इंदौर। हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को 2019-20 में प्रदेश में हुए एमपीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में एक प्रश्न के दो उत्तर को लेकर सामने आए विवाद का हाईकोर्ट ने निराकरण कर दिया। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में सागौन वन क्षेत्र को लेकर अलग-अलग आंकड़े बताए हैं। एमपीपीएससी ने राज्य सरकार के आंकड़े को सही माना था। पर अब हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के आंकड़े को भी सही मानते हुए अंक देने के निर्देश दिए हैं।
जस्टिस विवेक अग्रवाल की सिंगल बेंच ने आदेश में कहा कि इस अंक से यदि आवेदक मुख्य परीक्षा के लिए पात्र होते हैं, तो उन्हें तत्काल एडमिट कार्ड या एंटी पास जारी करें। कोर्ट ने कहा कि एमपीपीएससी चाहे तो ऐसे आवेदकों के लिए अलग से परीक्षा का इंतजाम भी कर सकती है। कोर्ट ने रजिस्ट्रार न्यायिक को निर्देश दिए हैं कि आदेश की एक प्रति तत्काल ई-मेल द्वारा पीएससी को भेजें।
ये था मामला
मध्य प्रदेश में सागौन के वन क्षेत्र प्रतिशत(area percentage) के संबंध में पीएससी में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर को लेकर विरोधाभास था। अभिजीत चौधरी सहित आठ अभ्यर्थियों याचिका के माध्यम से इसे चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने पक्ष रखते हुए दलील दी थी कि केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट रिपोर्ट 2019(India State of Forest Report 2019) के अनुसार मध्य प्रदेश में 29.54 प्रतिशत सागौन वाले जंगल है। वहीं मध्यप्रदेश सरकार ने यह आंकड़ा 19.36 बताया है। आवेदकों ने केन्द्र सरकार की रिपोर्ट के आधार पर उत्तर दिया है, जबकि पीएससी राज्य सरकार की रिपोर्ट (state government report)को सही मानकर अंक दिए थे।
जियो सैटेलाइट सर्वे की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। जिससे ये पता लगाया जा सके कि एमपी में कितने प्रतिशत सागौन के जंगल हैं। हाईकोर्ट ने मप्र लोक सेवा आयोग के विशेषज्ञ और लीगल एडवाइजर को यह बताने कहा था कि सगौन वन क्षेत्र के प्रतिशत में केन्द्र या राज्य सरकार में से किसकी सूची को तरजीह दी जाए।
वहीं आज दोपहर में आयोग ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा है कि वो इस पूरे मामले की दोबारा डबल बैंच में अपील करेगा, इन सब चीजों के बीच कल से पीएससी 2020 का मैन्स(mppscmains2020) शुरू होने जा रहा है, जिसमें हजारों बच्चे भाग लेने वाले हैं
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