जबलपुर (Jabalpur) । मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (MP Assembly Elections) के रण के लिए बैटलफील्ड लगभग तैयार हो चुकी है. सूबे की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों, बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) ने चुनावी रण के लिए कमर कस ली है. राज्य की आधी आबादी यानी महिला वोटरों (women voters) को लुभाने के लिए दोनों ही दलों ने अपने-अपने दांव चल दिए हैं. इसके बाद बड़ी लड़ाई आदिवासी वोटरों को लेकर होने वाली है. दोनों ही दलों ने आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने की शुरुआत कर दी है. यहां 6 महीने बाद चुनाव होने वाले हैं और सभी जानते हैं कि मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल करने की एक चाबी आदिवासी वोटरों के पास भी हैं.
बताते चलें कि मध्य प्रदेश के साल 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों ने बीजेपी को बड़ा झटका दिया था. बीजेपी अब आदिवासियों को अपने पाले में वापस लाने के लिए बेताब लग रही है. बीजेपी ने साल 2018 के चुनाव परिणाम के बाद एक कठिन सबक सीखा था. आदिवासी वोटरों की बेरुखी से वह विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से हार गई थी.
बात करें साल 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों की तो कांग्रेस ने प्रदेश की कुल 47 ट्राइबल रिज़र्व सीट में से 31 पर जीत हासिल की थी. बीजेपी को सिर्फ 16 सीटों से संतोष करना पड़ा और मध्य प्रदेश में 15 साल बाद विपक्ष में बैठना पड़ा. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव हारने के बाद बीजेपी 15 महीने तक सत्ता से बाहर रही. हालांकि, फरवरी 2020 में कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह के बाद बीजेपी फिर मध्य प्रदेश की सत्ता में वापस लौट आई. उस दौरान सिंधिया-समर्थकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई, जिससे बीजेपी सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ.
ये रहे पिछले चुनावों के हाल
दरसअल, 2003 के पहले राज्य का आदिवासी वोटर पूरी तरह कांग्रेस के साथ था. तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ घनघोर सत्ता विरोधी माहौल के बीच 2003 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. बीजेपी की बंपर जीत में आदिवासी वोटरों का बहुत बड़ा योगदान था. तब अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर उसने जीत हासिल की थी. इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 पर जीत बीजेपी ने जीत हासिल की और दोबारा सत्ता में वापसी की. इसके बाद परिसीमन के कारण जनजातीय आरक्षित सीटों की संख्या 47 से बढ़कर 41 हो गई. साल 2013 में बीजेपी ने 47 में से 31 सीटों पर फिर से जीत हासिल की और लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता हासिल की.
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि साल 2002 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासियों को जोड़ने के लिए एक हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया था. इस हिंदू सम्मेलन में लगभग 2 लाख आदिवासी आए थे. यह सम्मेलन 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए अच्छी खबर लेकर आया, जब इसने 41 में से 37 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की.
क्या बीजेपी वापस पाएगी आदिवासी जनाधार?
यहां बताते चलें कि एमपी के आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी. वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था. 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है. वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है. यह 2013 की तुलना में 18 सीट कम है. अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्य 1.53 करोड़ से अधिक थी. दस साल पहले मध्य प्रदेश के कुल 7.26 करोड़ निवासियों में से 21.08 आदिवासी थे. अगर बात वर्तमान समय की करें तो फिलहाल आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 1.75 करोड़ है, जो सूबे की कुल जनसंख्या का 22 प्रतिशत हैं. राजनीतिक जानकार कहते है कि राज्य की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं.
आदिवासी वोटरों को लुभाने की कोशिश में बीजेपी और कांग्रेस
राजनीतिक विशेषज्ञ मनीष गुप्ता कहते हैं कि मध्य प्रदेश की आबादी में आदिवासी समुदाय की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत के आसपास है और इस समुदाय का असर 84 सीटों पर देखा जाता है. इस वजह से दोनों ही राजनीतिक पार्टियां आदिवासी वोटरों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. बीजेपी ने पेसा एक्ट लागू करने के साथ आदिवासी जननायकों का भी खूब महिमामंडन किया है.
राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री, अमित शाह सहित तमाम दिग्गज भाजपा नेता आदिवासी इलाकों में पब्लिक रैली कर चुके हैं. कांग्रेस थोड़ा देर से जागी है और अब 12 जून को आदिवासी महाकौशल अंचल से प्रियंका गांधी की पब्लिक मीटिंग से अपने चुनाव अभियान का आगाज करने जा रही है. मनीष गुप्ता कहते हैं कि 2023 के चुनावी रण में जो भी खेमा आदिवासी वोटरों को साधने में कामयाब हुआ, उसके लिए “मिशन मध्य प्रदेश फतह” आसान हो जाएगा.
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