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बगलामुखी मंदिर में एक लाख से अधिक लोग पहुँचे दर्शन करने

October 11, 2021

  • माँ की एक झलक पाने को भक्त दिखे आतुर-घंटों लाईन में खड़े रहने के बाद हुए दर्शन

नलखेड़ा। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन रविवार को नगर में स्थित विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ माँ बगलामुखी के मंदिर पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ा। इस दिन लगभग एक लाख से अधिक भक्त माँ के दरबार में पहुॅचे। माता रानी के दर्शन के लिए भक्तों को घंटो कतार में लगना पड़ा। मंदिर के बाहर लगे बेरिकेट्स सुबह से देर शाम तक भक्तों से भरे रहे। रविवार को यज्ञशाला में बड़ी संख्या में हवन अनुष्ठान भी सम्पन्न हुए। शारदीय नवरात्रि पर्व के चौथे दिन रविवार अवकाश पर विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ माँ बगलामुखी मंदिर पर प्रात: मंगला आरती के बाद से ही श्रद्धा का सैलाब उमड़ता दिखाई दिया।



प्रात:काल से ही भक्तों की लंबी लंबी कतार लगना प्रारम्भ हो गई थी। प्रात: 10 बजे बाद से ही मंदिर के बाहर भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लगे बेरिकेट्स पूरे भर गए थे। ये बेरिकेट्स देर रात तक भरे रहे। प्रात: 11 बजे बाद से भक्तों को माता रानी के दर्शन के लिए घंटो कतार में लगना पड़ा। लेकिन मन मे अगाध श्रद्धा लिए भक्त माता के जयकारों के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे। अनुमान लगाया जा रहा है कि रविवार को देश के विभिन्न स्थानों के एक लाख से अधिक भक्तों द्वारा माता रानी के आलौकिक दर्शनों का लाभ प्राप्त किया गया। इस दौरान पांच सौ से अधिक भक्तों द्वारा परिसर में स्थित यज्ञ शाला में हवन अनुष्ठान भी किये गए। दिनभर सम्पूर्ण मंदिर परिसर माता रानी के जयकारों व हवन के मंत्रों से गूंजता रहा साथ ही हवन की आहुति से उठने वाली सुंगध से महकता रहा।

माकड़ोन के करेडी गाँव में पांडव कालीन चमत्कारी कनकावती माता का मंदिर

माकड़ोन (मनीष शर्मा)। तहसील के अंतिम छोर पर बसे गाँव करेड़ी में पांडव कालीन माता कनकावती का चमत्कारिक और प्राचीन मंदिर स्थित है। मंदिर के साथ कईं किंवदंतिया ओर पोराणीक प्रसंग जुड़े हुए हैं। कभी निर्जन रहे इस मंदिर की छटा अब देखते ही बनती है। मान्यताओं के अनुसार करेड़ी की मां कनकावती का उल्लेख धर्म शास्त्रों में मिलता है। पांडव भाईयों के अज्ञातवास व्यतीत करने के दौरान हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन के घनिष्ठ मित्र कर्ण ने कुन्ती पुत्रों के अज्ञातवास को भंग करने के उद्देश्य से प्राचीन नगरी उज्जैयनी से गुजरते हुए करेडी नामक स्थान पर पहुंच कर देवी की आराधना की गई थी और लगभग सवा महीने तक माता की उपासना ओर तप करते हुए हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन की आज्ञा का पालन किया था, कुन्ती पुत्रों की टोह लेते हुए अंगराज कर्ण उज्जैन से करेडी पहुंचे थे। मां कनकावती की महिमा अपार है। किंवदंती के मुताबिक उज्जैनी के सम्राट विक्रमादित्य भी मां कनकावती के परम भक्त थे।


उनके समकालीन राजा महेन्द्र जिन्हें मध्य युग का दानवीर कहा जाता था मां कनकावती के उपासक थे। मंदिर की पाषाण प्रतिमा अलौकिक होकर माता के हाथ में खप्पर है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। मंदिर के भक्त मंडल से जुड़े पं भगवान शर्मा के मुताबिक कनकावती मंदिर सदैव श्रृद्धालुओ की आस्था का केन्द्र रहा हैं। पांडव काल में भगवान सूर्य के पुत्र हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन के बाल सखा अंगराज कर्ण से लेकर महान सम्राट विक्रमादित्य और मध्य युग के दानवीर राजा महेन्द्र मां कनकावती के परम उपासक और भक्त थे। वर्ष भर यहाँ दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है दूर दूर से लोग यहाँ पहुंचते हैं।

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30 छात्र छात्राएँ सायकल से गए देवास

Mon Oct 11 , 2021
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