इंदौर। सुरला के मुंहकी तरह निगम (corporation) का ड्रैनेज (drainage) घोटाला बढ़ता जा रहा है… अग्रिबाण (Agniban) द्वारा जो तथ्यों को उजागर किया गया उसकी अब लगातार पुष्टि भी हो रही है। अभी तक 48 करोड़ (crores) रुपए का घोटाला तो सामने आया, वहीं 30 करोड़ रुपए से अधिक के बोगस बिलों (fake bills) की जानकारी सामने आई है, जिसके चलते अब 80 करोड़ से अधिक का यह महाघोटाला हो गया। वहीं ड्रैनेज के साथ-साथ निगम के अन्य विभागों से भी इसके तार जुड़े हैं। मजे की बात यह है कि इस पूरे घोटाले को इस तरह से अंजाम दिया गया कि किसी भी विभाग (departments ) में फाइल पहुंची ही नहीं और बाहर बोगस फाइलें तैयार कर सीधे ऑडिट विभाग में भेज दी और वहां से भुगतान की मंजूरी करवाकर लेखा शाखा को भिजवा दिया, जहां से करोड़ों का भुगतान भी 5 ठगोरी फर्मों ने हासिल कर लिया।
पिछले दिनों नगर निगम में 28 करोड़ के ड्रैनेज घोटाले का खुलासा हुआ। मगर जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी उसका दायरा बढ़ता जा रहा है। अग्रिबाण ने 3 दिन पहले ही यह स्पष्ट लिखा था कि यह महाघोटाला मात्र 28 करोड़ का नहीं है, बल्कि बढक़र 150 करोड़ या उससे भी अधिक तक पहुंच सकता है और कल तक नगर निगम ने जो अपनी अंदरुनी जांच की उसके मुताबिक ही 80 करोड़ पार के आंकड़े तो सामने आ गए हैं। एमजी रोड थाने पर एफआईआर दर्ज करवाने के बाद पुलिस भी इस महाघोटाले की जांच-पड़ताल में जुटी है और दो दिन पहले उसने 17 करोड़ रुपए के भुगतान से संबंधित एक दर्जन से अधिक फाइलों की जब्ती भी निगम के जरिए करवाई। ये सभी फाइलें असली हैं। जबकि 28 करोड़ के घोटालों की फाइलें चोरी हो चुकी है। उसकी भी एफआईआर निगम दर्ज करवा चुका है और फोटो कॉपी के आधार पर पुलिस जांच कर रही है। दूसरी तरफ 55 और नई फाइलें इन्हीं पांच फर्मों से संबंधित सामने आई है, जिसकी पुष्टि निगमायुक्त द्वारा गठित किए गए जांच दल प्रमुख और अपर आयुक्त सिद्धार्थ जैन ने की। जैन का कहना है कि किसी भी विभाग में फाइलों का मूवमेंट हुआ ही नहीं और सारी बोगस फाइलें निगम के बाहर तैयार की गई और उसे सीधे ऑडिट विभाग में भेज दिया गया। हमारे लिए यह चौंकाने वाली बात है कि इतना भारी-भरकम भुगतान ऑडिट को किया जाता है। मगर वहां से ये बोगस फाइलें पेमेंट फॉर ऑर्डर के लिए कैसे मंजूर हो गई? दूसरी तरफ ट्रैफिक, गार्डन, जनकार्य व अन्य विभागों के भी बोगस बिल सामने आए, जिसमें लगभग 30 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान इन फर्मों को हुआ है।
फर्जी हस्ताक्षरों के साथ बोगस लॉगइन-पासवर्ड का भी इस्तेमाल
अभी तो ई-नगर पालिका के चलते सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होती है। मगर कुछ वर्ष पूर्व लेगेसी पर काम होता था। अभी सभी अधिकारियों और कर्मचारियों ने इन फाइलों पर अपने फर्जी हस्ताक्षर बताए हैं। हालांकि पुलिस द्वारा नमूने लेकर हस्ताक्षरों की जांच तो की जा रही है, मगर एक और बड़ा मामला लॉगइन-पासवर्ड का भी है, क्योंकि ये सारे भुगतान 2021-22 और उसके बाद हुए हैं। निगम अधिकारियों का कहना है कि चूंकि ओटीपी नहीं आता है इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि इन लॉगइन-पासवर्ड का इस्तेमाल कैसे और किसने किया। हालांकि निगम का आईटी विभाग इसकी जांच में जुटा है, क्योंकि बिना अंदरुनी व्यक्ति के लॉगइन-पासवर्ड का इस्तेमाल नहीं हो सकता।
भगोड़े ठेकेदारों की अचल सम्पत्तियों की सूची बनी… होगी कुर्की भी
इस महाघोटाले में लिप्त पांचों फर्जी कम्पनियों न्यू कंस्ट्रक्शन, ग्रीन और किंग कंस्ट्रक्शन के साथ क्षीतिज और जाह्नवी इंटरप्राइजेस के कर्ताधर्ताओं से जुड़ी अचल सम्पत्तियों की जानकारी भी पुलिस ने निगम से मांगी है। अग्रिबाण ने ही राहुल और रेणु वडेरा के बेशकीमती-आलीशान बंगले का खुलासा किया था, जो कि पुलिसिया जांच में बड़ा मददगार साबित हुआ। वहीं अपोलो डीबी सिटी में ही इनका एक फ्लेट भी है। वहीं अन्य फर्मों के मोहम्मद सिद्दीकी व अन्य की मदीना नगर में सम्पत्तियां मिली हैं। अब कोर्ट आदेश पर पुलिस इन सम्पत्तियों की कुर्की भी करवाएगी। हालांकि इन भगोड़े ठेकेदारों की और भी सम्पत्तियां हैं, जो उन्होंने अपने रिश्तेदारों या अन्य के नाम पर खरीद रखी है।
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