जबलपुर। जबलपुर हाईकोर्ट ने जमीन का मुआवजा नहीं देने के मामले को गंभीरता से लिया है। जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने रेलवे पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है। न्यायालय ने निर्देश दिए हैं कि इतने वर्षों का ब्याज सहित किराया भी दिया जाए। इसके अलावा नई भूमि स्वामी अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा भुगतान के निर्देश भी दिए गए हैं। इस पूरी प्रक्रिया को एक माह के भीतर पूरा करने के आदेश दिए गए हैं।
कटनी निवासी केशव कुमार निगम की ओर से यह मामला दायर किया गया था। केशव की मृत्यु के बाद उनके वारिसों शशि निगम, राकेश निगम, अनुराधा श्रीवास्तव और रजनी को याचिका में शामिल किया गया। मामला यह था कि रेलवे को लोको शेड निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता थी। याचिकाकर्ता की 0.45 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था। रेलवे को फरवरी 1979 में भूमि का कब्जा प्राप्त हो गया। इसके बाद भू-अर्जन की कार्रवाई लगभग 20 वर्षों तक चली, लेकिन रेलवे ने मुआवजा राशि जमा नहीं की। अंततः भू-अर्जन का प्रकरण समाप्त कर दिया गया। इस पर याचिकाकर्ता ने वर्ष 2002 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
आश्चर्य की बात यह है कि पिछले 22 वर्षों में याचिका लंबित रहने के दौरान राज्य शासन की ओर से कोई जवाब पेश नहीं किया गया। रेलवे ने अपने जवाब में कहा कि अवार्ड पारित हो गया है और 37 हजार रुपये की राशि ब्याज सहित जमा कर दी गई है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अजय रायजादा ने दलील दी कि रेलवे गलत बयान दे रहा है, अभी तक कोई अवार्ड पारित नहीं किया गया है। रेलवे द्वारा प्रस्तुत किया गया जवाब फरवरी 2014 का था। कोर्ट के सख्त रुख और कई अवसर देने के बाद रिकॉर्ड पेश किए गए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि कोई अवार्ड पारित नहीं किया गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने सुनवाई पश्चात् उक्त निर्देश दिए।
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