– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
मेरा गांव-मेरी धरोहर अभियान को सरकार की अच्छी पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। यह कार्यक्रम इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसके माध्यम से गांवों का तथ्यात्मक इतिहास लेखन हो सकेगा। इसकी जिम्मेदारी देशभर में फैले कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) को सौंपा जा रहा है। इसके लिए आरंभिक औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं और सरकार व सीएससी के बीच करार पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।
सीएससी की पहुंच को इस तरह से देखा जा सकता है कि देश भर में इसके चार लाख के करीब सेंटर कार्यरत हैं। देखा जाए तो यह अभियान डिजिटली रूप से केवल तथ्यात्मक इतिहास लेखन तक सीमित नहीं रहेगा अपितु गांव, कस्बे की सारी जानकारी वहीं के लोगों की जुबानी और वहीं के लोगों के दस्तावेजों, तस्वीरों, किवदंतियों के आधार पर होगा। माना यह जा रहा है कि इससे ग्रामीण धरोहर की जानकारी जन-जन तक पहुंचेगी और लोगों को किसी गांव के बारे में ऐतिहासिक-पुरातात्विक जानकारी मिलेगी। इसके साथ ही यदि वहां के रहन-सहन, जीवन-यापन, खेत-खलिहान, फसल चक्र, जलवायु आदि की जानकारी का भी समावेश किया जाता है तो यह सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि और अहम दस्तावेज होगा।
इसके लिए चूंकि कॉमन सर्विस सेंटर को ही एप बनाने की जिम्मेदारी दी गई है तो इस तरह का एप विकसित किया जाए जो बहुआयामी और बहु उपयोगी होगा। सरकार द्वारा एप विकसित करने की जिम्मेदारी भी सीएससी को देना इस मायने में और अधिक महत्वूपर्ण हो जाता है कि पहली तो यह कि सीएससी का नेटवर्क समूचे देश में निचले स्तर तक फैला हुआ है। दूसरा इससे स्थानीय भागीदारी बढ़ेगी। आरंभिक सूचनाओं के अनुसार सर्वे के आधार पर सूचनाओं का संकलन होगा पर यदि इसे वन टू वन संवाद के रूप में किया जाए तो अधिक सार्थक हो सकेगा।
मेरा गांव-मेरी धरोहर एक तरह से एतिहासिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक, सामाजिक, आर्थिक दस्तावेज बन सकेगा। इसके पीछे सरकार की मंशा भी यही दिख रही है। कहा जा रहा है कि एप तैयार होने के बाद इसकी पूर्ति गांव के लोगों से सर्वे के माध्यम से अनवरत संवाद कायम करते हुए गांव-कस्बे की जानकारी का समावेश किया जाएगा। गांव के सभी वर्ग यानी युवाओं, बड़े-बूढ़े, काश्तकार-दस्तकार, सभी तरह के कारोबार करने वालों, एतिहासिक जानकारी रखने वालों से सीधी बात कर एतिहासिक जानकारी, गांव के संबंध में तथ्यात्मक जानकारी गांव के लोगों से ही प्राप्त हो सकेगी, जिसे एप में समावेशित किया जएगा। गांव के लोगों से ही उनके पास उपलब्ध एतिहासिक-पुरातात्विक फोटो, दस्तावेजों को अपलोड किया जाएगा। गांव के नामकरण से लेकर उसकी विकास यात्रा का भी समावेश हो सकेगा। इससे यह बात तो यह साफ हो जानी चाहिए कि यदि इस दस्तावेशी करण में ग्रामीणों से वास्तविक संवाद कायम किया जाता है जोकि सीएससी सेंटर संचालक द्वारा किया जाना है और चूंकि संचालक वहीं आसपास का ही होगा तो एक बहु उपयोगी दस्तावेज तैयार हो सकेगा। यह इसलिए भी मायने रखता है कि बढ़ते शहरीकरण के कारण शहरों में समाते गांवों के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी।
यह तो अभी पूरी तरह से साफ नहीं हो सका है कि मेरा गांव मेरी धरोहर के पीछे सरकार का कहां और किस स्तर तक दस्तावेशी करण का इरादा है। पर देखा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि यह ऐप गांव की समग्र जानकारी को समावेश करने वाला बनता है और इस पर गंभीरता से काम होता है तो सरकार के पास भी एक ऐसा दस्तावेज तैयार हो जाता है जो भविष्य की नीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में सार्थक और सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। क्योंकि इस एप के माध्यम से गांव में पुरातात्विक महत्व की जानकारी के साथ ही गांव में उपलब्ध संसाधनों यथा शिक्षा की व्यवस्था, सिंचाई साधन, फसल चक्र, जलवायु, ग्रामीण उद्योग-धंधों, क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं यथा स्कूल, पानी बिजली की उपलब्धता, आवागमन के साधन, सड़क, अस्पताल, आंगणवाड़ी, आदि की उपलब्धता की जानकारी भी होगी। इससे गांव की विकास की योजना बनाना आसान होगा।
सही मायने में राष्ट्रीय स्तर पर गांवों की आवश्यकताओं का वास्तविक दस्तावेज भी तैयार हो सकेगा। इससे देश में कहां किस तरह की आवश्यकता है इसका आकलन भी हो सकेगा। खासतौर से ग्रामीण विकास की नीति बनाने वालों के लिए यह बेहद उपयोगी दस्तावेज बन सकेगा। देश भर में गांवों में कितने और किस कक्षा तक के स्कूलों की आवश्यकता है, कहां प्राथमिक तो कहां सेटेलाइइट अस्पताल होना चाहिए। कहां मण्डी होनी चाहिए तो कहां किसानों के लिए अन्य साधन। इन सबका सहजता से विश्लेषण हो सकेगा। इसके साथ ही गांव के एतिहासिकता, पुरातात्विक स्थानों का संरक्षण की योजना बन सकेगी।
इस मायने में देखा जाए तो यह एक अच्छी शुरुआत मानी जा सकती है बशर्तें इस पर गंभीरता से काम किया जाता है और इसकी नियमित निगरानी की जाती है। इसका समय-समय पर विश्लेषण भी जरूरी होगा तो अपडेशन भी किया जाना जरूरी होगा। सही मायने में मेरा गांव मेरी धरोहर ऐसा दस्तावेज बन सकेगा जो ऐतिहासिक जानकारी तक ही सीमित ना रह कर समग्र विकास का रोडमैप बन सकेगा। अब यह तो भविष्य के गर्भ में है कि इस पर कार्य किस गति और गंभीरता से होता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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