– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
महापुरूषों के स्मरण की परंपरा पहले भी रही है। अमृत महोत्सव ने इसको नया स्वरूप दिया है। स्वतन्त्रता संग्राम का दायरा बहुत व्यापक था। इसके राजीनीतिक,सामाजिक एवं आध्यात्मिक पहलू भी थे। इन सभी पर समग्र चिंतन- मनन की आवश्यकता था किंतु अनेक तथ्य उपेक्षित रह गए। इतिहास में इन्हें गौरवपूर्ण एवं उचित स्थान नहीं मिल सका। कई घटनाओं को ब्रिटिश शासन एवं इतिहासकारों ने नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया था। आजादी के बाद भी उन्हें उसी रूप में स्वीकार किया गया। काकोरी की घटना को डकैती का रूप अंग्रेजों ने दिया था। जबकि यह ब्रिटिश सत्ता द्वारा किये जा रहे आर्थिक शोषण को एक प्रकार की चुनौती थी।
आजादी के इतने वर्ष बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस घटना को सम्मानजनक नाम दिया। इसे काकोरी ट्रेन एक्शन नाम दिया गया। यह अंग्रेजों के विरुद्ध एक्शन ही था। इसलिए गोविंद बल्लभ पंत जैसे अनेक सेनानियों ने एक्शन में शामिल क्रांतिकारियों के मुकदमे लड़े। उन्होंने इनके बचाव हेतु पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र लिखा था। इसी प्रकार चौरी चौरा घटना को केवल हिंसक रूप में ही प्रस्तुत किया गया। इसके पीछे ब्रिटिश सत्ता द्वारा किसानों के शोषण एवं आंदोलन के संदर्भ को उपेक्षित छोड़ दिया गया। इस पर भी चर्चा नहीं हुई कि ब्रिटिश सरकार द्वारा आरोपी बनाए गए लोगों की पैरवी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ही कर रहे थे। अमृत महोत्सव के माध्यम से देश की वर्तमान पीढ़ी ऐसे अनेक तथ्यों से परिचित हो रही है।
यह संयोग था कि नौ, 10 एवं 11 सितंबर की तिथियां अमृत महोत्सव की दृष्टि से महत्वपूर्ण थीं। योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से प्रदेश के विद्यालयों में इसके आयोजन किये गए। योगी आदित्यनाथ स्वयं लखनऊ में आयोजित मुख्य समारोह में सम्मलित हुए। नौ सितंबर को भारतेंदु हरिश्चंद्र, 10 सितंबर को गोविंद बल्लभ पंत की जयंती थी। फिर 11 सितंबर को स्वामी विवेकानन्द द्वारा शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की वर्षगांठ थी। स्वामी विवेकानन्द के शिकागो सम्बोधन से देश के युवावर्ग को जोड़ने का कार्य किया गया। देश के युवा वर्ग व विद्यर्थियों को नैतिकता और ईमानदारी की राह चलाने का प्रयास किया जा रहा है। विवेकानन्द ने केवल व्याख्यान- उपदेश मात्र नहीं दिया। वह नैतिक आदर्शों पर स्वयं अमल भी करते थे। यही कारण था कि लोग उनके पीछे चलने को तैयार हो जाते थे। उनका अनुसरण करते थे।
ग्यारह सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानन्द ने विश्वधर्म सम्मेलन को सम्बोधित किया था। नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक घटना के स्मरण पर समारोह का आयोजन कराया था। इसके पहले उनकी 125 वीं जयंती को मोदी ने प्रेरणा के उत्सव का रूप दिया था। इस अवसर पर स्वामी विवेकानन्द के जीवन के प्रेरणा प्रसंगों का उल्लेख किया गया था। इसमें राष्ट्रीय गौरव एवं एकता, स्वाभिमान, अखण्डता, समरसता, स्वच्छता की भावना एवं विचार शामिल था। शिकागो में स्वामी विवेकानंद को दो अनुभवों से गुजरना पड़ा। पहला सम्मेलन शुरू होने के पहले का था। इसमे स्वामी जी को गुलाम देश का प्रतिनिधि माना गया। उनकी अवहेलना की गई।दूसरा अनुभव उनके सम्बोधन के बाद का था। इसमे स्वामी जी को महान चिंतन का प्रतिनिधि माना गया। लोग उनसे मंत्रमुग्ध थे। उन्होने तो अब तक लेडिज एंड जेंटल मैन सुना था। भारत का सन्यासी सबको भाई-बहन सम्बोधित कर रहा था। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व में भारतीय संस्कृति का मान बढ़या। विवेकानन्द भेदभाव मुक्त भारत चाहते थे। उनके विचारों पर चलकर देश को पुनः विश्वगुरु बनाया जा सकता है।
