सीहोर। प्रदेश के सीहोर जिले (Sehore District) में चिंतामन सिद्ध गणेश का दो हजार साल पुरानी प्रतिमा है। जो कि देश की चार स्वयंभू प्रतिमाओं में शामिल है। चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर (Chintaman Siddha Ganesh Temple) में सालभर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है लेकिन गणेशोत्सव (Ganeshotsav) के दौरान यहां की रौनक देखते ही बनती है। गणेशोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में पूरे 10 दिनों के लिए मेले का आयोजन भी किया जाता है। दूर-दूर से लोग चिंतामन गणेश के दर्शन करने पहुंचते हैं।
देश में भगवान गणेश की चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं। पहली राजस्थान के रणथंभौर सवाई माधोपुर में, दूसरी उज्जैन, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में। श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से मन चाही मुराद पूरी होती है। इसलिए मंदिर की दीवार में लोग उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।
चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है सम्राट विक्रमादित्य भगवान गणेश के उपासक थे, वे अक्सर राजस्थान में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते थे। एक बार उन्होंने भगवान गणेश से उनके महल में स्थापित होने को कहा। भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उनके साथ कमल पुष्प के रूप में चलने के लिए तैयार हो गए। गणेश जी ने राजा के सामने शर्त रखी कि जहां कमल का फूल खिल जाएगा वे वहीं स्थापित हो जाएंगे।
राजस्थान से वापस आते समय अचानक सीहोर के पास आकर एक स्थान पर रख का पहिया जमीन में धंस गया। काफी कोशिशों को बाद भी रथ का पहिया निकल नहीं सका और सुबह होते ही कमल का फूल खिल कर गणेश जी की प्रतिमा के रूप में बदल गया। राजा ने प्रतिमा को निकालने की कोशिश की लेकिन वह जमीन में धंसती जा रही थी। बाद में भगवान की इच्छा समझकर राजा विक्रमादित्य ने सीहोर में ही मंदिर बनवाकर प्रतिमा स्थापित करा दी। भगवान गणेश की प्रतिमा आज भी आधी जमीन में धंसी हुई है।
चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर में गणेश चतुर्थी से 10 दिनों तक मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान दूर-दूर से भक्त भगवान गणेश के दर्शन और आशीर्वाद लेने आते हैं। भगवान का रोज अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। जो भी इस मंदिर में सच्चे दिल से भगवान गणेश से कुछ मांगता है बप्पा उसकी मुराद जरूर पूरी करते हैं।
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