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    IISER ने अब बनाई कोरोना का पता लगाने वाली किट 

  • June 02, 2021
    भोपाल। शोध, शोध और शोध, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) का यही काम है कि वह भारत में अनुसंधान के क्षेत्र में वह काम करे, जिसके लिए दुनिया में भारत की जय-जय कार होती रहे और उसकी रिसर्च लोगों के साथ ही समूचे पा‍रस्‍थि‍तिकी-पर्यावरण को एक नई दिशा देने में सफल हों। यूं तो कोरोना महामारी ने बहुत कुछ विनाश किया है। साथ ही बहुत कुछ ऐसा भी हुआ है जो किया जाना शायद ऐसी ही विपरीत परिस्‍थ‍ितियों में संभव था। 
    आपको कोविड है या नहीं सिर्फ एक मिनट में चलेगा पता 
    जी हां, आईआईएसईआर (IISER) ने पहले कम कीमत के ऑक्सीजन कंसंट्रेटर-ऑक्सीकॉन का अविष्कार किया फिर अब खून की जांच से कोरोना संक्रमण का पता लगाने वाली किट तैयार करने में सफलता अर्जित की है जिसमें आप सिर्फ एक मिनट में यह पता लगा सकते हैं कि व्‍यक्‍ति स्‍वस्‍थ है या उस पर कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है। जिसमें कि इसकी सबसे बड़ी खास बात जो बताई जा रही है कोरोना का वेरिएंट कोई भी हो, वह इसकी जांच से बचकर बाहर नहीं जा सकता है । 
    ट्रायल पूरी होते ही बाजार में आएगी किट 
    अनुसंधानकर्ताओं ने इस किट को लेकर अब तक जितने भी प्रयोग किए हैं, वह आशातीत उत्‍साह से भर देने वाले साबित हुए हैं। क्‍योंकि सभी नतीजे अच्छे आए हैं। हर कोरोना संक्रमण और इसके स्तर का पता एक मिनट में लगा लिया गया। इसके बाद विज्ञानियों का कहना है कि अभी अन्‍य जरूरी ट्रायल पूरे  होने के बाद यह किट सामान्‍य तौर पर बाजार में उपलब्‍ध करा दी जाएगी। इसके लिए किसी सरकारी संस्‍था को जिम्‍मेदारी सौपेंगे। 

    इसमें रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक पर होता है काम 
    इस किट को लेकर भोपाल स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइआइएसईआर) में डीन शोध के पद पर कार्यरत संजीव शुक्‍ला बताते हैं कि यह अनुसंधान मुख्‍य रूप से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च के डायरेक्टर प्रो. शिवा उमापति का है। यह किट रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक पर काम करती है। तीन संस्‍थाओं का संयुक्‍त प्रयास इसके निर्माण में है। किट का नाम यूनिवर्सल मल्टीपल एंगल रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (यूमार्स) रखा गया है। 
    ब्लड के प्लाज्मा सेल्स की रासायनिक संरचनाओं से चलता है संक्रमण का पता 
    प्रो. शिवा उमापति, डायरेक्टर, आइआइएसईआर जिनका की स्‍वयं का यह शोध कार्य है वे बताते हैं कि हम पिछले आठ माह से इस रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (यूमार्स) को लेकर कोरोना संक्रमण का पता लगाने पर शोध कर रहे हैं। इसमें किट के माध्‍यम से ब्लड के प्लाज्मा सेल्स की रासायनिक संरचनाओं के द्वारा संक्रमण का पता लगाया जाता है । हमें आधी से कुछ अधिक ही सफलता मिली है यह कहना अभी सही होगा। पूरी सफलता के लिए और टेस्‍ट करने की जरूरत है, जिस पर कि कार्य हो रहा है।  
    संक्रमण के स्‍तर तक को बता पाने में सक्षम है ये किट 
    उन्‍होंने कहा है कि इस किट के आ जाने के बाद कोरोना के वायरस के संक्रमण का पता असानी से लगाना संभव हो जाएगा।  यहां इसे और आसानी से समझें तो यूनिवर्सल मल्टीपल एंगल रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी परीक्षण किट में लगी लेजर बीम ब्लड के प्लाज्मा सेल्स के अंदर रासायनिक बदलावों का पता करती है। वह जान लेती है कि संक्रमण का स्तर कितना है । उनका कहना यह भी है कि कोरोना महामारी की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर का प्रकोप बहुत ज्यादा है। इसलिए हमारे वैज्ञानिकों को इससे लड़ने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहना है।  
    पहली बार ट्यूबरक्लोसिस संक्रमितों के अलावा किया गया कोरोना जांच में उपयोग 
    इससे पहले तक रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का प्रयोग टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) की जांच के लिए ही किया जाता रहा है। यह पहली बार हुआ है कि इस तकनीक से कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाया जा रहा है। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एक तकनीक है, जिसका उपयोग अणुओं की संरचना की जांच करने के लिए किया जाता है। यह एक लेजर बीम आधारित तकनीक है। इस पर सैंपल को रखकर उसके रासायनिक संरचनाओं में बदलाव का अध्ययन किया जाता है। 
    किट को तैयार करने में इन अन्‍य दो संस्‍थाओं का भी है योगदान 
    बताया जा रहा है कि भोपाल स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइआइएसईआर) के अलावा इस किट को तैयार करने में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। फिलहाल इसका प्रयोग एम्स, भोपाल के कोरोना मरीजों पर किया गया जोकि सफल रहा है । 
    यहां बता दें कि भारत के इन वैज्ञानिकों ने हाल ही में कम कीमत के ऑक्सीजन कंसंट्रेटर- ऑक्सीकॉन का अविष्कार किया है। इस डिवाइस को आईआईएसईआर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मित्रदीप भट्टाचार्य और केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकेटेश्वर राव ने डॉ. पी. बी. सुजीत और डॉ. शांतनु तालुकदार ने तैयार किया है।

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