चंदेरी। चन्देरी में नृसिंह मन्दिर (Narsingh Temple in Chanderi) पर दिवाली के दूसरे दिन होने वाले मौनी नृत्य (silent dance) में सांसद डॉ. केपी यादव (MP Dr. KP Yadav) सम्मिलित हुए व उनके साथ नृत्य किया।
बतादें कि बुंदेलखंड अपने आपमें बहुत से लोकनृत्य और लोकसंगीतों को संजोए हुए है। इन्हीं में से एक है मौनिया या मौनी नृत्य। यह नृत्य बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दूसरे दिन मौन परमा को पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे मोनी परमा भी कहा जाता है। यह नृत्य यहां की सबसे प्राचीन नृत्य शैली है। इसे सेहरा और दीपावली नृत्य भी कहते हैं।
इसमें किशोरों द्वारा घेरा बनाकर मोर के पंखों को लेकर बड़े ही मोहक अंदाज में नृत्य किया जाता है। बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों के लोगों के मौन होकर मौन परमा के दिन इस नृत्य को करने से इस नृत्य का नाम मौनिया नृत्य रखा गया। साथ ही, मौन व्रत करने वालों को मौनी बाबा भी कहा जाता है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे तब उनकी सारी गायें कहीं चली गईं। अपनी गायों को न पाकर भगवान श्रीकृष्ण दु:खी होकर मौन हो गए। इसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। जब ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर लाये, तब कहीं जाकर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा। इसी आधार पर इस परम्परा की शुरुआत हुई। इसीलिए मान्यता के अनुरूप श्रीकृष्ण के भक्त गाँव-गाँव से मौन व्रत रखकर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गाँवों की परिक्रमा लगाते हैं और मंदिर-मंदिर जाकर भगवान श्रीकृष्णा के दर्शन करते हैं।
मौनिया नृत्य की टोली में 11, 21 व 31 ग्रामीण या इससे अधिक लोग भी सम्मिलित होते हैं। नृत्य में मोर के पंख, एक रंग की भेषभूषा, हाथों में डंडा रखा जाता है। नृतकों की टोली में एक जोकर, नृत्यांगना (पुरुष बनते हैं), दलदल घोड़ी, कृष्ण की भेषभूषा पहने युवक आदि सम्मिलित होते हैं। इस नृत्य में बुंदेली यंत्र नगड़िया, ढोलक, मजीरा, झेला, हरमोनिया आदि लिए नजर आते हैं। गायक छंद गीत में स्वर छेड़ता है और वादक उसी धुन में वाद यंत्र का प्रयोग करता है।
इस अवसर पर सांसद डॉ केपी यादव भी स्वयं को नही रोक पाए और मौनी बाबाओं के साथ उन्होंने पारम्परिक नृत्य किया,इस अवसर पर सांसद श्री यादव ने कहा कि बुंदेलखंड की धरती अनेक सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे हुए है,मौनी नृत्य उसी का एक उदाहरण है पूर्वजो से विरासत में मिली इस परम्परा को हमारे समाज बन्धु संरक्षित करने का कार्य कर रहे है यह हमारे देश की सांस्कृतिक समृद्धता का प्रतीक हैं जिसमे कला के साथ साथ श्रद्धा व लोक संस्कृति का भी महत्व है। आज मुझे इस अनुभव के बाद आनंद की अनुभूति हुई कला के इस स्वरूप पर हमे गौरव है। एजेंसी
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved