भोपालः मध्य प्रदेश (High Court) हाईकोर्ट (High Court) ने एक ससुर (Father-in-Law) की याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है और बड़ी टिप्पणी की है. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ (Gwalior Peeth) ने दोहराया है कि मुस्लिम कानून (Muslim Law) के तहत, ससुर को अपने मृत बेटे (Deceased Son) की विधवा को वित्तीय सहायता करने की जरूरत नहीं है. ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और सत्र अदालतों के आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ससुर को उसकी मृत्यु के बाद अपनी बहू को मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था.
दरअसल, शिवपुरी की एक अदालत ने आदेश दिया था कि ससुर अपनी विधवा बहू को हर महीने 3000 रुपये का गुजारा भत्ता देंगे. पूरा मामला शरीफ बनाम इशरत बानो का है. इशरत की शादी साल 2011 में 14 जून को हुई थी. साल 2015 में 30 जून को शरीफ की मौत हो गई. इसके बाद इशरत ने अपने ससुर बशीर खान के खिलाफ शिवपुरी की मजिस्ट्रेट कोर्ट में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत केस दर्ज कराया.
इशरत ने अपने ससुर से 40 हजार रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की थी. साल 2021 में 9 फरवरी को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने अपने फैसले में बशीर खान को अपनी विधवा बहू को 3,000 रुपये हर महीने देने को कहा. इसके बाद बशीर खान ने एडीजे कोर्ट में अपील की, जहां 2022 में 21 जनवरी को निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया. इसके बशीर खान हाईकोर्ट पहुंचे. बशीर के वकील अक्षत जैन ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक एक पिता को अपने बेटे की विधवा को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.
हालांकि हिंदू मैरिज एक्ट में यह कानून ठीक उलटा है. एक्ट के तहत विधवा बहू अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा कर सकती है. लेकिन इसके लिए कुछ शर्त भी हैं. जैसे कि विधवा बहू अपनी कमाई या संपत्ति से अपना भरण-पोषण ना कर पाती हो. विधवा बहू के पास कोई संपत्ति ना हो. विधवा बहू के पति, पिता या माता की संपत्ति हो. विधवा बहू का कोई बेटा या बेटी हो.
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