वो कोमल होती है… नाजुक होती है… लेकिन इतनी शक्तिशाली होती है कि अपनी रचना से ब्रह्मांड रचती है… उसकी करुणा, उसकी ममता, उसका समर्पण, उसका त्याग ईश्वर को भी इतना वंदनीय होता है कि परमात्मा के नाम में भी मां का दो बार जिक्र होता है और मौत के बाद भी अमर रहने वाली आत्मा में भी मां जीवित रहती है… मां कभी मरती नहीं है… वो आत्मा हो या परमात्मा दोनों में ही जीवित रहती है… वो होने का अहसास भी कराती है और जाने पर पल-पल याद आती है… वो ऐसी शक्ति होती है, जिसके चरणों की धूल माथे पर लगाएं तो घर ही मंदिर हो जाए… ऐसी शक्ति हर घर में होती है… फिर पता नहीं क्यों मंदिरो ंमें मन्नत के लिए कतार लगती है… ईश्वर से मांगते हैं… अपनी मां के सामने आंचल क्यों नहीं फैलाते हैं… जगत है तो जननी भी ईश्वर ने दी है… इसकी महिमा जो समझ पाएगा उसे ईश्वर घर में ही मिल जाएगा…
कहने को तो उसे घर की मालकिन कहा जाता है, लेकिन घर के बर्तनों पर भी बच्चे का नाम लिखा जाता है…
संसार में उसकी रचना ममता और दुलार से मानव जाति को संवेदना सिखाने… हर कष्ट से बचाने… संस्कार और संस्कृति की रचना का दायित्व निभाने के लिए की जाती है… लेकिन हम नादान उसे हर उपेक्षा का बोझ उठाने के लिए मजबूर करते हैं…घर की जिम्मेदारियों का बोझ उसके सिर पर रखते हैं… खुशियां अपने हिस्से धरते हैं और अपनी खुशी में खुश रहते हैं… वो निवाला तब तक नहीं खाती है, जब तक बच्चे ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार का पेट न भर जाता है… पति की कमाई की पाई-पाई परिवार पर लुटाती है… भविष्य के लिए भी बचाती है… सामाजिक परंपराएं भी निभाती है… हर भले-बुरे के लिए वो ही जिम्मेदार मानी जाती है… उसके हिस्से में केवल आंसू आते हैं… दु:ख में वो ही आंसू बहाती है, लेकिन खुशी में भी उसकी आंखें नम हो जाती हैं… वो मां कहलाती है… उसके त्याग को बयां करने के लिए शब्दकोष खाली रह जाता है… कहने को तो उसे घर की मालकिन कहा जाता है, लेकिन घर के बर्तनों पर भी बच्चे का नाम लिखा जाता है… वो कोई चाहत नहीं रखती… फिर भी परिवार के स्वार्थ के चलते आहत होती है… वो न नाम के लिए जीती है न किसी प्रमाण के कारण समर्पित रहती है… मां की महिमा के लिए केवल भावनाएं ही काफी रहती हैं… हमारा समाज भी उसे कहां सम्मान दे पाता है… यह संसार जिस मां का अंश कहा जाता है, उसका अपना कोई वंश नहीं होता… बेटा भी अपने नाम के आगे पिता का नाम लिखता है… मां का वजूद केवल बच्चों की मुस्कानभर की चाहत रखता है… ऐसी मां के चरणों की धूल यदि हम माथे पर लगाएं… उसके पैरों को धोकर आदर जताएं तो सच कहता हूं किसी मंदिर जाने की जरूरत ही न रह जाए… घर ही मंदिर बन जाए… परमात्मा तो क्या सारे संसार की देवियों की शक्ति उस घर-परिवार की ढाल बन जाए… ऐसी शक्तियां हर घर में होती हैं, फिर भी मंदिरों में कतार लगती है… ऐसी शक्तियां हर दिन दुआएं देती हैं, लेकिन मन्नतों के लिए हमारी निगाह चौखट ढूंढती रहती है…
मां का अंश तो होता है, पर उसका अपना कोई वंश नहीं होता है… बेटा भी अपने नाम के आगे पिता का नाम ही लिखता है…मां का वजूद तो केवल बच्चों की मुस्कान की चाहत रखता है…
