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    मप्रः तानसेन के आँगन में दो सभ्यताओं के सुरों का मिलन

  • December 28, 2021

    भोपाल। संगीत सम्राट तानसेन की याद में आयोजित सालाना संगीत समारोह में सोमवार की शाम विशेष बखुशनुमा रही। इस सभा में हिंदुस्तानी और यूरोपियन सभ्यताओं के संगीत साधकों की प्रस्तुतियाँ हुईं। संगीत रसिकों ने ऐसा महसूस किया मानो सुर सम्राट तानसेन के ऑंगन में दो सभ्यताओं के सुरों का मिलन हो रहा है।

    तानसेन समारोह के दूसरे दिन सोमवार की सायंकालीन सभा का आगाज़ शंकर गान्धर्व संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के ध्रुपद गायन से हुआ। राग यमन में चौताल की बंदिश के बोल थे- “जय शारदा भवानी”। प्रस्तुति में पखावज पर बमुन्नालाल भट्ट एवं हारमोनियम पर नारायण काटे ने साथ दिया।

    इसके बाद पहली प्रस्तुति में अर्जेंटीना के देसिएतों आनंदते ने विश्व संगीत की प्रस्तुति दी। देसीएतों ने एकॉस्टिक गिटार के साथ कई धुनें और सांग्स पेश किए। उन्होंने कई स्पेनिश सांग्स लेटिनो अमेरिकी रिदम पर पेश किए। आपने बोलेरो स्टाइल में सालसा स्टाइल में कई गीत पेश किए। इनमें साबोर ए एम इंनोविडबल खास हैं। देसीएतो मूलतः लेटिन मूल के हैं और दुनिया भर में अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं।

    ऊँची तान के साथ नैसर्गिक गायकी से रसिक हुए मंत्रमुग्ध
    तानसेन समारोह सोमवार को सायंकाल सजी तीसरी सभा मे कालिदास सम्मान से विभूषित मूर्धन्य ध्रुपद गायक पंडित अभय नारायण मलिक ने 85 साल की अवस्था होने के बावजूद अपने शिष्यों के साथ गायन कर साबित किया कि वो ऊँची तानों के साथ भी नैसर्गिक गायकी को कितनी बखूबी के साथ पेश कर सकते हैं। कलात्मक एवं कठिन तानें, पारंपरिक फिरत, मुर्की तथा अद्भुत कल्पनाशीलता के बीच अनुपम राग विस्तार से उनकी गायकी सजी थी। सुरों की शुद्धता और कंठ मिठास ने भी उनके गायन में चार चाँद लगा दिए। मधुरस में पगी गायकी के साथ पखावज पर तेजतर्रार अंगुलियों और थाप से उपजे नाद ने ऐसा माहौल रचा कि रसिक झूम उठे।

    अभयनारायन जी का संगीत के प्रति समर्पण प्रेरणादायक है।अपने पुत्र एवं शिष्य पं रंजीत मलिक एवं परिजन रंजीव मलिक, अजय पाठक, राजन मलिक एवं अभिषेक पाठक के साथ उन्होंने ध्रुपद के सुर लगाए। पहली प्रस्तुति राग विहाग की थी। धमार में बंदिश के बोल थे- ” कहाँ ते आये हो गोपाल गुलाल लगाए” इस बंदिश को उन्होंने पुरजोर तरीके से पेश किया। अगली बंदिश सूलताल में राग मालकौंस की रही। बंदिश के बोल थे “आवन कह गए अजहूँ न आए”। इस बंदिश को भी आपने पूरे मनोयोग से पेश किया। आपके साथ पखावज पर पंडित संगीत पाठक एवं रानू मलिक ने संगत की जबकि सारंगी पर भारतभूषण गोस्वामी एवं जनाब आबिद हुसैन ने साथ दिया। तानपूरे पर लता मलिक दुबे ने संगत की।

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