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    मुंबई इंडियंस के कप्तान बन जाते MS धोनी, बस एक फैसले ने रोक लिया

  • March 28, 2024

    डेस्क: 20 फरवरी साल 2008. इस तारीख ने भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक अहम रोल निभाया है, जिसने सब कुछ बदल दिया. खिलाड़ियों की किस्मत भी, क्रिकेट खेलने का तरीका भी और BCCI का बैंक बैलेंस भी. ये तारीख आईपीएल इतिहास के पहले ऑक्शन की तारीख थी, भारत में लोग पहली बार खिलाड़ियों की बोली लगते हुए देख रहे थे, टीवी पर खिलाड़ी बिक रहे थे तब ये अजीब लगा लेकिन आज इस ऑक्शन के आदि हो चुके हैं. सबकी नज़र एमएस धोनी पर थी, जिसकी कप्तानी में टीम इंडिया ने कुछ वक्त पहले ही टी-20 का वर्ल्ड कप जीता और दुनिया को हिला दिया.

    जब पहली बार आईपीएल के ऑक्शन की बारी आई तो ललित मोदी और बीसीसीआई के मन में डर था कि आप कैसे सचिन तेंदुलकर और बाकी बड़े खिलाड़ियों की बोली लगाएंगे. क्यूंकि अपने यहां क्रिकेट धर्म है और खिलाड़ी उसके भगवान, तो फिर आप भगवानों की बोली कैसे लगाएंगे. इसका तोड़ ललित मोदी ने निकाला कि कुछ बड़े खिलाड़ियों को ऑक्शन में ही ना भेजा जाए.

    इस लिस्ट में 5 नाम जोड़े गए, सचिन तेंदुलकर मुंबई के लिए, सौरव गांगुली कोलकाता के लिए, वीरेंद्र सहवाग दिल्ली के लिए, राहुल द्रविड़ बेंगलुरु के लिए और युवराज सिंह पंजाब के लिए. यानी इन खिलाड़ियों पर बोली नहीं लगाई गई और बाकी खिलाड़ियों को ऑक्शन में भेज दिया गया. सबको मालूम था कि सबसे ज्यादा पैसा जो बरसेगा, वो महेंद्र सिंह धोनी पर ही बरसेगा लेकिन सवाल ये था कि आखिर उन्हें खरीदेगा कौन और दाम कितना होगा.

    जब तक आईपीएल का ऑक्शन आया, तब तक एमएस धोनी बड़ा नाम बन चुके थे. उनकी कप्तानी में टी-20 वर्ल्ड कप मिल गया था, नौसिखिया टीम को लेकर जब धोनी ने ये कप जिताया तब इसने 2007 वर्ल्ड कप की हार से जो जख्म लगा था उसपर मलहम लगाने का काम किया. जब मार्की खिलाड़ी चुने गए तब धोनी से भी पूछा गया कि क्या आप किसी टीम के मार्की खिलाड़ी बनेंगे, लेकिन धोनी ने मना कर दिया.

    महेंद्र सिंह धोनी ने यहां क्रिकेट वाला नहीं बल्कि बिजनेस वाला दिमाग चलाया, खुद वो एक इंटरव्यू में बता भी चुके हैं. धोनी का कहना था, ‘मुझसे भी कुछ टीमों ने मार्की प्लेयर बनने को कहा था, लेकिन मैंने सोचा कि अगर मैं ऑक्शन में जाता हूं तो एक मिलियन डॉलर तो कहीं नहीं गया, वहीं मार्की प्लेयर बनता हूं तो उस टीम के सबसे महंगे खिलाड़ी से कुछ ज्यादा ही पैसे मिलते इसलिए जिन टीम के पास मार्की प्लेयर नहीं था, वो ऑक्शन में मुझपर बड़ा दांव खेल सकती हैं.’ और जैसा कि धोनी ने कहा था, हुआ भी वैसा ही.


