भोपाल। प्रदेश में कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार नए-नए प्रयोग करती रहती है। पांच साल पहले सरकार ने कुपोषण दूर करने के लिए मुरगा का सहारा लिया था। इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने लाखों रुपए के मुनगा के बीज बांटे, मुनगा सूख गया है, लेकिन कुपोषण नहीं मिटा। अब सरकार कोदो कुटकों से आदिवासी बच्चों का कुपोषण दूर करने का प्रयोग कर रही है। राज्य के छह जिले मंडला, डिंडौरी, बालाघाट, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर जिलों के आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को कोदो से बनी बर्फी, नमकीन और बिस्किट देने की तैयारी। यह सामग्री स्थानीय स्तर पर महिला स्व-सहायता समूह तैयार करेंगे। खास बात यह है कि कुपोषण दूर करने के लिए अब मोटा अनाज दिया जाएगा। जिसमें कोदो-कुटकी के साथ-साथ ज्वार, बाजरा और मक्का को भ्ीा शामिल कया गया है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो प्रदेश के सभी 97 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों में कोदो की बर्फी बच्चों को खाने को मिलेगी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में 48 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण से मृत्यु दर 42.8 फीसद है। यह रिपोर्ट वर्ष 2018 में आई थी। महिला एवं बाल विकास विभाग का दावा है कि इससे वोकल फॉर लोकल को भी बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि रेडी टू ईट बनाने का काम स्व-सहायता समूहों को सौंपा जा रहा है। समूह के सदस्यों को रोजगार मिलेगा।
बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण
वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्रों में छह माह से तीन साल तक के बच्चों एवं गर्भवती व धात्री माताओं को गेहूं-सोया बर्फी, बेसन के लड्डू, हलुआ, खिचड़ी, मीठी लप्सी, उपमा, दलिया आदि दिया जा रहा है। सरकार प्रत्येक बच्चे पर प्रतिदिन आठ रुपये, अधकितम वजन के बच्चों पर 12 रुपये और गर्भवती महिला और किशोरियों पर 9.50 रुपये खर्च किए जा रहे हैं। कोदो में 8.3 फीसद प्रोटीन कोदो पाचक और पौष्टिक आहार है। इसमें 8.3 फीसद प्रोटीन, 1.4 फीसद वसा और 65.9 फीसद कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसमें चावल के मुकाबले 12 गुना कैल्शियम पाया जाता है। यह शरीर में आयरन की कमी को दूर करता है और कई और पौष्टिक तत्वों की कमी को पूरा करता है।
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