नई दिल्ली (New Dehli)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)में एक ऐसा मामला (Case)पहुंच गया, जहां एक मुस्लिम महिला ने हिंदू शख्स (hindu person)पर 34 साल बाद रेप केस (rape case)दर्ज कराया था। हालांकि, सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने तीन दशक लंबी महिला की चुप्पी पर सवाल उठाए और जांच के बाद पुरुष को राहत भी दे दी। कहा जा रहा है कि महिला ने संपत्ति के लालच में कानूनी कार्रवाई शुरू की थी।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में असम के एक पुलिस स्टेशन में महिला ने युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया था कि युवक ने साल 1982 में उसके साथ यौन हिंसा की थी। तब महिला नाबालिग थी। साथ ही उसने बलात्कार की बात की पुष्टि के लिए 1983 में पैदा हुए बच्चे का भी जिक्र किया। इसके बाद यह मामला कोर्ट पहुंच गया था।
अब कामरूप जिला न्यायालय और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस आरोप की सुनवाई की तैयारी की। साथ ही इस मामले में दर्ज FIR को भी रद्द करने से इनकार कर दिया था। अंत में पुरुष ने भारत के शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उसने इस मामले में 34 साल बाद FIR किए जाने पर भी सवाल उठाए। खास बात है कि ‘सहमति से बने संबंधों’ से पैदा हुए बेटे का वह पालन पोषण कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता सुनवाई कर रहे थे। जस्टिस गवई का कहना था, ‘हमने पाया कि 34 साल बाद मामला दर्ज कराना और वह भी इस आधार पर कि जिस समय अपराध हुआ तब महिला नाबालिग थी, यह अपने आप में मामला रद्द करने का आधार हो सकता है।
कोर्ट का कहना था, ‘FIR में इस बारे में नहीं बताया गया है कि महिला 34 सालों तक चुप क्यों रही। रिकॉर्ड में पेश की गई जानकारी से पता चलता है कि रिश्ता सहमति से बना था, क्योंकि उस रिश्ते से पैदा हुए बेटे को युवक ने अपना बेटा माना है। साथ ही उसे नकदी समेत सभी सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस का कहना है, ‘हिंदू युवक की संपत्ति के लालच में उसके बेटे ने मां के साथ मिलकर 34 सालों के बाद FIR दर्ज कराई है। पुरुष और उसके बेटे के संपत्ति को लेकर जारी विवाद के चलते यह मामला दर्ज किया गया है।
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