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    NASA: सूर्य के अनदेखे राज खोलेंगे भारतीय मूल के वैज्ञानिक बड़जात्या, सौंपी मिशन की बड़ी जिम्‍मेदारी

  • October 11, 2023

    नई दिल्‍ली (New Dehli)। बड़जात्या (Barjatya)फ्लोरिडा में एम्ब्री-रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर(professor) हैं। उन्होंने बताया कि एटमास्फेरिक परटरबेशंस अराउंड द इक्लिप्स पाथ (एपीईपी) नामक इस मिशन (Mission)का उद्देश्य यह देखना है कि सूर्य की रोशनी (lights)में अचानक आई कमी हमारे ऊपरी वायुमंडल को किस तरह प्रभावित करती है।


    अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भारतवंशी वैज्ञानिक आरोह बड़जात्या को सूर्य के अनदेखे राज खोलने वाले एक बड़े मिशन की जिम्मेदारी सौंपी है। अमेरिका के कई हिस्सों में लोग 14 अक्तूबर को सूरज की चमक को सामान्य से 10 प्रतिशत तक फीकी पड़ते देखेंगे। आरोह की टीम इसी दिन कुंडलाकार सूर्य ग्रहण के दौरान तीन रॉकेट लॉन्च करने वाली है।

    बड़जात्या फ्लोरिडा में एम्ब्री-रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि एटमास्फेरिक परटरबेशंस अराउंड द इक्लिप्स पाथ (एपीईपी) नामक इस मिशन का उद्देश्य यह देखना है कि सूर्य की रोशनी में अचानक आई कमी हमारे ऊपरी वायुमंडल को किस तरह प्रभावित करती है।

    35-35 मिनट के अंतराल में छोड़े जाएंगे रॉकेट

    मिशन के दौरान पहला रॉकेट सूर्यग्रहण से 35 मिनट पहले, दूसरा सूर्यग्रहण के दौरान और तीसरा 35 मिनट के बाद छोड़ा जाएगा। इन्हें वलयाकार पथ के ठीक बाहर की ओर भेजा जाएगा जहां सूर्य के सामने से चंद्रमा गुजरता है। अरोह बड़जात्या ने बताया कि इनमें लगे उपकरण विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र, घनत्व और तापमान आदि में आने वाले बदलावों का अध्ययन करेंगे।

    सतह से 70 से 325 किमी ऊपर होने वाले विभिन्न बदलावों को मापेंगे

    ये रॉकेट सतह से 70 से लेकर 325 किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न चीजों में आने वाले बदलावों को मापेंगे। आरोह ने बताया कि अगर ये मिशन कामयाब रहा तो सूर्य ग्रहण के दौरान आयनमंडल में अलग अलग जगहों से माप लेने का यह पहला प्रयोग होगा। यह अपने आप में एक बड़ी बात होगी। नासा के अनुसार मिशन यह जानने की कोशिश करेगा कि सूरज की रोशनी में अचानक गिरावट हमारे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल को कैसे प्रभावित करती है।

    वायुमंडल का आयनित भाग है आयनमंडल

    ग्रहण पथ या एपीईपी के आसपास को वायुमंडलीय प्रभाव कहा जाता है। आयनमंडल वायुमंडल का आयनित भाग है जो समुद्र तल से 48 से 965 किलोमीटर ऊपर पाया जाता है। यह वायुमंडल का वह हिस्सा है जहां सूर्य से अल्ट्रा वायलेट विकिरण इलेक्ट्रॉनों को परमाणुओं से अलग करके आयन और इलेक्ट्रॉन बनाता है। सूर्य की निरंतर ऊर्जा इन कणों को, जो परस्पर आकर्षित होते हैं, पूरे दिन अलग होने से रोकती है, लेकिन जैसे ही सूर्य क्षितिज से नीचे डूबता है, वो तटस्थ परमाणुओं में पुनः संयोजित हो सकते हैं। फिर सूर्योदय के समय वे एक बार फिर आयनित हो जाते हैं।

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