अमृत महोत्सव के माध्यम से स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक धूमिल और अनछुए पक्ष उजागर हो रहे हैं। अनेक प्रचलित मान्यताएं बदल रही हैं। इस क्रम में 10 सितंबर को गोविंद बल्लभ पंत की जयंती का आयोजन किया गया। उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री ने प्रथम मुख्यमंत्री की जयंती को उत्साह के साथ आयोजित कराने का निर्णय किया था। इसके माध्यम से विशेष रूप में विद्यार्थियों को जोड़ने का निर्णय किया गया था। इसमें यह भाव था कि विद्यार्थी एवं युवा वर्ग स्वतन्त्रता संग्राम और बाद में बेहतर कार्य करने वाले महापुरुषों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सके। गोविंद बल्लभ पंत ऐसे ही महापुरुष थे, जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने संविधान निर्माण से लेकर मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में अपने दायित्वों का कुशलता के साथ निर्वाहन किया। काकोरी ट्रेन एक्शन के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की उन्होंने अन्य वकीलों के साथ पैरवी की थी। वह उस समय नैनीताल से स्वराज पार्टी से लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। साइमन कमीशन के बहिष्कार, नमक सत्याग्रह, असहयोग, भारत छोड़ो आंदोलन में वह सक्रिय रूप में सम्मलित रहे। इस कारण उन्हें जेल में रहना पड़ा। 1937 से 1939 तक वह संयुक्त प्रान्त के पहले मुख्य मन्त्री बने। पुनः1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त के मुख्य मन्त्री रहे।
संयुक्त प्रान्त के पुनर्गठन से उत्तर प्रदेश की स्थापना की गई। गोविंद बल्लभ पंत तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे। 1955 से लेकर 1961 तक वह केंद्र में गृहमंत्री रहे। 1957 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोक भवन,लखनऊ में भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती के अवसर पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि पंत जी ने प्रदेश के विकास को एक नई दिशा देने का कार्य किया था। यह सर्वविदित है कि प्रदेश के राजकीय चिह्न में गंगा यमुना,प्रयागराज का संगम एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का धनुष बाण अंकित है। पं. गोविंद बल्लभ पंत ने ही मुख्यमंत्री के रूप में इस चिह्न की स्वीकृति दी थी। इसी प्रकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती अमृत महोतसव के अंतर्गत मनाई गई। उन्होंने हिंदी जगत में नव जागरण का सूत्रपात किया था। उन्होंने साहित्य की विषय वस्तु को भी नई दिशा प्रदान की, जिसमें आधुनिक एवं सामयिक चेतना थी। उन्होंने साहित्य के माध्यम से लोगों में अपनी संस्कृति और भाषा के प्रति स्वाभिमान की प्रेरणा दी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी कहना है कि शिक्षण संस्थानों के भवन भी राष्ट्रीय चेतना को प्रकट करने वाले होने चाहिए। अपनी महान विरासत एवं प्रेरणा लेकर चलने वाला समाज स्वाभिमानी एवं शक्तिशाली बनता है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति घोषित की थी, जिसके मूल में मातृ भाषा के माध्यम से प्रारम्भिक शिक्षा प्रदान करना है। इससे बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति तीव्र होगी। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने एक शताब्दी पूर्व ही इस बात का उल्लेख कर दिया था कि मातृ भाषा ही हमारी उन्नति का मूल है। उन्होंने लिखा था कि निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। इस भाव को आज हर व्यक्ति महसूस कर रहा है। प्रदेश सरकार आजादी के अमृत महोत्सव एवं चौरी चौरा शताब्दी समारोह की श्रृंखला के क्रम में देश की आजादी के परवानों को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रही है। यह वर्ष आजादी के अमृत महोत्सव का वर्ष है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रदेश सरकार द्वारा इस कार्यक्रम में नई नई मणियों को जोड़ा जा रहा है। जो पक्ष अछूता रह जाता था,उसको सम्मानित किया जा रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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