भोपाल: पांचों राज्यों में चुनावी परिणाम लगभग सामने आ चुके हैं. मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी अपनी सरकार बनाती नजर आ रही है तो वहीं तेलंगाना में कांग्रेस आगे है. खबर लिखे जाने तक मध्यप्रदेश में बीजेपी 164 तो वहीं कांग्रेस को 63, राजस्थान में बीजेपी 110 तो वहीं कांग्रेस 72, छत्तीसगढ़ में बीजेपी 53 और कांग्रेस 34 और तेलंगाना में बीजेपी 10 तो वहीं कांग्रेस 63 सीटों से जीत हासिल कर रही है. तीन राज्यों में बीजेपी जीत की ओर आगे बढ़ती नजर आ रही है.
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ समय से एंटी इनकंबेंसी शब्द काफी चर्चाओं में है. जिसका साधारण अर्थ है मौजूदा सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा. दरअसल कहा जा रहा था कि मौजूदा शिवराज सरकार से लोग खुश नहीं हैं और यही वजह है कि मध्यप्रदेश में बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं बीजेपी में कलह की भी खबरें थीं. जिसकी वजह से भी उसे नुकसान होने की खबरें थीं. हालांकि हुआ इसके ठीक उलट और बीजेपी के खिलाफ लोगों का गुस्सा तो नजर आया नहीं बल्कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार बीजेपी बढ़त बनाती नजर आ रही है. लेकिन ऐसा हुआ कैसे?
शिवराज सिंह चौहान द्वारा चलाई गई लाडली बहना योजना बीजेपी के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है. योजना के तहत एक करोड़ से ज्यादा गरीब महिलाओं को 1,000 रुपये उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किये गए. बाद में इस राशि को बढ़ाकर 1,250 रुपये कर दिया गया और नवंबर आने तक लाभार्थियों की संख्या को बढ़ाकर 1.24 करोड़ कर दिया गया. इसके अलावा सत्ता में फिर वापस लौटने पर बीजेपी ने इस राशि को 3,000 रुपए करने का भी वादा किया.
इसी को इस बार सबसे ज्यादा वोटिंग होने की वजह भी माना जा रहा है, कहा जा रहा है इस योजना के चलते महिलाओं का पक्ष बीजेपी की ओर रहा. इसके अलावा पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा. पार्टी के इस कदम को सामूहिक नेतृत्व के संदेश को बढ़ावा देना माना जा रहा है. जो जीत का एक बड़ा फैक्टर भी साबित हो सकती है. इन सभी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा भी बीजेपी को जीत दिलाने का एक बड़ा कारण माना जा रहा है.
टिकट वितरण में गुटबाजी- मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले कांग्रेस की टिकट वितरण में गुटबाजी सतह पर आ गई. कई सीटों पर प्रत्याशियों को लेकर हंगामा हुआ. कार्यकर्ताओं को समझाने के बजाए कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के मतभेद भी सड़क पर आ गए. जहां गोटेगांव से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और दलितों का बड़ा चेहरा एनपी प्रजापति का टिकट कटा तो इसकी वजह राहुल गांधी का सर्वे में नाम न होना बताया गया. वहीं कांग्रेस के जेवियर मेढ़ा जैसे नेता झाबुआ से टिकट मांग रहे थे लेकिन कांग्रसे ने वहां से विक्रांत भूरिया को टिकट दे दिया. इससे मेढ़ा खासे नाराज हो गए और कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इसके अलावा नागौद में टिकट न मिलने से नाराज पूर्व कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह ने पार्टी छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. उन्होंने भी पार्टी में गुटबाजी का आरोप लगाया.
टीकमगढ़ के खरगापुर विधानसभा क्षेत्र से अजय यादव कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला जिसके चलते उन्होंने पार्टी की सदस्यता से त्याग-पत्र देते हुए संगठन में पिछड़ा वर्ग और कार्यकर्ताओं की पूछपरख न होने का आरोप लगाते हुए न्याय यात्रा निकाली. हालांकि गुटबाजी की बात को सिरे से नकारते हुए कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा था कि पार्टी में गुटबाजी जैसी कोई बात नहीं है. कांग्रेस बड़ा परिवार है. चार हजार आवेदन आए थे. सबको तो टिकट नहीं मिल सकता. टिकट वितरण में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हैं. सहमति बनाते हुए प्रत्यशियों का चयन किया गया है. जो नाराज हैं, वो भी हमारे अपने हैं. सबसे चर्चा हो रही है और हम सबका लक्ष्य एक है, वह है भाजपा के कुशासन से मध्य प्रदेश की मुक्ति. लेकिन पार्टी में टिकट वितरण में गुटबाजी की खबर फैल चुकी थी और बागीयों से भी पार्टी को बड़ा नुकसान होने की बात कही जा रही है.
संगठन की नाकामी- कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, जीतू पटवारी उस तरीके से प्रचार नहीं कर पाए जो बीजेपी के नेताओं ने किया. ये भी कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण माना जा रहा है. दूसरी ओर बीजेपी के संगठन के आगे कांग्रेस पूरी तरह से पस्त आई. बूथस्तर पर बीजेपी हर बार जिस तरह से तैयारी करती है कांग्रेस उसका मुकाबला करने में फिर नाकाम रही है.
नाराज वोटरों के सहारे लड़ती रही पार्टी- कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में पूरा चुनाव बीजेपी से नाराज वोटर्स के सहारे लड़ा है. उस वक्त जब इंडिया अलायंस मध्यप्रदेश में रैली करने की बात कह रही थी तब कमलनाथ ने ये कहते हुए मना कर दिया था कि वो इस चुनाव को राष्ट्रीय नहीं बनाना चाहते. साथ ही कमलनाथ ने इस पूरे चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जनता की नाराजगी को भुनाने की कोशिश की. इसके अलावा पार्टी की ओर से जारी घोषणा पत्र भी आमजन और युवाओं को अपनी ओर अधिक आकर्षित नहीं कर पाया.
वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने एबीपी से हुई बातचीत में कहा, “मध्य प्रदेश में सरकार के खिलाफ नाराजगी नहीं थी लेकिन जनता ऊब जरूर गई थी लेकिन अगर जिस पार्टी का संगठन इस ऊबे मतदाता को वोटिंग के लिए ले जाता है तो उसी की जीत होगी और लोकसभा चुनाव में जहां पीएम मोदी चेहरा हैं वहां कांग्रेस संगठन के तौर भी सामना नहीं कर पाई.”
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved