नई दिल्ली। देश के पांच प्रमुख राज्यों में चुनावी बिगुल (election bugle) बजाया जा चुका है। राजनीतिक दलों (Political parties) की ओर से मतदाताओं से लुभावने वादे किए जा रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जिस भी पार्टी की सरकार इन राज्यों में आएगी उसे भारी भरकम कर्ज के बोझ की विरासत मिलने वाली है। अगर सिर्फ मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की बात करें तो वर्ष 2019 से वर्ष 2022 के दौरान इनकी सरकारों (Goverment) ने कुल 5,03,126 करोड़ रुपये का कर्ज (Loan) लिया है।
RBI अपनी रिपोर्ट में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को लेकर साफ तौर पर कह चुका है कि इन पर बढ़ता कर्ज लंबे समय तक बरकरार नहीं रखा जा सकता। इन राज्यों की आगामी सरकारों के पक्ष में अच्छी बात यह है कि कोविड के बाद भारतीय इकोनॉमी जिस तेजी से पटरी पर लौटी है उसका असर इन राज्यों के राजस्व पर भी दिखने के आसार हैं। ऐसे में अगर नई सरकारों की तरफ से कुशल वित्त प्रबंधन दिखाया जाए तो कर्ज लौटाने की चुनौती भी पार पाई जा सकती है।
रिजर्व बैंक की तरफ से राज्यों के बजट पर हर वर्ष एक अध्ययन रिपोर्ट जारी होती है, जिसे राज्यों की वित्तीय स्थिति और इनके सरकार के आर्थिक प्रबंधन की स्थिति जानने का सबसे सटीक रिपोर्ट माना जाता है। दैनिक जागरण ने आरबीआई की पिछले चार वर्षों की सालाना रिपोर्टों की पड़ताल करके कुछ तथ्यों की छानबीन की है। इससे जो तस्वीर सामने आती है उसके मुताबिक चुनाव में जाने वाले चार प्रमुख राज्यों की मौजूदा सरकारों ने अपने कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में जमकर कर्ज लिया है।
मध्य प्रदेश 89,444 करोड़ रुपये, राजस्थान ने 147,600 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ ने 28,680 करोड़ रुपये और तेलंगाना ने 2,37,402 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। मार्च, 2023 तक मध्य प्रदेश पर कुल 3,78,617 करोड़ रुपये, राजस्थान पर 5,37,013 करोड़ रुपये, तेलंगाना पर 3,66,606 करोड़ रुपये का कुल कर्ज है। छत्तीसगढ़ की सरकार ने विधानसभा में बताया है कि जनवरी, 2023 तक उस पर कुल 82,125 करोड़ रुपये कर्ज है। कर्ज की राशि में भारी वृद्धि की एक अहम वजह कोरोना महामारी का काल है जिसकी वजह से देश के तकरीबन सभी राज्यों के राजस्व के अपने स्त्रोत सूख गये थे।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि दिसंबर, 2023 में इन राज्यों में जिसकी भी सरकार बनेगी उसे आने वाले पांच वर्षों के दौरान उक्त कर्ज के एक बड़े हिस्से की अदाएगी करनी होगी। आरबीआई का ही डाटा बताता है कि वर्ष 2024-25 से वर्ष 2028-29 के दौरान मध्य प्रदेश पर बकाये कुल कर्ज का 40.3 फीसद राशि को चुकाना होगा। राजस्थान की नई सरकार को इस दौरन 40.5 फीसदी, तेलगांना की नई सरकार को 29.7 फीसद कर्ज की राशि चुकानी होगी। सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ की आगामी सरकार को मौजूदा कर्ज की राशि का तकरीबन 70.4 फीसद चुकानी होगी।
जाहिर है कि इन राज्यों की सरकारों को अपना राजस्व बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना होगा, लेकिन जिस हिसाब से राजनीतिक दलों के बीच रेवड़ियां बांटने की घोषणा हो रही है उसको देखते हुए यह समस्या भी आ सकती है कि राजस्व संग्रह का एक बड़ा हिस्सा चुनावी वादों को पूरा करने में ही चला जाए। आरबीआई ने इसको लेकर संकेतों में चेताया भी है। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि वर्ष 2022-23 में राज्यों के आम बजट में गैर-विकास मदों में खर्चों का अनुपात काफी बढ़ा है। खास तौर पर पेंशन और प्रशासिनक मद में होने वाले खर्चे में वृद्धि हुई है। मेडिकल, सार्वजनिक स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं के मद में व्यय कम हुआ।
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