भोपाल (Bhopal)। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के अंदर चिकित्सा के क्षेत्र (medical field) में भले ही उन्नति और प्रगति हो रही हो, लेकिन डॉक्टरों की बड़ी कमी (Shortage Of Doctors) मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा पर प्रश्नचिन्ह (question mark on healthcare) लगाती है. प्रदेश के अंदर सैकड़ों ऐसे अस्पताल हैं जिनमें डॉक्टरों की भारी कमी है. मध्य प्रदेश के अंदर चिकित्सा विशेषज्ञों के पदों (positions of medical specialists) पर नजर डाली जाए तो प्रदेश में 3618 पद हैं. इनमें से 2404 खाली हैं।
वहीं चिकित्सा अधिकारियों के 5097 पदों में से लगभग 1719 पद खाली हैं. इसके अलावा एनएसथीसिया विशेषज्ञ, एमडी मेडिसिन और विशिष्ट दक्षता रखने वाले डॉक्टरों की मध्य प्रदेश के अस्पतालों में भारी कमी है. सरकारी अस्पतालों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 70 फीसदी सरकारी अस्पतालों में एनएसथीसिया विशेषज्ञ उपस्थित नहीं है. प्रदेश के अंदर सैकड़ों की संख्या में हर साल नए युवा डॉक्टर बनते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश दूसरे राज्यों की ओर रुख कर लेते हैं।
अन्य राज्यों की ओर रुख कर रहे युवा डॉक्टर्स
इस मामले में विशेषज्ञों का यह मानना है कि मध्य प्रदेश के अंदर चिकित्सा विभाग की विसंगति भी नए डॉक्टरों को प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था से दूर रखती है. नए युवा डॉक्टर मध्य प्रदेश में शासकीय सेवा देने की बजाय केंद्र, गुजरात,महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों में सेवा देना अधिक पसंद कर रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश में प्रमोशन की कोई स्पष्ट पॉलिसी नहीं है. इसके चलते कई युवा डॉक्टरों को अपना बेहतर भविष्य अन्य राज्यों में नजर आता है।
इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभु राम चौधरी ने बताया कि हमारी सरकार डॉक्टरों की कमी को दूर करने का सार्थक प्रयास कर रही है और डॉक्टरों को बेहतर से बेहतर सुविधाएं दी जा रही हैं. अब सीधी भर्ती के साथ-साथ जूनियर डॉक्टर्स के लिए जिला अस्पताल में तीन महीने की सेवा अनिवार्य कर दी गई है।
सूत्र बताते हैं कि युवा डॉक्टरों से लेकर वरिष्ठ डॉक्टरों में हमेशा प्रमोशन पॉलिसी को लेकर संशय देखा गया है। इसके चलते नए डॉक्टर्स अन्य प्रदेशों की ओर रुख करने का मन बना लेते हैं. क्योंकि अन्य राज्यों में प्रमोशन आसानी से मिल जाता है जिससे वरीयता प्राप्त करने में आसानी होती है।
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