भारत में जिस तेजी से छाेटे – छाेटे चर्च खड़े किए जा रहे हैं, वह कुछ- कुछ चीनी मॉडल जैसा ही है। चीन में ईसाई धर्म प्रचार करने पर पाबंदी है, वहां बड़े चर्च सरकारी नियंत्रण में काम करते है। ऐसे चर्च धर्म परिवर्तन पर काेई जोर नहीं देते। अपना संख्या बल बढ़ाने के मकसद से मिशनरी सरकार से छिप कर घर कलीसियाएं चलाते है।
धर्मांतरण को लेकर जारी सियासत के बीच प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के हालिया सर्वे में सामने आया है कि भारत में सर्वाधिक धर्मांतरण हिंदुओं का हो रहा है। वहीं, क्रिश्चियन समुदाय को इसका सर्वाधिक लाभ मिला है। प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक भारत में ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले तीन चौथाई (74%) हिंदू अकेले दक्षिण भारतीय राज्यों से हैं। यही वजह है कि दक्षिण भारत के राज्यों में क्रिश्चियन आबादी में थोड़ा सा इजाफा भी हुआ है।
सर्वे के मुताबिक धर्म परिवर्तन करने वालों में करीब आधे शेड्यूल कास्ट (SC) से ताल्लुक रखते हैं। जबकि 14% एसटी, 26% ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। यह एक हकीकत है कि वर्तमान समय में ईसाई मिशनरियों का पूरा जाेर (हिंदी भाषी) उतर भारत के राज्यों पर है। ईसाइयों की कुल जनसंख्या का 65 प्रतिशत से ज्यादा दक्षिण भारत में है। पिछले पांच दशकों से चर्च ने अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगी संगठनों की मदद से उत्तर भारत में अपने काम काे विस्तार दिया है। इस क्षेत्र में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्च ने अपने पादरियों, ननों की संख्या में बहुत वृद्धि की है। वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र में लाखाें स्वतंत्र धर्म प्रचारक योजनाबद्ध तरीके से तैयार किए गए हैं।
इस कारण तेजी से छाेटे – छाेटे चर्च भी खड़े हो रहे हैं, ऐसे छाेटे- छाेटे स्वतंत्र चर्चो के पीछे एक पूरा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क काम करता है, डेढ़ दो साल पहले उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के अधिकतर चर्च तनाव के चलते बंद हाे गए थे या करवा दिए गए, इन बंद कराए गए चर्चों को दोबारा खुलवाने के लिए अमेरिकी दूतावास आगे आया और उसने बंद पड़े सभी चर्च फिर से खुलवा दिए। हिंदी भाषी राज्यों में स्वतंत्र चर्च कुकुरमुत्ते की तरह उगते जा रहे हैं।
इनमें प्रचार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ईसाई संगठन बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों विशेषकर युवाओं काे भेजते हैं जिसका स्थानीय जन मानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विदेश से आने वाले अनेक भारत काे ही अपनी कर्मभूमि मानकर यही रह जाते हैं। ओडिशा के ग्राहम स्टेंस और ग्लैडिस स्टेंस भी ऐसे ही मिशनरी थे। श्रीमती ग्लैडिस स्टेंस अपने अनुभव में लिखती हैं कि 1981 में ऑपरेशन मोबिलाइजेशन के तहत जब वह पंजाब, बिहार, ओडिशा की गाँव – गाँव की यात्रा कर रही थी, तभी ओडिशा में उनकी मुलाकात ग्राहम स्टेंस से हुई थी, हालांकि ऑस्ट्रेलिया में उन दोनों के घर तीस कि.मी. की दूरी पर ही थे, पर वह वहां कभी नहीं मिले थे।
धर्मांतरण का सबसे ज्यादा शिकार आज पंजाब हाे रहा है। जितनी तेजी के साथ पंजाब में सिखों का धर्मांतरण किया जा रहा है, उसे न रोका गया तो सिखों को ही नहीं बल्कि पंजाब को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। धर्मांतरण का खेल बड़े योजनाबद्ध तरीके से खेला जा रहा है। पंजाब में सीमावर्ती क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि दोआबा और मालवा में सिखों का ईसाईकरण हो रहा है। सिखों के साथ-साथ दलित व पिछड़े वर्ग का भी धर्मांतरण हो रहा है।
भारत में जिस तेजी से छाेटे – छाेटे चर्च खड़े किए जा रहे हैं, वह कुछ- कुछ चीनी मॉडल जैसा ही है। चीन में ईसाई धर्म प्रचार करने पर पाबंदी है, वहां बड़े चर्च सरकारी नियंत्रण में काम करते है। ऐसे चर्च धर्म परिवर्तन पर काेई जाेर नहीं देते। अपना संख्या बल बढ़ाने के मकसद से मिशनरी सरकार से छिप कर घर कलीसियाएं चलाते है। परंतु भारत में ऐसी काेई बात नहीं हैं, यहां मेन-लाइन के लाखों चर्च है। जिन्हें धर्म प्रचार करने, अंतरराष्ट्रीय मिशनरियों से जुड़े रहने व सहायता पाने और देश में अपने संस्थान चलाने की पूरी स्वतंत्रता है। यहां तक कि वेटिकन भारत के कैथोलिक चर्च पर अपना पूरा नियंत्रण रखता है, पाेप ही कैथोलिक बिशपाें काे नियुक्त करता है, इसके बावजूद अगर स्वतंत्र चर्च कुकुरमुत्ते की तरह उगते जा रहे हैं, तो इस पर अवश्य ही विचार करने की जरूरत है। क्योंकि यह भारतीय ईसाइयों के हित में भी नहीं हैं।
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