नई दिल्ली: अमेरिका चंद्रमा (Moon) पर एक बार फिर इंसान को भेजने की तैयारी कर रहा है. लेकिन इस बार चंद्रयात्रियों को कुछ घंटों के लिए नहीं भेजा जाएगा बल्कि नासा (NASA) का इरादा को वहां लंबी उपस्थिति बनाने का है.
चंद्रमा पर अस्थायी रूप से रहने के लिए भी कई समस्याओं का सामना करना होगा. इसके लिए ऊर्जा की जरूरत भी होगी जो चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी से पर्याप्त रूप से नहीं मिलेगी. इसीलिए नासा ने एक खास योजना पर काम करने का ऐलान किया है. नासा अगले 10 सालों में चंद्रमा पर एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Nuclear Power Plant) स्थापित करने की योजना बना चुका है.
पहले कुछ देर के लिए ही गए थे चंद्रमा पर
गौरतलब है कि इससे पहले जो नासा के अपोलो अभियान के जरिए लोग चंद्रमा पर गए थे वे लंबे समय के लिए वहां पर नहीं ठहरे थे. लेकिन अब जबकि इरादा चंद्रमा पर रहने और काम करने का है खगोलविदों को स्थाई ऊर्जा स्रोत की होगी जिससे प्रचुर मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति हो सके.
नाभकीय विखंडन सबसे आशाजनक विकल्प
ऊर्जा के लिए जहां बहुत सारे विकल्पों पर विचार हो रहा है, वही नासा का बरसों से मानना रहा है कि नाभकीय विखंडन भविष्य के चंद्रमायात्रियों की कॉलोनी के लिए सबसे व्यवहारिक ऊर्जा विकल्प हो सकता है. और अब नासा ने इस अमली जामा पहनाने के लिए काम भी शुरू कर दिया है. नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्टरेट (STMD) के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जिम रायटर का कहना है कि प्रचुर ऊर्जा भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाएगी.
प्रस्ताव मांगे गए हैं इस तंत्र के लिए
नासा पिछले कई सालों से चंद्रमा पर नाभिकीय विखंडन की संभावनाओं का आंकलकन कर रहा है. किलोपॉवर कहे जाने वाले इस प्रोजेक्ट में नासा अमेरिका के ऊर्जा विभाग (DOE) के साथ मिल कर शोध कर रहा है. दोनों ने ही अमेरिका के उद्योग सहयोगियों से परमाणु विखंडन ऊर्जा तंत्र के लिए डिजाइन प्रस्ताव देने को कहा है जो चंद्रम पर चल सके और उसे प्रक्षेपित कर चंद्रमा तक पहुंचाया भी जा सके.
कैसी होनी चाहिए इसकी क्षमताएं
नासा के मुताबिक एक छोटा, हल्का विखंडन तंत्र जो एक चंद्रमा के लैंडर या रोवर की सतह पर कार्य कर सके ऐसा होना जाहिए जो 10 किलोवाट की बिजली की ऊर्जा प्रदान कर सके जो वाहां के औसत घरेलू ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ती कर सकेगा. इसमें चंद्रमा पर जीवन समर्थन तंत्र चालने के साथ चंद्रमा के रोवर को आवेशित करने और वहां की वैज्ञानिक प्रयोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए काम आएगा.
कितनी ऊर्जा की जरूरत
नासा और डीओए के मुताबिक भविष्य के इन सिस्टम को 40 किलोवाट की ऊर्जा की आपूर्ति करना होगा जो 30 घरों को 10 साल के लिए ऊर्जा प्रदान करेंगे. इसके साथ ही चंद्रमा पर उतनी ऊर्जा भी होनी जाहे जो वहां मानव उपस्थिति को संभव बना सके. यह तंत्र भविषय में मंगल पर भी काम कर सके जो नासा का अगला लक्ष्य है जिसपर अभी से काफी काम चल रहा है.
भविष्य में रॉकेट प्रक्षेपण को भी मिल सकती है ऊर्जा
इतना ही नहीं नासा के ये ऊर्जा संयंत्र भविष्य में नाभकीय प्रणोदय तंत्र तक विकसित करने में मददगार हो सकता है जो भविष्य में मंगल ग्रह पर तेजी से अभियानों को पहुंचा सकेंगे. अभी तक पिछले प्रयोगों में नासा और डिओए को कुछ सफलता जरूर मिली है, लेकिन इसका चंद्रमा पर ही परीक्षण करना एक बड़ी चुनौती होगी.
अगले साल फरवरी तक नासा के इस परियोजना के प्रस्ताव मिल सकते हैं. इसके बाद इस तंत्र की डिजाइन को अंतिम रूप दिया जाएगा. और उम्मीद की जा रही है कि एक दशक इसे प्रक्षेपित भी कर दिया जाए. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऊर्जा आने से चंद्रमा पर बहुत सी समस्याएं सुलझाना संभव हो सकेगा जो अभी नामुमकिन लगती हैं.
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