नई दिल्ली। जनजातीय कार्य मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संयुक्त रूप से वन संसाधनों के प्रबंधन में जनजातीय समुदायों को और अधिक अधिकार देने का निर्णय लिया है। इस आशय के एक संयुक्त समझौते पर मंगलवार को हस्ताक्षर किए गए।
इस मौके पर वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि पिछले सात सालों में 5 लाख से ज्यादा पट्टे वनवासियों और आदिवासियों को दिए गए। जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट पहले 3800 करोड़ हुआ करता था, जो बढ़कर 7200 करोड़ हो गया है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार आदिवासियों के जीवन में सुधार लाने व उन्हें सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में यह समझौता ऐतिहासिक कदम है।
उन्होंने बताया कि पहले वनों के सिर्फ दस वन उत्पादों को न्यूनतम मूल्य समर्थन का लाभ मिलता है लेकिन अब इसकी संख्या 86 कर दी गई है। इस कार्यक्रम में पर्यावरण राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो और जनजातीय कार्य राज्यमंत्री रेणुका सिंह सरुता भी मौजूद थीं।
समझौते से आदिवासियों के अधिकार होंगे सुनिश्चित
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (एफआरए) जंगल में रहने वाले उन अनुसूचित जनजातियों (एफडीएसटी) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) के वन भूमि में वन अधिकारों और पेशे को मान्यता देता है। इनके अधिकारों को उनमें निहित करता है जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं, लेकिन जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका है। यह अधिनियम वन भूमि के संबंध में इस प्रकार निहित वन अधिकारों और ऐसी मान्यता और निहित करने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक साक्ष्य की प्रकृति को दर्ज करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। (एजेंसी, हि.स.)
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