धार: धार में बाबुल फिल्म की स्टोरी दोहरायी गयी. यहां एक सास-ससुर ने माता-पिता बनकर अपनी बहू का कन्यादान किया. बेटे की कोरोना में मौत हो गयी थी. उसके जाने के बाद घर में विधवा बहू और उसकी बेटी रह गए थे. अपना दर्द भूलकर सास-ससुर ने बहू के अकेलेपन और दर्द को महसूस किया. जिंदगी की गाड़ी अकेले नहीं चल सकती इसलिए उसका नया हम सफर ढूंढा और बहू के हाथ पीले करके आशीर्वाद दिया-जा तुझको सुखी संसार मिले.
ये दुख-सुख की ये कहानी धार के तिवारी परिवार की है. यहां रहने वाले युग प्रकाश तिवारी ने समाज के लिए ऐसी पहल की जो युगों तक मिसाल रहेगी. उन्होंने अपनी विधवा बहू का फिर से घर बसा दिया. माता पिता बनकर उसका कन्यादान किया और उसे रहने के लिए बंगला गिफ्ट किया.
कोरोना ने छीनीं खुशियां
धार के प्रकाश नगर में रहने वाले युग प्रकाश तिवारी और इनकी पत्नी रागिनी तिवारी का जीवन खुशियों से भरा था. घर में दो बेटे बहू पौती सब थे. लेकिन कोरोना काल में इनकी खुशियों में ग्रहण लग गया. इनके छोटे बेटे प्रियंक तिवारी की मौत हो गयी. उसके बाद घर में रह गयी जवान विधवा बहू ऋचा और नन्ही सी पोती. हंसते खेलते परिवार की खुशियां खत्म हो गयीं.
सास-ससुर ने किया कन्यादान
प्रियंक सॉप्टवेयर इंजीनियर था जो भोपाल के पास मंडी दीप मे अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा था. उसकी उम्र महज 34 वर्ष थी. लेकिन कोरोना ने पूरे परिवार की खुशियां छीन लीं. तिवारी परिवार ने जैसे तैसे अपने आप को संभाला. अब सामने था बहू ऋचा तिवारी और पोती की आगे की जिंदगी की चिंता. ससुर युग प्रकाश तिवारी और सास ने बहू को बेटी की तरह विदा करने का मन बनाया. उसके लिए रिश्ता ढूंढा और नागपुर के वरुण मिश्रा जीवनसाथी के तौर पर मिल गया. तिवारी परिवार ने अक्षय तृतीया पर ऋचा का विवाह और कन्यादान कर उसे विदा किया. प्रियंक ने घर खरीदा था. तिवारी परिवार ने वो घर भी ऋचा को गिफ्ट में दे दिया.
आसान न था फैसला
युग प्रकाश तिवारी और सास रागिनी के लिए बहू की शादी करने का फैसला आसान न था. पहले बेटे को खोया और फिर बहू को भी अपने से जुदा करना आसान न था. सास कहती हैं ऋचा बहुत अच्छी है. हमने उसे बेटी माना है और बेटी मानकर ही उसकी और पौती की आगे की जिंदगी को देखते हुए उसकी शादी का निर्णय लिया. उन्होंने समाज के अन्य लोगों से भी अपील की कि वो भी अपनी बहुओं को बेटी जैसा प्यार दें. दहेज के लिए प्रताड़ित न करें.
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