सागर (sagar)। मध्यप्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly elections 2023) होना है जिसकी तैयारियों में भाजपा, कांग्रेस सहित सपा और बसपा (SP and BSP) लग गई हैं। इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly elections 2023)) में पिछड़ा इलाका कहा जाने वाला बुंदेलखंड (Bundelkhand ) पर सबकी नजर है। एक तरफ जहां कांग्रेस सबसे अधिक उन क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है, जहां पिछले चुनाव में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र आता है तो वहीं भाजपा भी यहां की सभी सीटों पर अपना परचम लहराना चाहती है।
जानकारी के लिए बता दें कि बुंदेलखंड के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी और छतरपुर में 26 विधानसभा सीटें आती हैं। 2018 के चुनाव में यहां भाजपा को 14, कांग्रेस को 10 और बसपा व सपा ने एक-एक सीट जीती थी। इसमें सागर जिले की रहली सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है। यहां से गोपाल भार्गव लगातार आठ बार से जीत रहे हैं।
वैसे भी मध्य प्रदेश का सबसे पिछड़ा इलाका बुंदेलखंड माना जाता है। बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, पलायन जैसी समस्याएं बुंदेलखंड में प्रदेश के बाकी इलाकों से ज्यादा हैं। बुंदेलखंड में दिखावे के लिए हर बार चुनाव तो इन्हीं मुद्दों पर लड़ा जाता है, लेकिन मतदान के ठीक पहले जाति वाला मामला हावी होने लगता है। कहते हैं कि बुंदेलखंड में दल से ज्यादा जातियों का जोर रहता है।
कांग्रेस का सीएम चेहरा कमलनाथ और संगठन का काम देख रहे दिग्विजय सिंह बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को ही मुद्दा बनाकर अपने चुनाव अभियान की रणनीति तैयार कर रहे हैं। वहीं,बीजेपी अपनी विकास योजनाओं के नाम पर वोट मांगने की तैयारी में है। बुंदेलखंड पैकेज,बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और 45 हजार करोड रुपए की केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने भी बुंदेलखंड में पार्टी की मजबूती के लिए बड़ा दांव खेला है।
बता दें कि बुंदेलखंड के सबसे बड़े जिले सागर में कांग्रेस के लिए कई चुनौतियां हैं। नगरीय निकाय चुनाव में यहां पार्टी को प्रत्याशी तक नहीं मिले थे। राज्य के तीन मंत्री (गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत) इसी जिले से हैं और तीनों ही यहां काफी प्रभाव भी रखते हैं। यही कारण है कि इस बार यहां की पूरी जिम्मेदारी पूर्व सीएम दिग्विजय के हाथों में हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि बुन्देलखण्ड का क्षेत्र दो राज्यों में आता है। यह मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। इसका बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है। बुंदेलखंड के प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है। बुंदेली इस क्षेत्र की मुख्य बोली है. भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद बुंदेलखंड में एकता और समरसता विद्यमान है। इस वजह से यह क्षेत्र अपने आप में अनूठा हो जाता है.बुंदेलखंड की अपनी अलग ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत है.बुंदेली माटी में जन्मी अनेक विभूतियों ने इस अंचल का नाम खूब रोशन किया और इतिहास में अमर हो गए.महान चंदेल शासक बिधाधर चंदेल,बांदा के नवाब शमशेर बहादुर प्रथम, आल्हा-ऊदल, वीरभद्र बुंदेला,सोहनपाल बुंदेला, रुद्रप्रताप देव, बुंदेला रानी कुंवरी गनेशी बाई, बुंदेला वीरसिंह जूदेव, वीर हरदौल बुंदेला,रानी सारंधा बुंदेला, रामगढ़ की रानी अबंतीबाई लोधी,महाराजा छत्रसाल बुंदेला, मधुकर शाह बुंदेला राजा भोज,ईसुरी, कवि पद्माकर, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मर्दन सिंह जूदेव बुंदेला,डॉक्टर हरिसिंह गौर, कवि मैथिलीशरण गुप्त, मेजर ध्यान चन्द्र, गोस्वामी तुलसी दास,माधव प्रसाद तिवारी महोबा आदि अनेक महान विभूतियां इसी क्षेत्र से संबद्ध रखती हैं.बुंदेलखंड में ही तारण पंथ का जन्म स्थान है। बुन्देलखण्ड में ओरछा के रामराजा सरकार,डायमंड सिटी पन्ना,खजुराहो के मंदिर और मूर्तियां,झांसी और सागर प्रसिद्ध हैं।
अगर सीटों की बात करें तो बुंदेलखंड के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी और छतरपुर में 26 विधानसभा सीटें आती हैं।
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