नई दिल्ली. देश में नीतिगत दर निर्धारित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक आज मुंबई (Mumbai) में शुरू हुई। आरबीआई गवर्नर (Governor) शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) की अध्यक्षता में तीन दिवसीय बैठक 4 दिसंबर से 6 दिसंबर तक चलेगी। एमपीसी की यह बैठक घटती जीडीपी (GDP) वृद्धि, अत्यधिक महंगाई और उत्पादन में गिरावट जैसी महत्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों के बीच हो रही है, ऐसे में इस बार आम लोगों के साथ-साथ बाजार की नजर टिकी हुई है। आइए इस बारे में और जानें।
देश में नीतिगत दर निर्धारित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक आज मुंबई में शुरू हुई। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में तीन दिवसीय बैठक 4 दिसंबर से 6 दिसंबर तक चलेगी। आरबीआई गवर्नर 6 दिसंबर (शुक्रवार) को नीतिगत निर्णयों की घोषणा करेंगे।
एमपीसी की यह बैठक महत्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों के बीच हो रही है, जिसमें अपेक्षा से कम जीडीपी वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति और उत्पादन स्तर में गिरावट शामिल है। इन हालातों में आम लोगों के साथ-साथ बाजार की भी चिंता बढ़ी हुई है। भारतीय कृषि अर्थशास्त्री और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) के प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने कहा कि सब्जियों की मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के नियंत्रण से बाहर है।
उन्होंने यह भी कहा कि दूसरी तिमाही के जीडीपी विकास के आंकड़े संकेत देते हैं कि आरबीआई अपनी नीतियों को समायोजित करने यानी रेपो रेट को कम करने जैसे फैसलों में देरी कर सकता है। हालांकि, अर्थशास्त्री ने जोर देकर कहा कि आरबीआई के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने का फैसला लेने में अभी बहुत देर नहीं हुई है।
गुलाटी ने एएनआई से कहा, “टमाटर की कीमतों में वृद्धि ने आरबीआई को चिंता में डाला है। सब्जियों की कीमतों में वृद्धि को आरबीआई नियंत्रित नहीं कर सकता। रेपो दर में कमी करने की बात करें तो, दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े बताते हैं कि आरबीआई अभी रेपो रेट घटाने की स्थिति में नहीं है। अक्तूबर में आयोजित पिछली एमपीसी बैठक में, केंद्रीय बैंक ने लगातार 10वीं बार नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर बनाए रखा। यह निर्णय 6 में से 5 सदस्यों के बहुमत से लिया गया।
स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर को 6.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया, जबकि सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर स्थिर रही। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अक्तूबर में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.21 प्रतिशत हो गई, जो आरबीआई की 6 प्रतिशत की ऊपरी सहनीय सीमा को पार कर गई।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्तूबर में खाद्य मुद्रास्फीति चिंताजनक 10.87 प्रतिशत पर है, जबकि सब्जियों की मुद्रास्फीति 42.18 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ग्रामीण मुद्रास्फीति 6.68 प्रतिशत रही, जबकि शहरी मुद्रास्फीति तुलनात्मक रूप से कम 5.62 प्रतिशत रही। इसके अतिरिक्त, 2024-25 वित्तीय वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से 5.4 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह वृद्धि आरबीआई के 7 प्रतिशत के पूर्वानुमान से काफी कम रही। ये आंकड़े मुद्रास्फीति के दबावों को दूर करने और आने वाले महीनों में आर्थिक विकास को फिर से पटरी पर लाने के लिए एमपीसी के नीतिगत निर्णयों को बहुत हद तक प्रभावित करेंगे।
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