जबलपु। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में जनसंख्या नीति (population policy) प्रभावी ढंग से लागू किए जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट (High Court) में याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि देश की पापुलेशन ग्रोथ (population growth) 17 प्रतिशत है और प्रदेश में इससे अधिक 20 प्रतिशत है। हाईकार्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
बता दें कि नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे की तरफ से याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया था कि प्रदेश में जनवरी 2000 से जनसंख्या नीति लागू की गई थी। पिछले 21 सालों से इस नीति की समक्ष तथा विश्लेषण नहीं किया गया है। इस नीति को लागू करने के बाद जिला व राज्य स्तरीय कमेटी तथा उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने का प्रस्ताव है। याचिका में कहा गया था कि नीति के अनुसार फर्टीलिटी रेट 2.1 होना चाहिए। जिससे प्रतिवर्ष संख्या में सिर्फ 1 प्रतिशत बढ़ोतरी हो सके। यह नीति सिर्फ कागजों तक सीमित है।
बताया गया कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा प्रचार-प्रयास नहीं किया जा रहा है। शासकीय सेवा के दौरान कर्मचारी दो से अधिक बच्चे पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा टीटी ऑपरेशन करवाने वालों को बेनिफिट प्रदान किया जाता था, जिसे खत्म कर दिया गया है। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने पूर्व में भी याचिका दायर की थी। जिसका निराकरण करते हुए हाईकोर्ट ने सक्षम प्राधिकरण के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने के आदेश दिए थे।
अभ्यावेदन दिए पांच माह से अधिक का समय होने के बावजूद भी उस पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई है। जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गई है। याचिका में प्रदेश के मुख्य सचिव, विधि विभाग के प्रमुख सचिव, महिला एव बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य एव परिवार कल्याण विभाग के सचिव को अनावेदक बनाया गया है। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने पैरवी की।
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