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नगर निगम चुनाव: जिनके घर उजड़े ऐसे 10 वार्डों में नाराजगी

June 10, 2022

  • मामला महाकाल विस्तारीकरण योजना का-500 मीटर के दायरे में आ रहे वार्डों के लोग पूछेंगे सवाल

उज्जैन। नगर निगम चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया 10 जून से शुरु होगी। भाजपा कांग्रेस सहित सभी दलों के उम्मीदवार दावेदारी भी जता चुके हैं लेकिन शहर के 10 वार्ड ऐसे हैं जहाँ विकास की योजना के कारण लोगों के विस्थापित होने का मुद्दा निगम चुनाव में हावी रहेगा। उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी योजना के तहत कंपनी ने महाकाल रूद्रसागर क्षेत्र के विकास के लिए व्यापक योजना चल रही है। इसमें महाकाल मंदिर के चारों ओर 500 मीटर के दायरे को शहर के नक्शे पर महाकाल वन के रूप में चिन्हित किया जा चुका है। महाकाल वन के 500 मीटर के इस घेरे में पुराने शहर के 10 वार्ड आ रहे हैं। प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों के अनुसार मास्टर प्लान के अनुरूप तथा उज्जैन शहर के प्राचीन वैभव को वापस अस्तित्व में लाने के लिए यह योजना बनी है।


इसमें महाकाल मंदिर को सेंटर में रखकर इसके चारों ओर 500 मीटर के दायरे को महाकाल वन की सीमा में शामिल किया गया है। महाकाल वन क्षेत्र के 500 मीटर के दायरे में सीमांकन के बाद जिला प्रशासन यह भी स्पष्ट कर चुका है कि अब आगामी समय में इस दायरे में महाकाल मंदिर से अधिक ऊंचाई की इमारत को निर्माण की अनुमति नहीं रहेगी। महाकाल वन के 500 मीटर के दायरे में शिप्रा नदी का किनारा भी आ रहा है। रामघाट से लेकर सिद्ध आश्रम होते हुए नृसिंहघाट पहुँच मार्ग और यहाँ से लेकर चारधाम मंदिर के नजदीक होते हुए समीप बनी गणेशनगर कॉलोनी भी आ रही है। इधर पुराने शहर के गोपाल मंदिर और पुराने नगर निगम भवन को छोड़कर यहाँ पटनी बाजार के समीप स्थित मोदी की गली, मगर मुंहा और इधर कालिदास मांटेसरी स्कूल, छप्पन भैरव की गली तक 500 मीटर का घेरा छू रहा है। इसी तरह सिंहपुरी ऐरिया तथा इस क्षेत्र के कई मंदिर भी जद में आ रहे हैं। उधर दूसरी ओर महाकाल सेतु मार्ग, बेगमबाग से लेकर पुष्कर तालाब और लोहे का पुल तथा यहाँ स्थित जमातखाना तक महाकाल वन क्षेत्र में शामिल किया गया है।

इन वार्डों में उम्मीदवारों को देना होगा जवाब
महाकाल वन क्षेत्र के दायरे में पुराने शहर के वार्ड क्रमांक 21, 22, 23 तथा 27 के अलावा वार्ड 29, 30, 31 से लेकर 32, 33 और 34 तक की सीमाएँ आ रही है। कई वार्ड तो ऐसे हैं जो महाकाल वन क्षेत्र के दायरे में पूरी तरह आ गए हैं। यही कारण है कि अब भाजपा-कांग्रेस हो या अन्य दल के पार्षद पद के उम्मीदवार सभी को उक्त वार्डों में लोगों के विस्थापन पर उठ रहे सवालों का जवाब देना होगा तथा मतदाताओं को समझाने में मशक्कत करनी पड़ेगी।

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