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MP हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, भगोड़ा घोषित आरोपियों को मिला ये अधिकार

  • February 28, 2025

    भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की युगलपीठ ने फैसला सुनाया कि न्यायालय द्वारा भगोड़ा घोषित (declared fugitive) किए गए आरोपी भी सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। जबलपुर के एक धोखाधड़ी मामले में आरोपी ने जमानत याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट की विभिन्न बेंचों के विरोधाभासी आदेश थे।

    न्यायालय की ओर से भगोड़ा घोषित किए जाने के बाद भी आरोपी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर कर सकता है। युगलपीठ ने इस संबंध में हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंच द्वारा पारित विरोधाभासी आदेश पर सुनवाई के बाद उक्त आदेश पारित किए। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने कहा कि न्यायालय को धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत देने की शक्ति प्राप्त है। भगोड़ा घोषित अपीलकर्ता के आवेदन पर न्यायालय को प्रकरण के गुण-दोषों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।


    गौरतलब है कि जबलपुर के ओमती थाने में साल 2019 में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं के तहत दर्ज अपराध में न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 82 और 83 के तहत आरोपी को भगोड़ा घोषित कर दिया था। इसके अलावा सीआरपीसी की धारा 299 के तहत पुलिस ने उसकी अनुपस्थिति में आरोप पत्र भी दायर कर दिया था।

    भगोड़ा धोषित आरोपी ने अग्रिम जमातन के लिए मध्य प्रदेष हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया था कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की दो अलग-अलग बेंच ने न्यायालय द्वारा भगोड़ा घोषित अपराधिक की अग्रिम जमानत आवेदन पर सुनवाई किये जाने के संबंध में विरोधाभासी आदेश जारी किये हैं।

    एक आदेश में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया था कि न्यायालय जिस आरोपी को भगोड़ा घोषित करता है उसकी अग्रिम जमानत आवेदन पर सुनवाई नहीं कर सकते हैं। दूसरे आदेश में इसके विपरीत सुनवाई किए जाने के संबंध में कहा गया था। एकलपीठ ने दोनों विरोधाभासी आदेश में किसे विधि संगत माना जाये इसके लिए युगलपीठ के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने के निर्देश दिये थे।

    याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ को बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय पूर्व में पारित आदेश को स्पस्ष्ट करते हुए कहा है कि भगोड़े घोषित आरोपियों की जमानत याचिका पर संवैधानिक बेंच सुनवाई कर सकती है। संबंधित न्यायालयों को उचित मामलों में अग्रिम जमानत देने से नहीं रोका जा सकता है।

    न्यायालय के पास सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत देने की आवश्यक शक्ति है। युगलपीठ ने सुनवाई के बाद पारित अपने आदेश में कहा है कि अपीलकर्ता अपनी स्वतंत्रता के लिए अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर कर सकता है। भले ही उसे न्यायालय द्वारा भगोड़ा घोषित हो या उसके खिलाफ आरोप पत्र भी प्रस्तुत कर दिया गया हो। युगलपीठ ने रोस्टर के अनुसार अपीलकर्ता के अग्रिम जमानत के आवेदन पर सुनवाई के निर्देश जारी किये हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट मित्र के रूप में अधिवक्ता विशाल डेनियल और अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने पैरवी की।

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