मां के आशीषों की ढाल तो वक्त के सितम को भी परास्त कर देती है… फिर इस देश में मां क्यों उपेक्षित रहती है… जिसके जीवन में मां की पहचान… मां का आदर… मां का सम्मान होता है, उसे वक्त को समझने… वक्त पर संभलने… वक्त से जूझते… वक्त को सहने के साथ वक्त को जीने की भी शक्ति मिल जाती है… ऐसे ही वक्त से पहले… बहुत पहले पिता अपनी जिम्मेदारियां मेरी मां को सौंपकर चले गए… मैं मात्र 19 वर्ष का था… अवयस्क अवस्था में ही पिता के विश्वविद्यालय से कर्म और कर्त्तव्य की सीख मिल चुकी थी, पर साहस मां ने दिया… पति के बिछोह से अपने जीवन पर हुए आघात को भूलकर वो हमारी परवरिश और जिम्मेदारी उठाने के लिए चट्टान की तरह खड़ी हो गई… हौसला बढ़ाया… पिता के संघर्ष का भान कराया… उनकी शिक्षा पर चलने का रास्ता दिखाया और एक ही मंत्र कान में फूंककर साहस बढ़ाया, जो कोई और गुरु नहीं समझा पाया… मां ने कहा- तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए संसार है… जिस व्यक्ति के पास खोने को कुछ नहीं होता वो सबसे शक्तिशाली होता है… तुम्हें पाने के लिए नहीं, बल्कि इस लायक बनना है कि कुछ खोने लायक अर्जित कर सको… मां की उस शिक्षा में हर कड़े फैसले आसानी से लेने की क्षमता दी… वो हर पल साथ रही…मुझे याद है जब मैं रात को 1 और 2 बजे भी काम से लौटकर आता था तो वो जागती रहती थी… मेरे आते ही सीधे किचन में जाती और खाने की थाली लेकर पास बैठ जाती…
मां की इस आदत ने मुझे कभी बाहर खाने की हिमाकत नहीं करने दी और घर जल्दी आने की कोशिश केवल इस बात को लेकर होती थी कि मां जाग रही होगी… मैं अपने महीनेभर की कमाई लाकर उसके हाथों पर रखता था तो केवल घर खर्च की मामूली रकम हाथ में रखकर सारा पैसा मुझे वापस दे देती थी… कहती थी व्यापार के संसाधनों के लिए बचाओ… खुद को मशीन मत बनाओ… बिना पढ़ी-लिखी मां की हर बात में पूरे संसार का ज्ञान होता था… शादी के लिए जब लड़की ढूंढने लगे तो कहती थी अपने लायक पत्नी मत ढूंढो…यह सोचो कि तुम्हें उसके लायक बनना है… ऐसा लगता था मां नहीं, परमात्मा की वाणी घर में गूंज रही है… उसी वाणी की बदौलत कारोबार ही नहीं, बल्कि संस्कार मिले… सोच मिली… सम्मान मिला… समृद्धि मिली… फिर वो यकायक चली गई बिना कुछ कहे… संसार की यह वेदना हर उस पुत्र के लिए भारी पड़ती है, जिसके जाने से एक शक्ति ब्रह्मांड से लौट जाए… जिस विश्वास के सहारे जीवन बिता रहे हो वो जिम्मेदारी सौंपकर विदा हो जाए… जिन कदमों की आहट परिवार की धड़कन बनी हुई हो वो थम जाए… मां की ममता के बिछोह का वो पल पूरे जीवन में मां की ताकत का भान कराता रहता है… वो सर्वव्यापी थी… वो सर्वव्यापी है… वो कल भी थी… वो आज भी है… वो दिखती नहीं है, बल्कि हर शब्द में, हर सबक में गूंजती है… उसे जिंदा रखना है तो उसके बताए रास्तों पर चलना है… जिन खुशनसीबों के जीवन में मां करीब है उन्हें उनका आदर, उनका सम्मान ही नहीं करना है, बल्कि देवीतुल्य समझना है… जो मां के चरणों की धूल माथे पर लगाएगा… उसे परमात्मा की शक्ति का आभास हो जाएगा… प्यार, दुलार, संस्कार, शिक्षा, त्याग, समर्पण की देवी मेरी अपनी भोलीभाली मां को श्रद्धासुमन…
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