    अब आते हैं कहानी के उस हिस्से पर जहां टीमों का दखल शुरू हुआ और महेंद्र सिंह धोनी को अपने खाते में जोड़ने के लिए एक जंग शुरू हो गई. कहानी में थोड़ा पीछे जाते हैं, इंडिया सीमेंट्स ने चेन्नई सुपर किंग्स की टीम खरीदी जिसके कर्ताधर्ता थे एन. श्रीनिवासन. वही श्रीनिवासन जो बाद में बीसीसीआई के बॉस बने, जिनपर धोनी के लिए पक्षपात करने का आरोप लगता था, वही जिनके दामाद पर आईपीएल में गड़बड़ी करने का आरोप भी लगा था.

    आईपीएल के पहले ऑक्शन से पहले श्रीनिवासन ने अपनी टीम का डायरेक्टर वीबी. चंद्रशेखर को बनाया, जो पूर्व में क्रिकेटर रह चुके थे. उन्हें एक काम सौंपा गया कि आपको किसी भी तरह वीरेंद्र सहवाग को टीम से जोड़ना है, सहवाग जिन्हें दुनिया का बेहतरीन ओपनर माना जाता था और जो बॉलर्स की धुनाई करते वक्त टेस्ट या वनडे मैच में अंतर नहीं देखते थे. लेकिन यहां वीबी चंद्रशेखर ने श्रीनिवासन को सलाह दी कि हमें सहवाग नहीं धोनी पर फोकस करना चाहिए.

    श्रीनिवासन इसके लिए राज़ी नहीं हुए, लेकिन चंद्रशेखर भी अड़े हुए थे. क्यूंकि वो पहले धोनी के साथ काम कर चुके थे और ये भांप रहे थे कि धोनी ही भविष्य होंगे, खैर इसकी एक अलग कहानी है. लेकिन जब वीरेंद्र सहवाग दिल्ली के मार्की प्लेयर बन गए, तब श्रीनिवासन भी धोनी पर हामी भरने को तैयार हो गए और ऑक्शन की तारीख से ठीक एक दिन पहले ही श्रीनिवासन ने एमएस धोनी के लिए हामी भर दी और वो भी ऐसी कि साफ मन बना लिया अब किसी भी कीमत पर धोनी हमारी टीम में ही होने चाहिए.

    ऑक्शन का दिन आया और खिलाड़ियों की बोली लगनी शुरू हुई, ये वो जमाना था जब ऑक्शन रिचर्ड मेडले कराते थे. मेडले के हाथ में ऑक्शन का हथोड़ा था, जिसने सबसे ज्यादा भाव महेंद्र सिंह धोनी पर ही लगाया. धोनी की बारी जब आई तब रेस में सिर्फ दो ही टीम थी, पहली चेन्नई और दूसरी मुंबई. बोली 4 लाख डॉलर से शुरू हुई, चेन्नई और मुंबई की रेस थी जो 1.5 मिलियन पर जाकर रुकी.

    1.5 मिलियन डॉलर पर जाकर मुंबई इंडियंस ने अपनी बोली पीछे ले ली, क्यूंकि मुंबई ऐसी टीम थी जिसके पास मार्की प्लेयर भी था और अगर उसका सबसे महंगा प्लेयर 1.5 मिलियन डॉलर का रहता है तो उसे सचिन तेंदुलकर को इस राशि से 15 फीसदी ज्यादा देना पड़ता और पैसों का यही हिसाब-किताब चेन्नई के हक में गया, क्यूंकि उसके पास कोई मार्की प्लेयर नहीं था. तो बात ये तय हुई कि 1.5 मिलियन में महेंद्र सिंह धोनी चेन्नई सुपर किंग्स के खाते में गए, जो उस वक्त रुपयों के हिसाब से 6 करोड़ रुपये थे.

    ऑक्शन में किसी टीम को खिलाड़ी खरीदने के लिए 20 करोड़ रुपये मिले थे, उसमें से 6 करोड़ टीम ने सिर्फ एमएस धोनी पर खर्च कर दिए थे. और यही कहानी थी महेंद्र सिंह धोनी के चेन्नई सुपर किंग्स का थाला बनने की, जो रिश्ता करीब 15 साल पहले बना था वो आजतक बना हुआ है. क्यूंकि अगर उस दिन मुंबई इंडियंस ने अपनी बोली वापस ना ली होती तो शायद एमएस धोनी मुंबई इंडियंस के ही कप्तान होते.

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