भोपाल। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार (Chief Ministerial candidate) के नाम की घोषणा में हो रहे विलंब से लग रहा है कि मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं हो पा रही है। जो भी नाम होगा वह पर्यवेक्षक (supervisor) बताएंगे और उस पर सहमति होना तय है। कई दावेदार को देखते हुए कयास लग रहे हैं कि प्रदेश को उप मुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) भी मिल सकता है। हालांकि ये पहला प्रयोग नहीं होगा। इसके पहले भी ये प्रयोग अपनाया जा चुका है।
प्रदेश के चुनाव में प्रचंड विजय (Huge win) और जनता के समर्थन ने भाजपा को आगामी चुनाव के लिए उत्साहित कर दिया है। आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए आलाकमान मुख्यमंत्री पद के लिए ऐसे नाम पर सहमत होंगे जो जातिगत समीकरण के साथ जाना पहचाना चेहरा हो। पद के लिए चयन में देरी से जाहिर है की प्रदेश को ढाई दशक बाद उपमुख्यमंत्री मिले। विधानसभा चुनाव में विजयी सांसद और केंद्र में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, रीति पाठक और उदयप्रताप सिंह से इस्तीफा ले लिया गया है। अब निश्चय ही उन्हें प्रदेश में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी इंदौर से चुने गए हैं, इन सभी नेताओं के नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं।
आलाकमान को इन सभी प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी देना है। माना जा रहा है कि सत्ता संतुलन के लिए इस बार प्रदेश में डिप्टी मुख्यमंत्री के फार्मूले को अपनाया जा सकता है। मध्य प्रदेश गठन के बाद 1957 से राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो पता चलता है कि समय-समय पर संतुलन बैठाने के यह प्रयोग प्रदेश में किया गया है। 1967 में प्रदेश में पहली गैरकांग्रेसी संविद सरकार का गठन हुआ, गोविंदनारायण सिंह मुख्यमंत्री बने थे। उस सरकार में सबसे बड़ा सहयोगी दल जनसंघ था। इस सरकार गठन के पूर्व बैठक में जनसंघ के वरिष्ठ नेता दीनदयाल उपाध्याय भोपाल आए थे। जावद से निर्वाचित वीरेंद्र कुमार सकलेचा को उप-मुख्यमंत्री चुना गया था।
1980 में प्रदेश में अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए तब यह मांग उठी थी कि आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब मनावर-धार से निर्वाचित शिवभानुसिह सोलंकी का नाम भी मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में रहा था, परन्तु उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। 1993 में दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुखिया बने तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कसरावद, खरगोन से निर्वाचित सुभाष यादव को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था।
1998 में जब दिग्विजय सिंह की दूसरी पारी आरंभ की तब कुक्षी-धार से निर्वाचित जमुना देवी को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। जमुनादेवी देश की पहली महिला उप-मुख्यमंत्री थीं। मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य 1963 में उत्तरप्रदेश की सुचेता कृपलानी के नाम है। जमुनादेवी को उप-मुख्यमंत्री बनाने के पीछे आदिवासी चेहरे को सामने लाना था। यह भी एक संयोग है कि प्रदेश में अभी तक चार उप-मुख्यमंत्री बनाए गए और वे चारों ही मालवा निमाड़ से चुने गए थे, इससे यह बात भी साफ हो जाती है कि मालवा निमाड़ को साधने का काम वर्षों से किया जाता रहा है। देखना है इस बार प्रदेश में क्या किसी को उप-मुख़्यमंत्री बनाया जाता है और यदि यह होता है तो क्या मालवा निमाड़ का यह मिथक कायम रहेगा?
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