नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुर्शिदाबाद (Murshidabad) की हवाओं में कभी बांग्ला, उर्दू और हिंदी की खुशबू थी, आज वहां सिर्फ जलती हुई सियासी रोटियां (Political bread) और उजड़े घरों की राख है. पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुर्शिदाबाद (Murshidabad) में आज सन्नाटा और सिसकियां हैं. इस धरती पर आज लहू की लकीरें खिंची हुई हैं. इसी बदनसीब जमीन के जख्मों पर मरहम लगाने शनिवार को राज्यपाल पहुंचे. शुक्रवार वो मालदा के दौरे पर थे, जहां मुर्शिदाबाद से पलायन कर लोग अपनी जान बचाने के लिए भागकर पहुंचे थे. लेकिन राज्यपाल के दौरे पर भी राजनीति का ठप्पा लग गया।
इस बीच पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की आवाज उठने लगी है. ममता बनर्जी की टीएमसी पार्टी राज्यपाल पर अनाप-शनाप बयान दे रही है तो वहीं बीजेपी मुर्शिदाबाद की घटना और हिंदुओं के पलायन पर ममता सरकार को घेर रही है. क्या ममता सरकार वक्फ कानून और मुस्लिम वोट बैंक के बीच फंस चुकी है? क्या मुर्शिदाबाद की हिंसा अचानक हुई या एक गहरी रणनीति का हिस्सा है? सवाल ये भी है कि क्या 2026 विधानसभा चुनाव को देखते हुए बंगाल की सियासत अब धार्मिक ध्रुवीकरण के सबसे ख़तरनाक मोड़ पर है?
राज्यपाल ने किया मुर्शिदाबाद का दौरा
दरअसल, बंगाल अब सियासत की आग में जल रहा है. धर्म, राजनीति और जमीन के ताने-बाने में उलझा ये जिला है मुर्शिदाबाद. जहां वक्फ कानून को लेकर जलती आग की राख तो बुझ गई लेकिन सियासत की आग अब भी धधक रही है. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने मुर्शिदाबाद के उन इलाकों का दौरा किया जहां एक परिवार में पिता-पुत्र को दंगाइयों ने घसीटकर मार डाला था. इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन को लेकर भी अटकलें तेज हो गई हैं.
मुर्शिदाबाद की गलियों में सिर्फ सिसकियां हैं. टूटी हुई उम्मीदें हैं. रोते-बिलखते परिवार हैं. शनिवार को ही राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष जब उन्हीं गलियों में पहुंचीं तो नजारा देखकर कलेजा चाक-चाक हो गया. विजया रहाटकर ने कई इलाकों का दौरा किया. इसमें धुलियान से लेकर शमशेरगंज के हिंसा प्रभावित इलाके भी शामिल हैं, जहां से काफी तादाद में लोगों ने पलायन किया है.
हालात देख राज्यपाल की आंखें हो गईं नम
शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल मालदा पहुंचे थे. सीवी आनंद बोस ने वो देखा जो कोई नहीं देखना चाहता . राज्यपाल की आंखें नम थीं और जुबां पर टीएमसी सरकार के लिए चेतावनी. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति शासन के मुहाने पर पहुंच गया है पश्चिम बंगाल? क्या बंगाल के हिंदुओं का दर्द अब सिर्फ़ एक चुनावी मुद्दा बनकर रह जाएगा?
जब एक राज्य में सियासत सिर्फ वोटों की सोचती है और इंसानियत सिसकती है तो मामला गंभीर है. लेकिन इस गंभीर मामले की आग में घी डालने का काम कर रही है राजनीति. टीएमसी ने राज्यपाल को बीजेपी का एजेंट तक बता दिया.
वक्फ कानून के खिलाफ दंगाइयों ने बंगाल में जो किया उसकी जांच होनी बाकी है. लेकिन सियासी पार्टियां अपने हिसाब से गुणा-भाग कर रही है. बंगाल की हिंसा पर जमकर सियासत हो रही है. बीजेपी से लेकर वीएचपी तक ने ममता सरकार को घेरा है. जब धर्म की आड़ में सियासत होती है, तो सबसे बड़ा नुकसान उस आम आदमी को होता है जो बस शांति चाहता है. क्या बंगाल की राजनीति ने ये सबक अब तक नहीं सीखा? मुर्शिदाबाद की सड़कों पर फैली राख से सियासत की जलने वाली भट्टी कब बुझेगी, कोई नहीं जानता. मुर्शिदाबाद का दर्द सिर्फ पश्चिम बंगाल का नहीं बल्कि भारत के लोकतंत्र की परीक्षा है.
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