इंदौर। कल नगर निगम ने जहां अपने 90 लाख से अधिक दस्तावेजों को डिजीटल करने की प्रक्रिया शुरू की, वहीं इंदौर सहित 79 रियासतों से जुड़े 6 करोड़ से अधिक बेशकीमती और दुर्लभ दस्तावेजों को भी पुरातत्व विभाग ने डिजीटल किया है, जिसमें ऐतिहासिक इमारतों से जुड़े अभिन्यास, राजस्व, पुरातत्व के साथ-साथ सैन्य संधियों, राजनीतिक पत्र व्यवहार से लेकर कई गोपनीय दस्तावेज भी शामिल हैं। 1 नवम्बर 1956 को प्रदेश की मौजूदा सभी रियासतें शासन में विलीन कर दी गई थी और उसके पूर्व 1950 में मध्यप्रदेश का गठन किया गया था, जो कि पहले मध्य भारत के नाम से जाना जाता था और मध्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी जहां इंदौर थी, तो शीतकालीन राजधानी ग्वालियर। इतना ही नहीं, इंदौर के भी 117 साल पुराने होल्कर के जीर्ण-शीर्ण नक्शे और दस्तावेज भी प्रशासन ने संरक्षित कर लिए हैं।
अभी नगर निगम द्वारा अपने दस्तावेजों को सुरक्षित किया जा रहा है, जिसकी शुरुआत कल से की गई। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि 90 लाख से अधिक दस्तावेजों को स्कैन कर सुरक्षित रखा जाएगा, क्योंकि ये दस्तावेज ही निगम की असल सम्पत्ति हैं। सूचना एवं प्रौद्योगिकी प्रभारी राजेश उदावत के मुताबिक इंदौर निगम को डिजीटल बनाने की शुरुआत की गई है और 24 से अधिक आधारभूत सुविधाएं भी निगम के वेब पोर्टल के माध्यम से नागरिकों को उपलब्ध कराई जाएगी। दूसरी तरफ पुरातत्व विभाग ने भी एक महत्वपूर्ण कार्य किया है और उसने 6 करोड़ से अधिक अत्यंत ही दुर्लभ और बेशकीमती दस्तावेजों को डिजीटल कर संरक्षित कर लिया है।
प्रदेश की सभी 79 रियासतों के ये दस्तावेज हैं, जो कि 1798 से लेकर 1956 तक के 158 सालों का रिकॉर्ड है। ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, रीवा, मध्य भारत राज्य और नरसिंहगढ़ सहित ये रियासतें पहले प्रदेश का हिस्सा थी, जिनके दस्तावेज हिन्दी, मोड़ीलिपी, मराठी, अंग्रेजी, ऊर्दू सहित फारसी लिपी में तैयार किए गए हैं। प्रदेश के पुरातत्व विभाग के पास लगभग 6.90 करोड़ इस तरह के ऐतिहासिक रिकॉर्ड मौजूद हैं, जिन्हें अब डिजीटल कर लिया है। इसमें महत्वपूर्ण नक्शे, राजस्व रिकॉर्ड, रियासतों से संबंधित आदेश, उनकी पॉलिसी, संधियों से लेकर सैन्य समझौते और राजनीतिक पत्राचार सहित कई गोपनीय संदर्भ सामग्री भी है। उल्लेखनीय है कि 1956 में ही प्रदेश की सभी रियासतों का विलय हुआ था। उस समय 79 रियासतें अस्तित्व में थीं। हालांकि 28 मई 1948 को मध्य भारत राज्य का जो गठन हुआ था उसमें 25 रियासतों को शामिल किया गया था और इसकी दो राजधानियां ग्वालियर और इंदौर बनाई गई थी। वहीं इंदौर के कलेक्टर कार्यालय पर भी 117 साल पुराने महाराजा होल्कर के बेशकीमती रिकॉर्डों को सुरक्षित किया गया है।
इंदौर जिले के 676 गांवों की 1584 नक्शा शीटें भी बनवाई
इंदौर जिले के सभी 676 गांवों के राजस्व रिकॉर्डों को भी डिजीटलाइजेशन किया जा चुका है, जिसमें 1584 जीर्ण-शीर्ण हो चुकी नक्शा शीटें भी लेमिनेट करवाने के साथ स्कैन कर सुरक्षित रिकॉर्ड रूम में रखवा दी गई है। वहीं खजराना सहित कुछ जागिरी वाले गांव ऐसे हैं जहां का रिकॉर्ड त्रुटिपूर्ण है उन्हें भी काफी हद तक व्यवस्थित किया गया। तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने इन राजस्व रिकॉर्डों को सुरक्षित करवाया और इंदौर की लैंड रिकॉर्ड शाखा में पदस्थ रहे यानी अनुलेखक यानी ट्रैसर अशफाक खान सहित आधा दर्जन कर्मचारियों को 25-25 हजार रुपए का पुरस्कार और प्रशस्ति-पत्र भी इस कार्य के लिए सौंपे गए। हालांकि 1925 के बाद इंदौर में मिसल बंदोबस्त नहीं हुआ। सिर्फ सांवेर के 30 गांवों का भी मिसल बंदोबस्त हुआ था। दरअसल, अंग्रेजों ने 1925 से लेकर 30 तक पूरे देश में जमीनों के एक-एक इंच के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण कराया था, जिसे राजस्व में भाषा में मिसल बंदोबस्त कहा जाता है और इसी रिकॉर्ड के आधार पर केन्द्र और राज्य सरकारें जमीनों का प्रबंधन करती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ अलग होने के चलते कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड गायब भी हो गए और उसके बाद एक-दो बार मिसल बंदोबस्त कराने के प्रयास भी किए गए, मगर जमीनी जादूगरों ने उसे बंद करवा दिया।
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