डेस्क। नासा (NASA) के पर्सिवियरेंस रोवर ने मंगल ग्रह (Mars) पर अपने काम के नतीजे देने शुरु कर दिए हैं। हाल ही में उसके इंजेन्यूटी हेलीकॉप्टर ने मुश्किल हालतों में आखिरकार उड़ान भरने में सफलता पाई। इसके अलावा रोवर ने मंगल ग्रह की बहुत सी तस्वीरें भी पृथ्वी पर भेजी हैं। लेकिन अपने प्रमुख उद्देश्यों में से एक में सफलता पाते हुए रोवर ने मंगल ग्रह पर सांस लेने योग्य ऑक्सीजन (Oxygen) का निर्माण कर लिया है।
पहली बार किसी दूसरे ग्रह पर ऑक्सीजन का निर्माण
यह पहली बार के पृथ्वी के बाहर किसी दूसरे ग्रह पर सांस लेने योग्य ऑक्सीजन का निर्माण हो सका है। पर्सवियरेंस रोवर ने मॉक्सी नाम के उपकरण से मंगल के वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को लेकर शुद्ध सांस लेने योग्य ऑक्सीजन का निर्माण किया है। नासा ने अपनी इस सफलता की घोषणा बुधवार को की है।
क्यों किया गया जा रहा है ये प्रयोग
मॉक्सी नासा का मार्स ऑक्सीजन इन सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन (MOIXE) नाम का उपकरण है। इसका उद्देश्य मंगल ग्रह पर वहां की ही कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर ऑक्सीजन का निर्णाण करना था। यह प्रयोग भविष्य में मंगल पर जाने वाले मानव अभियान के लिए किया जा रहा है।
जरूरत होगी बहुत सी ऑक्सीजन की
नासा का उद्देश्य साल 2033 तक मंगल पर मानव पहुंचाने के है और वह इससे संबंधित आने वाली तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है। इसमें से एक चुनौती मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन का निर्माण करना होगा क्योंकि मंगल ग्रह तक इतनी ज्यादा तादात में ऑक्सीजन ले जाना संभव नहीं होगा। ऐसे में बहुत जरूरी होगा कि मंगल ग्रह पर ही ऑक्सीजन बनाने की व्यवस्था की जाए।
कितनी मात्रा में बनी ऑक्सीजन
इस प्रयोग में मॉक्सी ने पांच ग्राम की ऑक्सीजन का निर्माण किया है। यह ऑक्सीजन एक अंतरिक्ष यात्री के लिए 10 मिनट के लिए सांस लेने योग्य होगी। यह बहुत बड़ा उत्पादन नहीं है, लेकिन पहले प्रयोग के लिहाज से यह एक बड़ी उपलब्धि है।
कैसे बनाई ऑक्सीजन
यह उपकरण इलेक्ट्रोलायसिस पद्धति का उपयोग कर असीम ऊष्मा का उपयोग कर कार्बन जाइऑक्साइड से कार्बन और ऑक्सीजन को अलग करता है। मंगल पर इस गैस की कमी नहीं है क्योंकि वहां का 95 प्रतिशत वायुमंडल इसी से बना है। जबकि वहां के वायुमंडल का 5 प्रतिशत हिस्सा नाइट्रोजन और ऑर्गन से बना है और ऑक्सीजन बहुत ही कम मात्रा में है।
बहुत अधिक मात्रा में जरूरत
उल्लेखनीय है कि मंगल के पतले वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की भरमार है और जो थोड़ी बहुत ऑक्सीजन मंगल पर होती भी है तो वह अंतरिक्ष में उड़ जाती है। मंगल की पृथ्वी से दूरी 29.27 करोड़ किलोमीटर है और मंगल पर पहुंचने के लिए ही छह से आठ महीने का समय लगेगा। ऐसे में मंगल पर बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन की निर्माण के लिए इस प्रयोग को चुना गया है।
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