– वीरेन्द्र सिंह परिहार
26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में आतंकवादियों ने श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट कर 56 लोगों की जान ले ली थी और 200 से ज्यादा लोग धमाके में घायल हुये थे। इन बम-विस्फोटों के बाद आतंकियों ने अस्पताल में भी बम-विस्फोट किये क्योंकि उन्हें पता था कि घायलों को उनके परिजन यहीं चिकित्सा के लिये लेकर आयेंगेे। उक्त विस्फोटों के बाद नरेन्द्र मोदी घटनास्थल पर गये और बम धमाके के जिम्मेदारों को हर कीमत पर सजा दिलाने की बात कही।
उल्लेखनीय है कि उस दौर में देश में यूपीए का शासन था और पूरे देश के प्रमुख नगरों में ऐसे विस्फोट सतत हो रहे थे। तब गुजरात में उक्त विस्फोट के पहले वर्ष 2002 में गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में आतंकियों ने बम विस्फोट किये थे, फिर वर्ष 2008 में आतंकी गुजरात में यह हिम्मत कर सके। वजह स्पष्ट थी, पोटा कानून के चलते गुजरात की मोदी सरकार ने इन आतंकवादियों को पकड़वाकर फांसी के तख्ते तक पहुंचा दिया था। जबकि यूपीए सरकार और प्रांतों की तथाकथित सेकुलर सरकारें तुष्टिकरण के चलते पोटा कानून का विरोध कर रही थी। जबकि यह आतंकवाद से लड़ने के लिये ही लाया गया था। आगे चलकर विभेदकारी बताकर यूपीए सरकार ने इस कानून को समाप्त ही कर दिया। आतंकवाद के मुद्दे पर जो कांग्रेस पार्टी यह कहती रही कि आतंकवाद के चलते हमारे दो-दो प्रधानमंत्रियों को शहीद होना पड़ा, उसकी महासचिव प्रियंका गांधी अब कह रहीं हैं कि आतंकवाद कोई मुद्दा नहीं है।
जैसा कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी जो कहते हैं, वह करते हैं। सिलसिलेवार धमाके के एक माह के अन्दर ही अहमदाबाद विस्फोट के जिम्मेदार आतंकियों को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कोई कह सकता है इसमें बड़ी बात कौन-सी थी। यह बड़ी बात नहीं, बहुत बड़ी बात इसलिये थी कि वर्ष 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद देश में आतंकियों द्वारा बम-विस्फोटों का सिलसिला शुरू हो गया था। अहमदाबाद विस्फोट के पहले देश के प्रमुख शहरों में पचासों विस्फोट हो चुके थे, जिसमें हजारों लोगों की जान जा चुकी थी। आतंकवादी पकड़े नहीं जा रहे थे और मनचाहे ढंग से काम को अंजाम दे रहे थे। परन्तु जैसे ही अहमदाबाद बम-विस्फोटों के आरोपी पकड़े गये, वैसे ही एक दिन पहले 25 जुलाई को बंगलुरु में हुये धमाकों से लेकर जयपुर, हैदराबाद, मालेगांव, बनारस, दिल्ली और दूसरी जगहों में बम-विस्फोटो के जिम्मेदार आतंकी पकड़ लिये गये। वजह स्पष्ट थी कि उक्त आतंकवादियों के पकड़े जाने से पूछताछ में सभी के सूत्र पता चल गये।
यद्यपि उस वक्त भी इन आतंकियों की प्रकारांतर से तरफदारी करने वालों की कमी नहीं थी, उस वक्त देश के गृह राज्य मंत्री प्रकाश जायसवाल कह रहे थे कि अहमदाबाद के बम विस्फोट 2002 के गुजरात दंगों का परिणाम है। तो देश के गृहमंत्री इन आतंकवादियों को अपना भटका हुआ भाई बता रहे थे। कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव शुक्ला कह रहे थे कि इन आतंकवादियों को पकड़ना गुजरात सरकार की जिम्मेदारी है। कहने का तात्पर्य यह कि केन्द्र सरकार को इससे कुछ लेना-देना नहीं है।
जैसा ऊपर बताया गया कि एक माह के अन्दर उक्त आतंकवादी पकड़े गये, जिन्हें लेकर विशेष अदालत ने 18 फरवरी को अपना फैसला सुनाते हुए 38 दोषियों को फांसी और 11 दोषियों को जीवन की अंतिम सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह बताना भी उल्लेखनीय है उक्त सजा प्राप्त आतंकवादियों में 7 उत्तर प्रदेश से संबंधित हैं।
नरेन्द्र मोदी जैसे राजनेता आतंकवाद के खात्मे के लिये कटिबद्ध हैं, वही अखिलेश यादव जैसे सेकुलर नेताओं द्वारा वोट बैंक की राजनीति के चलते आतंकवादियों और आतंकवाद को संरक्षण दिया जाता रहा। यह बात इससे भी प्रमाणित होती है कि 2012 में अखिलेश यादव जब सत्ता में आये तो उन्होंने काशी, अयोध्या और प्रदेश में दूसरी जगहों पर बम-विस्फोट के आरोपितों के न्यायालय में चल रहे कई प्रकरणों को वापस लेने का प्रयास किया। यह बात अलग है कि न्यायालयों के सख्त रवैये के चलते वह अपने इरादों में नाकाम रहे। बाद में ऐसे अधिकांश आरोपितों को अदालत ने सजा भी सुनाई।
आतंकवाद के प्रति जीरो टालरेंस की नीति के चलते ही मोदी सरकार जैसे ही वर्ष 2014 में देश में सत्ता में आई, वैसे ही देश में आतंकियों द्वारा बम-विस्फोटों का सिलसिला थम ही नहीं गया, बल्कि पूरी तरह से रुक गया। यह तथ्य है कि अन्य बहुत-सी गंभीर समस्याओं के साथ आतंकवाद को भी देश के नागरिक अपनी नियति मान बैठे थे। लेकिन यह समझा जा सकता है कि जब एक दृढ़ प्रतिज्ञ और पूरी तरह से राष्ट्र के लिये समर्पित राजनेता देश की सर्वाेच्च कुर्सी पर बैठता है तो कितना चमत्कारिक परिवर्तन आता है।
इस तरह से देखा जा सकता है कि गुजरात में वर्ष 2002 में चाहे अक्षरधाम में आतंकियों द्वारा बम विस्फोट रहा हो या अहमदाबाद में वर्ष 2008 का मामला रहा हो। दोनों ही मामलों में नरेन्द्र मोदी ने जिम्मेदार आतंकियों को गिरफ्तार तो कराया ही, उन्हें अंतिम अंजाम तक पहुंचाया। जिसका नतीजा यह है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ घटनाओं को छोड़कर पूरा देश आतंकवाद से मुक्त है। यद्यपि नक्सलवाद और अलगाववाद का पूरी तरह उन्मूलन नहीं हो सकता है। पर देश के लोगो को यह भरोसा होना चाहिए कि आने वाले वर्षाें में ये समस्याएं भी इतिहास की वस्तु बन जायेंगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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