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    सर्वे में नाम, तभी मिलेगा टिकट

  • July 14, 2023

    • भाजपा-कांग्रेस के टिकट बंटवारे में आला नेताओं की नहीं चलेगी सिफारिश, अब बदल गया फॉर्मूला

    भोपाल। मध्यप्रदेश में मिशन-2023 की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों में टिकट वितरण में सिर्फ और सिर्फ सर्वे की चलने वाली है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि सियासी कुर्सी बचाने की जुगत में जुटी बीजेपी और 2018 की तरह सत्ता वापसी के प्रयास में जुटी कांग्रेस के समीकरण कर रहे हैं। चुनावी समर में विजयी होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे दोनों के केंद्रीय नेतृत्व ने तय कर लिया है कि इस बार नेताओं की सिफारिश पर नहीं बल्कि सर्वे के आधार पर ही टिकट दिए जाएंगे। दरअसल टिकट वितरण के सर्वे के औसत में आपका नाम नंबर वन पर है, तो आपका टिकट फाइनल है, क्योंकि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार आला नेताओं की नहीं बल्कि सिर्फ सर्वे की चलेगी। ऐसा इसलिए हो रहा कि टिकट आला नेताओं के अनुयायियों को नहीं बल्कि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने वाले प्रत्याशी यानी जीतने वाले कैंडिडेट को ही मिले। टिकट की दौड़ में शामिल दोनों की दलों के नेताओं को यह स्थिति स्पष्ट कर दी है। हालांकि ऐसा नहीं है कि बीजेपी-कांग्रेस ने इसकी तैयारी हाल ही में की हो, बल्कि प्रदेश में बीच में हुई सत्ता परिवर्तन और उपचुनाव के बाद से ही बीजेपी-कांग्रेस ने इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। इसी वजह से 2021 से ही दोनों दलों की ओर से विधायक और दावेदारों को लेकर हर तीन-चार महीने में सर्वे कराया जा रहा था। अब दलों ने स्पष्ट कर दिया है कि सर्वे ही सर्वेसर्वा है।

    मतदाता लगाएंगे अंतिम मुहर
    इन सर्व के अलावा निजी एजेसियां भी चुनावी समीकरणों को लेकर अपना सर्वे कर रही हैं। दोनों प्रमुख दलों की इन एजेंसियों के सर्वे पर भी निगाह टिकी है। इन तमाम सर्वे के औसत में अव्वल आने वालों को ही टिकट देने की तैयारी है, लेकिन इस फॉमूले के सर्वेसर्वा तो मतदाता हैं, जो मत का उपयोग कर सर्वे के समीकरणों पर अंतिम मोहर लगाएंगे।


    पार्टी आलाकमान का रहता है फोकस
    पार्टी सूत्रों के मुताबिक सर्वे तीन चरण में पूरा होता है। यह सर्वे चुनाव शुरू होने के 8 से 6 माह पहले शुरू होता है। यह सर्वे आचार संहिता लगने के पहले हर दो से तीन महीने के अंतराल में पूरे किए जाते है। पहला और दूसरा सर्वे प्रदेश स्तर पर पार्टी संगठन और तीसरा सर्वे केंद्रीय संगठन के नेतृत्व में पूरा किया जाता है। भाजपा यह सर्वे एजेंसियों के जरिए पूरा कराती है। जो की अपनी रिपोर्ट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव प्रभारी और केंद्रीय संगठन को सौंपते हैं।

    गोपनीय सर्वे में यह जानकारी जुटाती है टीम
    सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सर्वे टीम के सदस्य किसी भी क्षेत्र में जाकर गोपनीय रूप से जाकर जानकारी एकत्रित करते है। टीम जनता से पार्टी के मौजूदा विधायकों के बारे में तो पूरी जानकारी लेती ही है, साथ ही हारे हुए उम्मीदवारों की भी मौजूदा जानकारी लेती है। टीम द्वारा पार्टी के मौजूदा विधायक के प्रभाव , उसके काम का तरीके पर भी जनता से फीडबैक लिया जाता है। इसके अलावा विधायक के क्षेत्र में पार्टी की स्थिति कैसी है, निकाय चुनाव में विधायक के क्षेत्र से पार्टी हारी या जीती, विधायक की जमीनी हकीकत के साथ ही क्षेत्र में कराए गए कामों पर भी सवाल पूछे जाते हैं।

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