नई दिल्ली. नवरात्रि (Navratri) वर्ष में चार बार होती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन(Ashadh and Ashwin). नवरात्रि से वातावरण के तमस का अंत होता है और सात्विकता की शुरुआत होती है. मन में उल्लास, उमंग और उत्साह की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति, नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है, इसलिए नवरात्रि में देवी की उपासना ही की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी के शैलपुत्री स्वरूप (Shailputri Swaroop) की उपासना का विधान है. इनकी पूजा से देवी की कृपा तो मिलती ही है, साथ ही सूर्य भी मजबूत होता है. इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है.
नवरात्रि में कलश स्थापना के नियम
नवरात्रि में जीवन के समस्त भागों और समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है. नवरात्रि के दौरान हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए. नियमित खान-पान में जौ और जल का प्रयोग जरूर करें. इन दिनों तेल, मसाला और अनाज कम से कम खाना चाहिए. कलश की स्थापना (setting up the vase) करते समय जल में सिक्का डालें. कलश पर नारियल रखें और कलश पर मिट्टी लगाकर जौ बोएं. कलश के निकट अखंड दीपक जरूर प्रज्ज्वलित करें .
कलश स्थापना का मुहूर्त क्या है?
कलश की स्थापना चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है. इस बार प्रतिपदा तिथि 02 अप्रैल को है, लेकिन प्रतिपदा प्रातः 11 बजकर 21 मिनट तक ही है. इसलिए कलश की स्थापना सुबह 11.21 के पहले ही की जाएगी. सबसे अच्छा समय सुबह 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजे तक का होगा.
मां शैलपुत्री की उपासना कैसे करें?
पूजा (Prayer) के समय लाल वस्त्र धारण करें. घी का एकमुखी दीपक माता के समक्ष जलाएं. देवी को लाल फूल और लाल फल अर्पित करें. इसके बाद देवी के मंत्र “ॐ दुं दुर्गाय नमः “का जाप करें या चाहें तो “दुर्गा सप्तशती” का नियमपूर्वक पाठ करें. नवरात्रि में रात्रि की पूजा ज्यादा फलदायी होती है.
माता शैलपुत्री की पूजा विधि:
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के बाद देवी के इस स्वरूप की पूजा करें. सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थल पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर माता की प्रतिमा स्थापित करें. माँ को धुप दीप दिखाएं और उन्हें लाल रंग के फूल अर्पित करें. देवी माँ को फल और मिठाई का भोग लगाएं. अंत में माता शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें.
माता शैलपुत्री के मंत्र:
-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
-स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
पौराणिक कथा:
पौराणिक कथा अनुसार एक बार राजा दक्ष प्रजापति के आगमन पर उनके स्वागत के लिए वहां मौजूद सभी लोग खड़े हुए, लेकिन भगवान शंकर अपने स्थान पर बैठे रहे. राजा दक्ष को भगवान शिव की यह बात अच्छी नहीं लगी. कुछ समय बाद दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं निमंत्रण दिया लेकिन अपनी पुत्री के पति भगवान शिव को वहां आमंत्रित नहीं किया.
सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा ज़ाहिर की. सती के आग्रह पर भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी. जब सती यज्ञ में पहुंचीं तो केवल उनकी मां से ही स्नेह प्राप्त हुआ. वहां उनकी बहनों की बातें उपहास के भाव से भरी थी. सती के पिता दक्ष ने भरे यज्ञ में भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द कहे.
सती ने जब अपने पिता के मुख से अपने पति यानी भगवान शिव के लिए कठोर बातें सुनी, तो वो अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई और यज्ञ वेदी मे कूदकर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. सती का अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ और वे शैलपुत्री कहलाईं. शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शिव से हुआ था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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