उज्जैन (Ujjain)। हिंदू धर्म में पूर्णिमा (Purnima in Hinduism) तिथि का बड़ा महत्व माना गया है, यह दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के लिए समर्पित है. इस दिन व्रत रखा जाता है और पूरे विधि- विधान से उनकी पूजा की जाती है. लेकिन ज्येष्ठ महीने में आने वाली पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन कई स्थानों पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन में खुशहाली के लिए वट पूर्णिमा का व्रत रखती हैं. जबकि, उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है. वट सावित्री व्रत को लेकर मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. ऐसे में इसकी पूजा से तीनों देवों का आशीर्वाद मिलता है.
इस विधि से करें पूजा
– इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें. इसके बाद स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को जल चढ़ाकर व्रत का संकल्प लें. ध्यान रहे इस दिन आप लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें. इसके बाद घर के आसपास वट वृक्ष स्थल पर पहुंचें. यहां वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं. फूल, चावल, गुड़, भीगे हुए चने, मिठाई आदि अर्पित करें. इसके बाद वट वृक्ष के चारों ओर सूत लपेटकर सात बार परिक्रमा करें. इसके बाद वट सावित्री की कथा सुनें. आखिर में प्रणाम करें और पूजा में हुई गलती के लिए क्षमा मांगें. इस दिन आप अपनी क्षमता अनुसार दान करें.
वट सावित्री पूर्णिमा की कथा
इस खास दिन को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार, राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री सुंदर और चरित्रवान थीं. जिनका विवाह सत्यवान नामक युवक से हुआ था. सत्यवान भी भगवान के भक्त थे, लेकिन एक दिन सावित्री को पता चलता है कि उनके पति की आयु कम है, जिसके बाद सावित्री ने घोर तपस्या की. जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए तो उन्होंने अपनी तपस्या और सतित्व की शक्ति से यमराज को पति को पुन: जीवित करने के लिए मजबूर कर दिया था, इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पति की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए वट सावित्री पूर्णिमा व्रत रखती हैं.
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