भोपाल: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है. इस बार दोनों ही पार्टियों का फोकस आदिवासी समुदाय के वोटों पर है. प्रियंका गांधी एक के बाद एक रैलियां करके बीजेपी के खिलाफ और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में जुटी हैं. आदिवासियों को साधने के लिए प्रियंका गांधी ने गुरुवार को मंडला रैली से आखिर बड़ा दांव चल दिया. प्रियंका ने वादा किया है कि एमपी में कांग्रेस सरकार बनती है तो 50 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी वाले जिलों में छठवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू किया जाएगा. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस के लिए यह दांव तुरुप का पत्ता साबित होता है या नहीं?
प्रियंका गांधी ने एमपी के आदिवासी बहुल जिलों में छठी अनुसूची लागू करने का वादा करके मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और असम जैसे राज्य में मिले कानूनी अधिकार को लागू करने का दांव चला है. राज्य में 50 फीसदी से ऊपर वाले छह जिले हैं. बाडवानी, अलीराजपुर, झबुवा, धार, डिंडोरी और मंडला. छठीं अनुसूची के लागू किए जाने के बाद आदिवासी समुदाय को जल-जंगल-जमीन ही नहीं विवाह-विरासत पर खुद का कानून बनाने और उसे लागू करने का अधिकार मिल जाएगा. आदिवासी समुदाय फिर तय करेंगे कि किसे खनन और रेत के पट्टे और जमीन और अपने रीति-रिवाज के मुताबिक शादी करने का कानून होगा.
मध्य प्रदेश की सियासत में 21 फीसदी आदिवासी वोटर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 2018 में बीजेपी की सत्ता से बेदखल होने के पीछे एक बड़ी वजह आदिवासी समुदाय की नाराजगी रही है. सूबे की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए रिजर्व हैं, लेकिन उनका सियासी प्रभाव लगभग 80 से ज्यादा सीटों पर है. यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की नजर आदिवासी समुदाय के वोटों को साधने की है.
प्रियंका गांधी मध्य प्रदेश में अभी तक कुल चार जनसभाएं कर चुकी है, जिनमें से 3 रैलियां आदिवासी बहुल इलाके में की हैं. प्रियंका ने एमपी में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत आदिवासी बहुल माने जाने वाले महाकौशल के जबलपुर से की और उसके बाद मालवा के धार और अब मंडला में रैली करके सियासी समीकरण सेट करने की कोशिश की है. प्रियंका ने कहा कि कांग्रेस की सोच आदिवासियों का सम्मान, संस्कृति व परंपराओं को बढ़ाने वाली रही है, इसीलिए आदिवासियों को वन अधिकार कानून दिया था. जमीन के पट्टे देने का काम किया.
प्रियंका गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी का नाम लेकर इमोशनल कार्ड खेलते हुए कहा कि सभी इंदिरा गांधी को माता कहते थे. खरगोन जिले के भीकनगांव क्षेत्र में तो आदिवासियों ने 37 साल पहले इंदिरा गांधी का मंदिर भी बनवाया है. यहां पर शक्ति स्थल (इंदिरा गांधी की समाधिस्थल) से मिट्टी लाई गई थी. इसके बाद प्रियंका ने कहा कि मैं इंदिरा गांधी जी की पोती हूं, मैं समझती हूं कि मेरी शक्ल भी उनसे मिलती जुलती है. मैं जानती हूं कि आप उनको माता इसलिए कहते थे, क्योंकि आपको उन पर भरोसा था. ये मेरी जिम्मेदारी है कि आपने उनको माता माना तो मैं वही वादे आपसे करूं, जो पूरे कर सकूं. जो आपको आगे बढ़ा पाए, वह सच बात हो.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आदिवासियों की परंपराओं और आस्था से कांग्रेस को जोड़ते हुए कहा कि जब हम आपके बीच आते हैं और ये कहते हैं कि हम आपके लिए ये काम करेंगे तो हम अपनी पगड़ी आपके सामने रखते हैं. यदि हम ये वादे पूरे नहीं करेंगे तो हमारा सम्मान जाएगा. प्रियंका ने कहा कि एमपी में हमारी सरकार आती है तो 50 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी है, वहां छठीं अनुसूची का क्षेत्र बनाया जाएगा. इसके साथ एससी और एसटी के खाली पड़े बैकलाग पदों को तत्काल भरने का भी भरोसा दिलाया. इस तरह से प्रियंका आदिवासी समुदाय के विश्वास जीतने की कोशिश करती हुईं नजर आईं.
दरअसल मध्य प्रदेश पिछले साल नवंबर में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर आदिवासियों को अधिकार संपन्न बनाने वाला पेसा (पंचायत,अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार कानून,1996) कानून लागू कर दिया. यह कानून संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को अधिकार संपन्न बनाकर प्रशासन का अधिकार देता है, जिसके तहत स्थानीय जनजातियों के जल, जंगल और जमीन पर अधिकार और संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित रखने का है.
शिवराज सरकार ने सूबे के 89 आदिवासी बहुल ब्लॉक में पांचवीं अनुसूची को लागू किया. राज्य में विकासखंड आलीराजपुर, अनूपपुर, बड़वानी, बालाघाट, बैतूल, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, धार, डिंडौरी, नर्मदापुरम, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंडला, रतलाम, सिवनी, शहडोल, श्योपुर, सीधी और उमरिया जिलों में आते हैं. यह वही इलाके हैं जो कांग्रेस का गढ़ रहे हैं, जहां बीजेपी ने पांचवीं अनुसूची के जरिए अपने खोए हुए सियासी जनाधार को मजबूत करने की कवायद की थी, लेकिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने एक कदम और आगे चलकर छठवीं अनुसूची लागू करने का वादा कर दिया.
मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं, लेकिन उनका प्रभाव 80 से ज्यादा सीट पर है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 30 आदिवासी सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जबकि बीजेपी सिर्फ 16 सीटें ही जीत सकी थी. 2013 में बीजेपी 31 और कांग्रेस 15 आदिवासी सुरक्षित सीटें जीती थी, जबकि 2008 में बीजेपी 29 और कांग्रेस 17 एसटी सीटें जीत दर्ज कर सकी थी. वहीं 2003 में बीजेपी की मध्य प्रदेश की सियासत में वापसी में आदिवासी वोटों का अहम रोल था. तब राज्य की 41 सुरक्षित सीटों में से बीजेपी 37 और कांग्रेस महज 2 सीटें ही जीत सकी थी.
कांग्रेस ने पिछले चुनाव में आदिवासी बहुल इलाके में अपनी पकड़ बनाकर 15 साल से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजेपी को बेदखल कर दिया था, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते बीजेपी 15 महीने के बाद फिर वापसी कर गई. यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही आदिवासी मतदाताओं की अहमियत को समझते हुए सियासी दांव चल रहे हैं. देखना है कि इस बार आदिवासियों की पहली पसंद कौन बनती है?
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