घाएं प्रकृति के विभिन्न तत्वों से प्रेरित है। कुछ में पांच तत्वों- वायु, जल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, और ब्रह्माण्ड दर्शन का अन्वेषण किया गया है। कुछ पौराणिक कथाओं जैसे समुद्र मंथन और कल्पतरु वृक्ष से प्रेरित हैं। ‘क्रिस्टल टेरेन’, ‘द काइनेसिस ऑफ बिलीफ’ और ‘ओम बेल’ जैसी दीर्घाएं गहन और परिवर्तनकारी अनुभव प्रदान करती हैं। ‘कैलास मानसरोवर’ और ‘टनल टू इटरनिटी’ जैसी दीर्घाएं आत्मावलोकन और आत्मज्ञान को प्रेरित करती हैं।
मिराज समूह इसे अब वैश्विक आध्यात्मिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में प्रयासरत है। खास बात यह है कि मेवाड़ इलाके के राजसमंद जिले के नाथद्वारा में स्थित जगप्रसिद्ध श्रीनाथजी देशभर में आराध्य देव के रूप में पूजे जाते हैं। श्रीनाथजी नाथद्वारा में हवेली में विराजते हैं। यह हवेली श्रीनाथजी की हवेली के रूप में जानी जाती है। इसे मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा राज सिंह ने बनवाया गया था। मेवाड़ में श्रीनाथजी की पूजा बाल स्वरूप के रूप में की जाती है। यहां पर दिन में करीब आठ बार भगवान की अलग-अलग रूपों में पूजा अर्चना होती है।
श्रीनाथजी को लेकर कई किवदंतियां प्रचलन में हैं। श्रीनाथजी की इस हवेली के निर्माण से मुगल शासक औरंगजेब से सीधा संबंध रहा है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि जब औरंगजेब देश के हिंदू मंदिरों को तुड़वा रहा था तब मथुरा में बनाई गई मूर्तियों को देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाया गया। उन्हीं में से एक श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप की मूर्ति मेवाड़ के श्रीनाथजी मंदिर में स्थित है। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह ने औरंगजेब से मूर्ति की रक्षा का वचन दिया था। यहां कृष्ण जन्मोत्सव पर रात ठीक 12 बजे प्रभु श्रीनाथजी को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। भगवान के मंदिर मोती महल में बिगुल और बैंड बजाकर उनके जन्म की खुशियां मनाई जाती हैं। यहां प्रभु श्रीनाथजी का विग्रह दुर्लभ काले संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। विग्रह का बायां हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी श्रीनाथजी के मंदिर के दर्शन कर चुके हैं। मेवाड़ की पावन धरा पर पहुंचने वाले लगभग सभी लोग श्रीनाथजी के दर्शन किए बगैर यहां से नहीं जाते हैं।
(लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
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